मारुति, होंडा, हीरो में सभी वर्करों को 100% सैलरी मिली, कुछ कंपनियों ने सैलरी काट कर दी

कोरोना के चलते लॉकडाउन में कंपनियों की ओर से सैलरी न दिए जाने की शिकायतों के बीच गुड़गांव से कुछ अच्छी ख़बर भी आ रही है।

ट्रेड यूनियन नेताओं की ओर से कहा गया है कि मारुति के तीनों प्लांटों, मारुति सुजुकी बाइक, गुड़गांव हीरो मोटो कार्प, मानेसर में होंडा कंपनी में भी मज़दूरों को मार्च महीने की पूरी सैलरी मिल गई है।

हालांकि यूनियन नेताओं का कहना है कि बड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की सैलरी तो जारी कर दी लेकिन छोटी कंपनियों में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

मारुति के पार्ट्स बनाने वाली कंपनी बेलसोनिका के जनरस सेक्रेटरी जसवीर सिंह ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि उनकी कंपनी में सभी कर्मचारियों को 2 अप्रैल को सैलरी मिल गई।

उन्होंने बताया कि मारुति में 28 मार्च को ही परमानेंट मज़दूरों की सैलरी मिल गई, जबकि बाकी बचे मज़दूरों को 1 अप्रैल को सैलरी मिल गई।

मारुति मानेसर प्लांट में यूनियन बॉडी के सदस्य रहे अशोक कुमार ने वर्कर्स यूनिटी को फ़ोन पर बताया कि मारुति के सभी प्लांटों के क़रीब 25,000 वर्करों की मार्च महीने की पूरी सैलरी 31 मार्च को ही अकाउंट में आ गई थी।

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जबकि सैलरी स्लिप कंपनी खुलने पर देने का वादा किया गया है।

इनमें सभी परमानेंट, टेंपरेरी, ट्रेनी, फ़िक्स टर्म एम्प्लायमेंट मज़दूर शामिल हैं।

इसी तरह हीरो मोटो कॉर्प, गुड़गांव के यूनियन बॉडी सदस्य ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि प्लांट में सभी को 31 मार्च तक की सैलरी मिल चुकी है।

मानेसर में होंडा स्कूटर्स एंड मोटरसाइकिल इंडिया प्रा. लि. में भी सभी मज़दूरों को सैलरी मिल गई है।

एटक के नेशनल सेक्रेटरी कॉमरेड क़ानूनगो ने बताया कि पूरे देश में फ़ैक्टिरी मालिकों ने दो तरह से वर्करों को वेतन भुगतान किया है। एक तो कुछ कंपनियों ने मार्च महीने की सिर्फ 70% सैलरी दी है जबकि कुछ कंपनियों ने 100% सैलरी दी।

जिन कंपनियों ने केवल 21 या 22 दिन की सैलरी दी उनका कहना है कि कई मज़दूर पहले से ही छुट्टी पर थे, इसलिए गिनती करना आसान नहीं है।

कानूनगो का कहना है कि चूंकि सरकार ने मालिकों को सिर्फ सलाह दिया है इसलिए कंपनियां अपनी मर्ज़ी से सैलरी देने न देने का फैसला कर रही हैं।

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उन्होंने बताया कि एनआरबी ग्रुप की 25-30 फ़ैक्ट्रियां हैं पूरे देश में। इस ग्रुप ने अपने वर्करों को 70%  सैलरी दी है जबकि एक कंपनी है जिसने पूरे देश में अपने वर्करों को 100%  सैलरी का भुगतान किया है।

गुड़गांव में सीटू के नेता सतवीर सिंह ने बताया कि बड़ी कंपनियों और जहां यूनियन है, वर्करों को सैलरी मिल गई लेकिन उन छोटी कंपनियों में सैलरी का कुछ अता पता नहीं है जहां यूनियनें नहीं हैं।

कानूनगो के अनुसार, “सबसे बड़ी मुसीबत दिहाड़ी, कैजुअल वर्करों की है, जो ठेकेदार के अंतर्गत आते हैं। फैक्ट्री में वो काम करते हैं, इसका तो कोई सबूत भी नहीं है उनके पास.”

ट्रेड यूनियनें उन कंपनियों से बात कर रही हैं जो वेतन देने में आनाकानी कर रही हैं। यूनियनों का कहना है कि कंपनियां अगर इन दिहा़ड़ी वर्करों की सैलरी नहीं देती हैं या एडवांस भी नहीं देती हैं तो लॉकडाउ के उठ जाने के बाद मज़दूरों की कमी से उनका काम नहीं शुरू हो पाएगा।

कानूनगो का कहना है कि इस बात को कुछ कंपनियों ने स्वीकार किया है और पूरा वेतन जारी करने पर सहमति ज़ाहिर की है।

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लेकिन वर्कर्स यूनिटी की टीम जब आईएमटी मानेसर में पहुंची तो स्थानीय मज़दूरों ने बताया कि छोटी कंपनियों में दिहाड़ी पर काम कनरे वाले वर्करों को केवल 22 दिन की सैलरी दी गई और कोरोना में लॉकडाउन के दौरान उनका सारा पैसा खर्च हो चुका है।

गौरतलब है कि लॉकडाउ को 14 दिन गुजर चुके हैं।

कानूनगो का कहना है कि 15 अप्रैल को जब आंशिक रूप से लॉकडाउन हटेगा और फ़ैक्ट्रियां खुलेंगी तब ये द्वंद्व बढ़ेगा और मज़दूर यूनियनें पूरी सैलरी की बात उठाएंगी। क्योंकि मामला सिर्फ मार्च की सैलरी का ही नहीं है, बल्कि आधा अप्रैल लॉकडाउन में बीत चुका है।

बहरहाल न्यूज़ चैनल ख़बर दे रहे हैं कि सरकार इस लॉकडाउन की तारीख़ आगे बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

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