सर्वे से हुआ खुलासा अप्रैल-मई में 80% बिहारी प्रवासी मज़दूर उधारी और कर्ज़ में डूब गए

nationwide curfew stranded workers

By सुरजीत दास और एमयू फ़ारूख़

केवल चार घंटे के आकस्मिक सूचना पर मार्च 24, 2020 रात्रि 8 बजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोषणा से पूरे देश को बंद करने से घर से दूर जीवन यापन के लिए काम करने वाले असंगठित एवं अनौपचारिक क्षेत्रों के करोड़ों प्रवासी मज़दूर, महिला, बूढ़े और बच्चों के जीवन पर दूरगामी असर पड़ा है।

करोना काल के लॉकडाउन में देशभर के मज़दूर एवं अन्य आम लोग के जीवन में अत्याधिक कठिनाई आई, दिल्ली में रह रहे बिहार के प्रवासी मजदरों के जीवन स्थिति को जानने के लिए एक प्राथमिक टेलीफ़ोनिक सर्वे आधारित अध्यन किया गया।

सर्वे 4-14 जून, 2020 के बीच बिहार के 310 प्रवासी मज़दूरों से 31 प्रश्नों का रिलायबल आंकड़ा लिया गया। इनके परिवारों में 1586 सदस्य सामिल हैं।

जवाब देने वाले ये मज़दूर मूलतः बिहार के अररिया, औरंगाबाद, बेगूसराय, बेतिया, भागलपुर, चंपारण, छपरा, दरभंगा, हजीपुर, मधुबनी, मोतिहारी, पटना, रोहतास, सहरसा, समस्तीपुर, सासाराम, सीतामढ़ी एवं सीवान आदि ज़िलों के रहने वाले हैं, जो सभी दिल्ली (एन सी आर) के गुड़गांव, नोएडा एवं अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे थे।

इस सर्वे में 82 महिला, 230 पुरुष, 198 घर हिंदू, 112 घर मुस्लिम,  09 घर अनुसूचित जनजाति, 40 घर अनुसूचित जाति, 148 घर अन्य पिछड़े वर्ग, 113 घर अन्य, जिनमें 03 स्नातक, 119 दसवीं पास, 170 स्कूल एवं मदरसा ड्रॉप आउट एवं  18 निरक्षर लोगों का आंकड़ा प्राप्त किया गया।

हालांकि ये प्रतिनिधि आंकड़े नहीं है फिर भी यू पूरे समाज और राज्य के लोगों की ज़मीनी हकीक़त को बताने वाला आंकड़ा एवं विश्लेषण है।

ये प्रवासी मजदूर विभिन्न कार्यों जैसे फैक्ट्री, दैनिक मजदूरी, घरों में काम करने वाली महिलाए, सब्जी विक्रेता, सिलाई कढ़ाई, बिजली मिस्त्री, बैग बनाने वाला कारीगर, गाड़ी मैकेनिक, गाड़ी चालक, स्ट्रीट हॉकार, दुकान में काम करने वाला मजदूर इत्यादि काम में लगे हुए थे।

84% की आमदनी शून्य हो गई

इनकी औसत आय 12,000 रुपये के आसपास थी। इनके परिवार में औसत सदस्यों की संख्या 02-10 है, जिनका औसत परिवार सदस्य 5 से ज्यादा है, इनकी प्रति व्यक्ति आय 600-17,500 रुपये के बीच थी जो औसतन 2,650 रुपया लॉकडॉउन से पहले था।

293 घरों की आय का जो आंकड़ा प्राप्त हुआ उसमें 245 घरों (84%) लोगों की अप्रैल एवं मई 2020 की आमदनी शून्य थी।

बाकी बचे केवल 48 घरों की आय घटकर (56%) रह गई थी। औसतन पूरे 293 परिवारों की आय केवल 10% रह गई थी।

इन परिवारों औसतन मासिक मूलभूत सुविधाओं पर खर्च आधे से भी कम (48%) रह गया था जो पहले की बचत से और 310 घरों में 245  यानी (79%) घर उधारी और कर्ज से खर्च को पूरा कर रहे थे।

