खट्टर को नहीं समझ आ रहा कि किसान गुमराह हैं या कृषि क़ानून अच्छा है

एक तरफ हरियाणा में तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग बढ़ती जा रही है वही मुख्यमंत्री खट्टर का कहना है कि किसान गुमराह हैं और ये आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक है।

खट्टर का मानना है कि ये कृषि कानून किसानों की बेहतरी के लिए लाया गया है, ये कानून वैकल्पिक हैं और इन्हे किसानों पर थोपा नहीं जायेगा।

गौरतलब है कि हरियाणा में खट्टर और उनके मंत्रियों विधायकों को किसानों का तीखा विरोध झेलना पड़ रहा है और इसीलिए सरकारी काम में बाधा डालने पर ज़ुर्माना वसूलने जैसा काला क़ानून विधानसभा में लेकर आए हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों और संयुक्त किसान मोर्चे का कहना है कि किसानों की ओर से बढ़ते दबाव का ये नतीजा है कि हरियाणा सरकार अब मनमाने क़ानून बनाने पर उतर आई है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कई बार कह चुके हैं कि कृषि क़ानून सही हैं लेकिन दूसरी तरफ़ वे ये भी कहते हैं कि इन्हें किसानों पर थोपा नहीं जाएगा।

प्रेस से बातचीत में खट्टर ने कहा कि “किसानों का ये आंदोलन सही नहीं है। ये तथाकथित किसानों का आंदोलन पूरी तरह से मोदी सरकार के खिलाफ राजनीतिक एजेंडे पर काम रहा है। जल्द ही किसान कृषि कानूनों का लाभ समझ जायेंगे।”

खट्टर का कहना है कि इन कानूनों कि मदद से किसान अपनी मर्जी से फसल बेच पायेंगे, किसानों को फसल के पहले से अधिक दाम मिलेंगे।

लेकिन हाल ही में जब उत्तर प्रदेश के किसान हरियाणा में अपनी फसल बेचने गए तो खट्टर सरकार ने वहां पाबंदी लगा दी। इस बात को लेकर किसान नेताओं ने खट्टर के दोमुंहेपन पर करारा निशाना  भी साधा था।

हरियाणा में किसानों की कर्ज माफी के सवाल पर खट्टर थोड़ा झेंपे, “जो भी राज्य सरकार कर्जमाफी जैसे वादें करती हैं उनको पता है कि ऐसे वादें असल में कभी पूरे नहीं होते हैं।”

हालांकि मुख्यमंत्री ये भूल गये कि उन्हीं के पार्टी की सरकार वाले उत्तर प्रदेश में किसानों के कर्जमाफी के बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं।

खट्टर ने बातचीत के क्रम में बताया कि उनके शासनकाल में हरियाणा में 7 लाख किसान परिवारों को NPA से बाहर किया गया है। 3 लाख 8 हजार किसानों की 1001 करोड़ 72 लाख रुपये की ब्याज व जुर्माना राशि माफी की गई है।

(स्थानीय मीडिया के इनपुट के साथ)

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