सैकड़ों किमी चल कर घर के पास पहुंचे मज़दूरों को भी ट्रक में भर कर बैरंग भेज रही योगी सरकार- ग्राउंड रिपोर्ट

workers returned from hapur in truck by up police

By संदीप राउज़ी

लॉकडाउन के चलते अपने घरों को लौटते मज़दूरों को रोकने के लिए सरकारें तरह तरह के हथकंडे अपना रही हैं और इन सब में बीजेपी सरकारें कुछ ज़्यादा ही फ़ुर्ती दिखा रही हैं।

बुधवार और गुरुवार को गाज़ियाबाद पार करते ही डासना टोल पर मुस्तैद योगी सरकार की पुलिस ने सैकड़ों मज़दूरों को बैरंग दिल्ली भेज दिया।

वर्कर्स यूनिटी की टीम बुधवार को ग़ाज़ियाबाद से पिलखुआ तक गई और इस बीच जगह जगह नाका लगाए पुलिस अधिकारियों ने पैदल और साइकिल पर जाते मज़दूरों को खाली ट्रक में बैठाकर दिल्ली की ओर छोड़ने का आदेश दे दिया।

जो मज़दूर सैकड़ों किमी पैदल चल कर किसी तरह वहां पहुंचे थे, वो जने की गुहार लगाते रहे लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी।

क़रीब 10 मज़दूर साइकिल से दिल्ली से सुपौल निकले थे लेकिन उन्हें एनएच -24 पर डासना टोल से पहले ही रोक दिया गया और उन्हें वापस लौटने पर मज़बूर कर दिया गया।

जबकि जो मज़दूर डासना टोल पार कर चुके थे उन्हें जगह जगह पुलिस रोककर दिल्ली की ओर जाते खाली ट्रकों में बैठाती नज़र आई।

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ऐसा ही मज़दूरों का ग्रुप साइकिल से पिलखुआ ओवरब्रिज तक पहुंच गया जहां उन्हें ब्रिज के ऊपर से ही रोककर दो ट्रकों में साइकिल समेत बैठा दिया गया।

इसमें कई मज़दूरों ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि उनमें से कई राजस्थान और हरियाणा से आ रहे थे लेकिन उन्हें जबरदस्ती ट्रक में बैठाया जा रहा था।

उल्लेखनीय है कि गुरुवार को हापुड़ से आगे गढ़ गंगा तक मज़दूर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि ऐसा पता चला है कि वहां से कुछ बसों का इंतज़ाम किया जा रहा है।

जब वर्कर्स यूनिटी ने मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारी से बात करनी चाही तो उन्होंने अपना नाम प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि ऊपर से आदेश है कि मज़दूर जहां से आए हैं उन्हें वहीं लौटने को कहा जाए।

वर्कर्स यूनिटी टीम के सामने ही उस अधिकारी ने मज़दूरों से कहा कि गाज़ियाबाद पुराने बस अड्डे पर वो जाएं जहां उनके रुकने और जाने का प्रबंधन होगा।

लेकिन गाज़ियाबाद पुराने बस अड्डे पर जब वर्कर्स यूनिटी की टीम पहुंची तो वहां सारी बसें खड़ी मिलीं और वहां सुरक्षा कर्मचारी के अलावा रोडवेज़ का कोई एक कर्मचारी तक नहीं मिला।

ghaziabad old bus stand

कुछ मज़दूरों ने बताया कि उन्हें बरेली तक जाना है और वो अपने घर के बिल्कुल क़रीब आ गए हैं लेकिन फिर उन्हें दिल्ली भेजा जा रहा है।

यही नहीं मज़दूरों को वापस भेजने के लिए सरकारी बस की बजाय जानवरों की तरह ट्रक में भरकर वापस भेजने के पीछे पुलिस अधिकारी कोई तर्क नहीं दे पाए।

एक कांस्टेबल ने कहा कि मज़दूरों की हालत देखकर पुलिस को भी तरस आ रहा है लेकिन ऊपर से आदेश आने के बाद इन्हें वापस भेजने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचा है।

उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले तक तेलंगाना से इलाहाबाद होते हुए मऊ पहुंचे मज़दूरों ने भी आरोप लगाया था कि उन्हें पुलिस तेलंगाना लौटने को कह रही थी।

जबकि ये मज़दूर अपने घर के बिल्कुल क़रीब आ गए थे और उन्हें मऊ और गाज़ीपुर ज़िले के बार्डर पर रोक कर घंटो रखा गया।

ये सभी मज़दूर गोरखपुर के महाराजगंज ज़िले के रहने वाले थे, जोकि मऊ से महज सवा सौ किलोमीटर दूर था। स्थानीय राजनीतिक दबाव के चलते इन मज़दूरों को आखिरकार जाने दिया गया।

workers going supaul bihar on bycle from delhi

आत्मसम्मान का भी नहीं खयाल रखा

ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट श्यामबीर का कहना है कि  यूपी सरकार अपने तुगलकी फरमान को लागू करने के लिए मज़दूरों के आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ करने तक पर अमादा है।

वो कहते हैं कि बीजेपी सरकारें किसी भी हालत में मज़दूरों को बंधुआ बनाकर काम पर लगाना चाहती हैं लेकिन मज़दूर अपने घर जाना चाहते हैं।

लखनऊ के एक अन्य ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट संदीप खरे का कहना है कि योगी सरकार का कागज़ पर जितना पक्का  काम दिखता है ज़मीन पर वो उतना ही कोरा नज़र आता है।

राज्य ने वेबसाइटें, हेल्पलाइन, ऐप आदि बना लिए हैं यहां तक कि नोडल अधिकारी तक नियुक्त कर दिए गए हैं लेकिन इनसब से मज़दूरों को रत्ती भर भी राहत मिलती नहीं दिख रही है।

हेल्पलाइन के नंबर पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा और नोडल अधिकारियों के नंबर स्विचऑफ़ जा रहे हैं, कोई बात करे तो कहां करे।

योगी सरकार पर ये भी आरोप लगे हैं कि वो अपने राज्य के मज़दूरों को वापस लाने में असमर्थता व्यक्त कर चुकी है इसलिए यूपी के फंसे मज़दूरों की घर वापसी के लिए ट्रेनें भी नहीं चल पा रही हैं।

हालांकि गुरुवार को योगी सरकार की ओर से बयान आया है कि वो मज़दूरों को वापस लेने के लिए तैयार है। लेकिन ट्रेड यूनियनों का कहना है कि ये बयान भी सिर्फ योगी सरकार का दिखावा है।

यूपी प्रशासन की उदासीनता और हद दर्जे की लापरवाही और संवेदनहीनता से प्रवासी मज़दूरों को घर लौटने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।

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