जब विदेश की ट्रेड यूनियनों ने बॉम्बे के हड़ताली मज़दूरों को भेजे पैसे :इतिहास के झरोखे से-4

workers of the world unite

By सुकोमल सेन

मिल मालिकों द्वारा एक के बाद एक हमले ने मुंबई के सूती कपड़ा उद्योग में गंभीर परिस्थिति पैदा कर दी थी।

आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस बुरी तरह से क्षुब्ध हो उठी और सरकार से इन उद्योगों की हालत के बारे में एक जांच समिति गठित करने और वेतन कटौती संबंधी सभी रिपोर्टों का प्रकाशन स्थगित करने की मांग की।

मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में विधानपरिषद के कुछ सदस्यों द्वारा भोजन भत्ते में कटौती के प्रश्न पर मध्यस्थता करने का प्रयास हुआ लेकिन मिल मालिकों ने किसी भी प्रकार की मध्यस्थता से इनकार कर दिया।

मुंबई के राज्यपाल ने भी इस विवाद में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और मिल मालिकों द्वारा मिलों पर बढ़ते कथित आर्थिक दबाव के कारण रुई पर लगाए गए आबकारी कर में छूट  की मांग पर भी विचार करने में असमर्थता प्रकट की।

मजदूर पुन: हड़ताल पर जाने को बाध्य हुए। पहले चरण में कुछ मिलों के मजदूरों ने 15 दिसंबर 1925 से काम बंद कर दिया लेकिन 26 सितंबर तक हड़ताल ने सभी मिलों के मजदूरों को अपने आगोश में ले लिया।

एक लाख साठ हजार से अधिक मजदूर हड़ताल में शामिल हुए। परिणामस्वरुप एक करोड़ दस लाख कार्यदिवस को हानि हुई। मुंबई के सूती कपड़ा मिलों की हड़तालों में यह गंभीर और लंबी वाली हड़ताल थी।

छह सप्ताह चली हड़ताल

लगभाग 6 सप्ताह तक, तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए मजदूरों ने दृढ़ता से संघर्ष चलाया और सफलता की दहलीज तक पहुंच गए।

1 दिसंबर को भारत के वायसराय ने रुई पर आबकारी कर स्थगित करने की घोषण की और इस फैसले के बाद ही 3 दिसंबर को मिल मालिकों ने मजदूरों का वेतन कम करने का निर्णय वापस ले लिया। खुशी से झूमते हुए मजदूर काम पर वापस लौटे।

एक दिसंबर को स्थगित किया गया रुई का आबकारी कर धीरे-धीरे समाप्त हो गया।

यह अजीब बात थी कि मिल मालिकों ने सरकार से अपनी मांग मनवाने के लिए मजदूरों पर आर्थिक हमला कर उनकों हड़ताल करने के लिए मजबूर कर दिया। और इस दबाव के द्वारा सरकार से अपनी मांग मनवा ली।

मजदूरों द्वारा इस दीर्घकालीन हड़ताल को जितनी दृढ़ता से चलाय गया इससे सभी लोग हैरान थे।

हड़ताल के हौरान लगभग 60%  मजदूर अपन गांवों को वापस चले गए और बहुत से मजदूरों ने सब्जी आदि बेचकर मुश्किल से जीवन चलाया।

एन.एम. जोशी की अध्यक्षता में हड़तालियों की सहायता के लिए एक सहायता कमेंटी भी गठित की गई।

बांबे म्यूनिसिपल काउंसिल के सदस्यों ने भी हड़ताली मजदूरों के लिए राहत सामग्री वितरित किया। देश के अनेक संगठनों ने भी हड़ताली मजदूरों को आर्थिक सहयोग भेजा।

विदेशों के मज़दूरों ने भेजा चंदा

विदेशों के मज़दूरों द्वार मुंबई के हड़ताली मजदूरों की सहायता करना सबसे महत्वपूर्ण था।

ब्रिटिश ट्रेड यूनियन कांग्रेस, इंटरनेशन फ़ेडरेशन आफ़ ट्रेड यूनियन, एमस्टर्डम;  इंटरनेशन फेडरेशन आप टेक्सटाइल वर्कर्स एसोसिएशन, लंदन ; और मास्को टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन ने हड़ताली मजदूरों को आर्थिक मदद भेजी।

तत्कालीन भारत सरकार के खुफिया विभाग के निदेशक सर डेविड पीटर ने अपनी पुस्तक ‘कम्युनिज्म इन इंडिया’ 1924-1927 में लिखा:

‘मुंबई की आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस को सोवियत रुस की सेंट्रल काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स, मास्को, से तार द्वारा शुभकामना और सूती कपड़ा मजदूरों को दस हजार रूबल की सहायता संदेश मिला।’

एम्सटर्डम ने भी सहानुभूति व्यक्त करते हुए घोषणाएं कीं।

विदेशों से हड़ताली मजदूरों को निम्नलिखित आर्थिक सहायता प्राप्त हुई:

  1. ब्रिटिश ट्रेड यूनियन कांग्रेस लंदन से 6,472-10-0 रुपए।
  2. इंटरनेशनल फेडरेशन आफ ट्रेड यूनियन्स एम्सटर्डम से 17,591-5-4 रुपए।
  3. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ टेक्सटाइल वरकर्स एसोसिएशन, लंदन से 6,049 रुपए।

इसके अतिरिक्त मास्को टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन ने 13,832.0 रुपए की सहायता मि. सकलतवाला के द्वारा ए.आई.टी.यू.सी. के सचिव एन.एम. जोशी को भेजी।

इसमें से 2000.0 रुपए हड़ताल के दौरान और शेष 11,832.0 रुपए हड़ताल समाप्त होने पर प्राप्त हुई। इस शेष राशि को बाम्वे लेबर रिलीफ आर्गेनाइजेशन फंड में जमाकर दिया गया।

(भारत का मज़दूर वर्ग, उद्भव और विकास (1830-2010) किताब का अंश। ग्रंथशिल्पी से प्रकाशित)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)