जब बिंदेशर 100 किमी पैदल चलकर चावल लाने अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे

daily wage labourer

By अभिनव, लातेहार से 

बिन्देशर उरांव लातेहार जिले के महुआडांड़ के रहने वाले है। एक दिन तक जंगल- पहाड़ के रास्ते लगातार पैदल चलते हुए वो लातेहार अपने एक रिश्तेदार के घर 15 किलो चावल लेने पहुंचे हैं। क़रीब 100 किलोमीटर है।

बिन्देशर बताते है घर की छप्पर पर लौकी लगी थी, दो दिनों से वही नमक के साथ उबाल कर खा रहे थे।

सरकारी राशन के बाबत पूछने पर बताते हैं कि 4 दिनों से डीलर के घर सुबह से शाम कर रहे है, पर अनाज का एक दाना नहीं मिला। कहते हैं कि गांव के कई लोग तो जंगली साग के भरोसे हैं।

‘छह लोगों का परिवार फिलहाल तो इसी चावल के ही भरोसे है , आगे का भगवान देखेंगे।’ जाते – जाते बिन्देशर कहते हैं कि ‘एक किलो चावल तो वो रास्ते मे घर पहुंचने से पहले ही फांक जाएंगे।’

ऐसी कहानी सिर्फ बिन्देशरी की नहीं है बल्कि उन लाखों मज़दूरों की है, जो अपने आस- पास के छोटे – बड़े कस्बों में मज़दूरी कर गुजर बसर करते हैं।

यदि राज्य सरकार के ही आंकड़ों पर भरोसा करें तो राज्य में 2 करोड़ 55 लाख लोग बीपीएल के अंतर्गत आते है। 8 लाख लोगों के BPL के आवेदन अभी पेंडिंग है और 25 लाख एक्टिव मनरेगा कार्ड होल्डर हैं।

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नौ लाख कंस्ट्रक्शन वर्कर्स राज्य सरकार के अंतर्गत रजिस्टर्ड हैं। इसके अलावा देश के अलग – अलग राज्यों में फंसे झारखंड के मज़दूरों की संख्या 6 मार्च तक (बाहर फंसे मज़दूरों को वापस लाने के लिए बनाए गए कंट्रोल रूम के अनुसार) 7.28 लाख बताई जा रही है।

हालांकि ये संख्या इससे कही ज्यादा है। बहरहाल बाहर फंसे मज़दूर और यहां उन मज़दूरों पर आश्रित परिवारों का हाल बेहद बुरा है।

राज्य सरकार ने ये घोषणा की है कि वो मनरेगा कर्मियों को 3 महीने का अतिरिक्त पेंशन देगी जबकि इन मनरेगा कर्मियों का पुराना मेहनताना ही राज्य की सरकार पर बकाया है।

बदहाल जन वितरण प्रणाली(PDS) की शिकायत जब संबंधित अधिकारियों को की जा रही है ,तो खानापूर्ति के लिए डीलरों को निलंबित कर दिया जा रहा है, लेकिन अनाज बांटने को लेकर तुरंत कोई भी निर्णय नही लिया जा रहा है जबकि उसकी ज्यादा जरूरत है।

लातेहार ब्लॉक के होटवाग पंचायत के एक निलंबित डीलर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि FCI से ही हमारे पास हर बोरी में 3-4 किलो अनाज कम आ रहा है।

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पहाड़ों पर और उसके आस-पास बसे गांवो की कोई खबर हमे नही मिल पा रही है। पहाड़ों पर बसे गांवो वालों का भूखे पेट रोज -रोज डीलर के दरवाजों तक पहुंचना भी एक अलग समस्या है।

कई लोग तो इस परेशानी से बचने के लिए डीलर के घर के बाहर ही रात बिता रहे हैं।

तरह – तरह के पकवानों की तस्वीरों से स्टेटस सज़ा रहे इंडिया वालों को शायद यह पता भी नही की आधे से ज्यादा भारत के लोग भात के चंद दानों को मोहताज़ है।

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