होंडा समझौता, वर्करों की सबसे बड़ी हार हैः कैजुअल मज़दूर नेता

honda casual leader atul @Workersunity

होंडा कैजुअल मज़दूरों के प्रतिनिधि त्रिपाठी का कहना है उनके आंदोलन में हुआ समझौता वर्करों की सबसे बड़ी हार है।

छह मार्च को हमेशा के लिए हरियाणा एनसीआर छोड़कर जा रहे अतुल ने निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन छूटने से पहले चार महीने के आंदोलन के बारे में वर्कर्स यूनिटी से अपने अनुभव साझा किए।

5 नवंबर 2019 को होंडा के ढाई हज़ार मज़दूर हड़ताल पर चले गए थे। कैजुअल मज़दूर कंपनी के अंदर 14 दिन तक बैठे रहे, इसके बाद 19 नवंबर को मज़दूर कंपनी से निकल कर बाहर धरने पर बैठ गए।

अतुल स्वीकार करते हैं कि इस दौरान इलाक़े की यूनियनों और संगठनों का काफ़ी सपोर्ट मिला। मैनेजमेंट के साथ वार्ता परमानेंट यूनियन चला रही थी और कैजुअल मज़दूर उनके सपोर्ट पर पूरी तरह निर्भर थे।

इस वजह से यूनियन बॉडी के 6 सदस्यों को सस्पेंड भी किया गया। हालांकि आंदोलन शुरू होने के पहले महीने में ही मैनेजमेंट ने प्रति साल सेवा के लिए 15,000 रु. देने की पेशकश की थी। लेकिन मज़दूरों ने इसे ठुकरा दिया और स्थाई नौकरी की मांग रखी।

हालांकि आंदोलन लंबा खिंचने की वजह से क़रीब 350 वर्करों ने मैनेजमेंट से अपना हिसाब ले लिया था, लेकिन 2100 मज़दूर मांगों पर डटे रहे और इसका मामूली फायदा भी हुआ।

परमानेंट यूनियन कैजुअल मज़दूरों की अपनी ओर से पूरी मदद की, लेकिन कंपनी के ख़िलाफ़ कोई क़ानून कार्यवाही नहीं की जा सकी।

अतुल कहते हैं कि यूनियन ये कहती रही कि जितना पैसा खर्च होगा वो अपने कोश से देगी लेकिन धरना स्थल पर खर्च के अलावा कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं बन पाया।

आंदोलन अधिक खिंच जाने से मज़दूरों के खाने के लाले पड़ गए, कई लोगों को अपना कमरा छोड़ना पड़ा। कई मज़दूर अपने घर के बर्तन बेचकर आंदोलन में आते रहे और रोटी का प्रबंध करते रहे।

कई ने धरना स्थल पर ही झुग्गी डाल कर वहीं रहना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें जाने के लिए कोई और जगह नहीं बची थी।

आखिरकार 4 महीने बाद 3 मार्च 2020 को मज़दूरों का समझौता हुआ। इस समझौते से मज़दूर खुश नहीं हैं क्योंकि 15,000 की जगह 23,000 रुपये पर समझौता हुआ। अतुल इसे सबसे बड़ी हार मानते हैं।

उन्होंने बताया कि दुष्यंत चौटाला ने समझौते में अपनी ओर से 1,000 रु. देने को कहा था।

चौटाला ने कहा था कि कंपनी के साथ मुआवज़े का जो भी समझौता हो रहा है उसे मज़दूरों को स्वीकार कर लेना चाहिए और उस समझौते में वो अपनी ओर से प्रति वर्कर एक हज़ार रुपये अलग से देने को तैयार हैं।

हालांकि अंतिम समझौते में इसका कोई ज़िक्र तक नहीं आया। अतुल का आरोप है कि हरियाणा और केंद्र सरकार ने मज़दूरों की कोई मदद नहीं की।

मज़दूर इस दौरान केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार से लेकर हरियाणा के श्रम मंत्री और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के अलावा हर उस जगह गए जहां से उन्हें न्याय की उम्मीद थी।

लेकिन आश्वासन के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला बल्कि दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा के नौजवानों को रोज़गार देने की पेशकश की जिसे मज़दूरों ने ठुकरा दिया क्योंकि इससे बाहरी और राज्य के मज़दूरों में फूट हो जाती।

यहां तक कि दुष्यंत चौटाला एक वीडियो में मज़दूरों को धमकाते हुए नज़र आते हैं और उन्हें यूनियनबाज़ी न करने की सीख देते हैं।

अतुल का कहना है कि ‘हमें इस आंदोलन से सबसे बड़ा सबक यही मिला कि ज़रूरत से अधिक किसी पर भरोसा करना घातक साबित हो सकता है।’

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