गाय, गोबर पर शोध, विज्ञान इतिहास की जगह संस्कृत और पौराणिक कथाएंः शिक्षा का सर्वनाश-3

JNU Students Protesting against Modi govt

By एस. राज

आज जब सत्तारूढ़ फासीवादी निजाम जनतंत्र के सभी संस्थानों का भीतर से टेकओवर करने का तीव्र और बहुत हद तक सफल प्रयास कर रहा है, तो ऐसे में स्वाभाविक तौर पर शिक्षण संस्थानों को भी बक्शा नहीं जाएगा।

अति-केंद्रीकरण के उपरोक्त कदमों से भाजपा-आरएसएस द्वारा शिक्षण संस्थानों को अपने कब्जे में करने की मंशा साफ दिखती है। हालांकि उनपर नियंत्रण हासिल करने के लिए केवल प्रशासनिक ही नहीं, वैचारिक रास्ते भी अपनाए जा रहे हैं।

NEP को इस मुहिम को ठोस रूप देने के लिए भी तैयार किया गया है।


  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, जो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है, को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

धर्म निरपेक्षता पूरे ड्राफ्ट में एक जगह भी नहीं इस्तेमाल किया गया है। सामाजिक न्याय पर आधारित कदम जैसे आरक्षण के साथ भी यही हाल है।

इनके बजाए “भारतीय ज्ञान प्रणाली” और प्राचीन भारत के ज्ञान और अभ्यासों की तरफ पीछे मुड़ कर देखने पर अत्यधिक जोर दिया गया है। (अनुच्छेद 4.27)

संस्कृत को लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं का उद्गम केंद्र बताया गया है और इससे द्रविड़, आदिवासी व उत्तर-पूर्वी भाषाओं को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है। (अनुच्छेद 4.16)

नीति में संस्कृत भाषा की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया गया है और शिक्षा प्रणाली द्वारा इसे बढ़ावा देने का भी प्रस्ताव है। (अनुच्छेद 4.17)

NEP में जहां समृद्ध संस्कृति व साहित्य वाले शास्त्रीय भाषाओं में संस्कृत के साथ पाली, प्राकृत, पर्शियन व कुछ अन्य भाषाओं का नाम है, वहीं उर्दू का नाम कहीं शामिल नहीं है। (अनुच्छेद 4.18)

NEP के आगमन के पहले से ही भाजपा-आरएसएस ने सरकार बनाने के बाद से अपने फासीवादी वैचारिक दृष्टिकोण को थोपने के लिए लगातार प्रयास किए हैं।

पाठ्यक्रम में बदलाव इसका प्रमुख उदाहरण है, खास कर इतिहास के पाठ्यक्रम में जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों को हटाकर उनके बदले झूठ व विकृत संस्करण और पौराणिक कहानियां डाली जा रही हैं।

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के भिन्न वार्षिक सत्रों में आरएसएस-समर्थित ‘बुद्धिजीवियों’ द्वारा अवैज्ञानिक, अतार्किक और झूठी बातों को विज्ञान व तथ्यों की तरह बेशर्मी से पेश करना भी इसका एक और उदाहरण है।

ये उदाहरण भाजपा-आरएसएस की फासीवादी, जातिवादी, और पितृसत्तात्म्क सोच पर आधारित हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को थोपने की स्पष्ट मंशा को ही रेखांकित करते हैं।

Students protesting new education policy

भाषा विवाद और हिंदी थोपने के प्रयास

NEPत्रि-भाषा फॉर्मूला को लागू करने की बात कहती है, जिसका जिक्र पहली 1968 की पहली शिक्षा नीति में पहली बार हुआ था और जिसे 1986 की द्वितीय शिक्षा नीति द्वारा भी बढ़ावा दिया गया था। फॉर्मूला के तहत हिंदी व अंग्रेजी की पढ़ाई सभी राज्यों में अनिवार्य होगी।

हालांकि इनके साथ हिंदी भाषीराज्यों में एक आधुनिक भारतीय भाषा, अधिमानतः दक्षिण की भाषाओं में से एक, और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में वहां की स्थानीय भाषा की पढ़ाई होगी।

इस फॉर्मूला में स्पष्ट रूप से हिंदी को अन्य गैर-अंग्रेजी भाषाओं से ज्यादा अहमियत दी गई है। क्योंकि भाजपा-आरएसएस हिंदी (और संस्कृत) को श्रेष्ठतर भाषा के रूप में और हिंदू राष्ट्र की मुख्य भाषा के रूप में देखते हैं, त्रि-भाषा फॉर्मूला को लागू करने की बात करनी वाली NEP उनके लिए हिंदी को गैर-हिंदी भाषी राज्यों में थोपने का जरिया के रूप में काम करेगी। (अनुच्छेद 4.13)

इसके अतिरिक्त NEP में बहुभाषावाद जैसे भव्य शब्द भी शामिल हैं जिसके तहत कम से कम पांचवी कक्षा और अधिमानतः आठवी कक्षा व उसके बाद भी मातृभाषा/स्थानीय भाषा को शिक्षा का माध्यम रखने का प्रस्ताव शामिल है।

हालांकि इसके साथ लिखा है “जहां तक संभव हो”। यानी स्पष्ट है कि भव्य दावों से परे असलियत में देश में अभी तक चलता आ रहा वह द्वि-शिक्षा मॉडल ही लागू रहेगा जो अंग्रेजी और गैर-अंग्रेजी में बटा हुआ है।

इसके तहत अंग्रेजी में शिक्षा हासिल कर पाने वाले छोटे अमीर तबके को ‘सफलता’ प्राप्त हो पाती है और मेहनतकश व हाशिए पर खड़ी बड़ी आबादी जो अंग्रेजी में शिक्षा हासिल नहीं कर पाती उन्हें गरीबी और ‘असफलता’ का जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड़ता है। (अनुच्छेद 4.11)  (क्रमशः)

(पत्रिका यथार्थ से साभार)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.