293 मजदूरों की आय को 5 बराबर वर्ग के लोकडाउन के बाद मासिक ख़र्च में आई कटौती को बताता है की काम आय वाले वर्ग में काम खर्च कटौती आई है क्यूंकि ये अवासायक खाने पीने दवाई की वस्तुओं का उपभोग करते हैं, जिसमें न्यूनतम से ज्यादा अधिक कटौती संभव नहीं है (जीवन का उपभोग लागत शून्य नहीं हो सकता) नीचे के डायग्राम में इसे अच्छे तरह से समझा जा सकता है।

मार्च 2020 के प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्य योजना में मूलतः तीन वायदे किये गए थे, (i) फ्री राशन, (ii) फ्री गैस सिलिंडर, (iii) 500 रुपया प्रति माह बैंक जन धन खाते में।

जिसमें 14% घरों के लोगों को कोई राशन नहीं मिला, 72% घरों के लोगो के बैंक जन धन खाते में कोई पैसा नहीं मिला और 89% घरों के लोगों को कोई फ्री गैस सिलिंडर नहीं मिला।

migrant_workers_zero_income_COVID-19_lockdown_delhi_NCR
स्रोतः सर्वे डाटा

87% का रोज़ग़ार ख़त्म हो गया

अब 30 जून 2020 को प्रधानमंत्री ने फ्री राशन नवंबर 2020 तक चालू रखने की बात कही है।

प्रवासी मजदूरों के मन में रोजगार एवं जीवनयापन की घोर असुरक्षा  का भाव उत्पन्न हुआ है, 310 में  270 घर यानी (87%) घरों के लोगों का रोजगार ख़त्म हो गया है और आगे भी कोई उमीद नहीं है।

सिर्फ (13%) लोगों के पास कुछ आय की उम्मीद है,  58% लोग अपना काम बदलना चाहते हैं, वहीं 42% लोग अपने पुराने काम में ही लगे रहना चाहते हैं।

213 घर यानी (69%) लोगों के पास MGNREGS रोजगार कार्ड नहीं है, सिर्फ (31%) लोगों के पास ही MGNREGS रोजगार कार्ड है।

80% लोगों ने बहुत मजबूती से MGNREGS रोजगार स्कीम को देश भर के शहरी क्षेत्रों में भी लागू करने की मांग की है क्योंकि लगभग 40%  लोग अब शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।

इस करोना काल में करोना से अन्य बीमारी से पीड़ित परिवार के सदस्यों के इलाज में 96% लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

सरकार से नकद रुपये की मांग

प्रवासी मजदूरों का जीवन एक बेहद निराशा, हताशा एवं कठिनाईयो के दौर से गुजर रहा है। सर्वे के दौरान लगभग सभी ने अपने मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति यानि राशन, मकान किराया एवं कुछ कैश की सहायता की मांग किसी भी सरकारी एजेंसी से दिलवाने की दरखास्त कर रहे थे !

आज प्रवासी मजदूर समाज और देश के सबसे कमजोर (वल्नरेबल) वर्ग हैं, उनकी स्थिति  ना घर का ना घाट का जैसी हो गई है, क्योंकि वो मूलतः जहां के रहने वाले हैं वहां भी आज उन्हें बाहरी माना जा रहा है और जहा जीवन भर काम करते रहे वहां अब ठौर ठिकाना चलाना बेहद मुश्किल हो गया है।

फिर भी जो मज़दूर अभी भी दिल्ली में है वो भी अपने मूल स्थान जाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

इस बेहद गंभीर करोना काल में मज़दूरों के जीवन में मरहम पट्टी के तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी संघीय लोकतांत्रिक एवं दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थवयवस्था (PPP) मजदूरों एवं अन्य सभी लोगों को सोसल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए रोज़गार, फ्री राशन, न्यूनतम कैश एवं स्तरीय लोक स्वास्थ्य उपलब्ध करवाएगी, जिससे लोग, समाज, स्वास्थ्य, अर्थव्यस्था, राज्य एवं देश अपने आर्थिक गतिविधि और विकास को प्राप्त कर आगे बढ़ेंगे।

(सुरजीत दास सीईएसपी-जेएनयू में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं। एमयू फ़ारूख़ अर्थशास्त्री हैं और द मास जर्नल के मैनेजिंग एडिटर हैं।)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)