विद्युत संशोधन विधेयक-2020 लागू हुआ तो किसानों का बिजली बिल 510 की जगह 6,714 रु. हो जाएगा

farmers electricity

By दुर्गा प्रसाद

विद्युत संशोधन विधेयक-2020 के मसौदे का विरोध किसान संगठनों व विद्युत कार्मिक संगठनों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

लेकिन मोदी सरकार इस मामले में न सिर्फ कर्मचारियों को बल्कि आम जनता और किसानों को भी झूठ परोस रही है।

अभी तक तीन हार्स पॉवर के मोटर वाले ट्यूबवेल का फ़िक्स बिजली बिल किसानों के लिए 510 रुपये महीने आता था लेकिन अगर ये विधेयक पारित हुआ तो किसानों को 6,714 रुपये महीना बिल देना पड़ेगा।

हालांकि झूठ का कार्यक्रम अभी भी जारी है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह का ये कहना कि विद्युत सब्सिडी पूर्व की भांति लागू रहेगी, पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक है, यानी अपनी कथनी में सेंध का रास्ता उन्होंने छोड़ दिया है।

वर्तमान व्यवस्था में औद्योगिक व वाणिज्यिक उपभोक्ताओं से अधिक दरों (क्रॉस सब्सिडी) पर विद्युत मूल्य वसूली कर सब्सिडी की भरपाई की जा रही है।

गौरतलब है कि विद्युत कानून-1948 बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर द्वारा विभिन्न क्षेत्रों सहित देश के समग्र विकास को ध्यान में रखकर बनाया गया था जिसमें विद्युत विभाग को सरकारों द्वारा 3% लाभ सुनिश्चित करने का प्रावधान भी किया गया था।

Electricity Employee protest in varanasi

10 रुपये यूनिट हो जाएगी बिजली

सरकारों द्वारा अपना दायित्व निर्वहन न करने के कारण ही आज विद्युत विभाग हजारों करोड़ के घाटे में चला गया है।

1991 से शुरू किये गये आर्थिक सुधारों के क्रम में विद्युत संशोधन कानून-2003 लागू होने के बाद इस घाटे में बेहद तेजी से बृद्धि हुई है।

कॉरपोरेट हित में 2003 की ही नीतियों को आक्रामक तरीके से विद्युत संशोधन विधेयक-2020 के द्वारा लागू करने का प्रयास है जिसके बाद किसानों व आम जनता को मिलने वाली बिजली अत्यधिक मंहगी हो जायेगी।

ज्यों ज्यों दवा की जा रही है बीमारी ठीक होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है क्योंकि विद्युत सुधार कानून वर्ल्ड बैंक व एशियन डेवलपमेन्ट बैंक के दबाव में निजी निवेशकों के हित में बनाये/लागू किये जा रहे हैं।

आइये किसानों सहित आम जनता पर पड़ने वाले प्रभाव को देखें-

प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर विद्युत संशोधन विधेयक-2020 पारित होने पर बिजली की कीमत 10 रुपये प्रति यूनिट हो जायेगी।

ऐसी स्थिति में तीन हॉर्स पॉवर के मोटर वाले ट्यूबवेल में अगर रोज़ाना 10 घंटे बिज़ली खर्च हो तो नए क़ानून के हिसाब से 6,714 रुपये प्रति माह का बिल आएगा। जबकि वर्तमान में इन्हीं हालात में 510 रुपये महीने का बिल आता है।

इसी तरह 10 एचपी निजी ट्यूबवेल का वर्तमान 1,700 रुपये प्रति माह का बिल मात्र 10 घंटे दैनिक उपयोग पर लगभग 24,000/- (चौबीस हजार) रुपये प्रति माह हो जायेगा।

इसके साथ ही आम उपभोक्ताओं पर भी विद्युत संशोधन विधेयक का दुष्प्रभाव पड़ेगा। बीपीएल कनेक्शन धारक 1 किलोवाट के उपभोक्ता का 100 यूनिट बिजली खर्च पर वर्तमान 367 रुपये का मासिक बिल लगभग 1,100 रुपये हो जायेगा।

बिजली सब्सिडी में लोचा

वहीं आम शहरी उपभोक्ता के 2 किलोवाट कनेक्शन पर 250 यूनिट बिजली खर्च पर मासिक बिल 1,726 रुपये की जगह 2,856 रुपये हो जायेगा।

विद्युत उत्पादन क्षेत्र में निजीकरण का ही परिणाम है कि बिजली के लागत मूल्य में गुणात्मक बृद्धि हुई है। साथ ही उच्च दरों पर बिजली बेचने के बावजूद निजी विद्युत उत्पादक बैंकों से लिये ऋण भी वापस नही कर रहे हैं।

ब्याज तो छोड़िये उनका लाखों करोड़ मूलधन भी बट्टेखाते में डाल दिया गया है। अब विद्युत वितरण क्षेत्र के निजीकरण से किसान, गरीब व आम उपभोक्ताओं को बेतहाशा बिजली मूल्य बृद्धि की मार भी झेलने को मजबूर होना पड़ेगा।

जहां तक सब्सिडी की बात है यदि राज्य सरकार किसानों को डीबीटी के माध्यम से भुगतान कर भी दे तो भी किसानों को पहले बिजली बिल का भुगतान करना होगा अन्यथा की स्थिति में कनेक्शन काट दिया जायेगा।

और ये पहले से ही आर्थिक रूप से पीड़ित किसानों के लिए किसी कहर से कम नहीं होगा क्योंकि फसल बुवाई से पकने तक किसानों को बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशक इत्यादि में काफी पैसा लगाना होता है।

दूसरी ओर एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट के अनुसार क्रॉस सब्सिडी समाप्त होने से राज्यों पर भी एक लाख करोड़ प्रति वर्ष से अधिक का भार पड़ेगा जिसे पूरा करना राज्यों के लिये भी दुरूह कार्य हो जायेगा।

ऐसी स्थिति में केंद्रीय ऊर्जामंत्री आरके सिंह के बयान का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। सबको मालूम है कि ऊर्जामंत्री पूर्व में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम, जिसके अंतर्गत प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी व मुख्यमंत्री जी का विशेष कार्यक्षेत्र गोरखपुर आता है, के निजीकरण की घोषणा, चोरी छिपे दिल्ली से लखनऊ आकर बिना मीडिया को बताये रात के अंधेरे में, करके वापस चले गए थे।

सच्चाई यह है कि पूरी कवायद चहेते पूंजीपति मित्रों के अकूत लाभ के लिये की जा रही है जिसका किसानों व आम जनता पर असहनीय बोझ पड़ेगा।

वर्कर्स फ्रण्ट का मानना है कि राष्ट्रहित में किसानों के आंदोलन के समर्थन में खड़े होना इस समय की महत्वपूर्ण मांग है।

(लेखक यूपी पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड से सेवानिवृत्त अधिशासी अभियंता और वर्कर्स फ्रंट के उपाध्यक्ष हैं।)

वर्कर्स यूनिटी के समर्थकों से एक अर्जेंट अपील, मज़दूरों की अपनी मीडिया खड़ी करने में सहयोग करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.