गांवों में पहुंचे मजदूरों की जिंदगी को लेकर बेपरवाह है सरकार

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उत्तरप्रदेश में मजदूर किसान मंच ने गांव-देहात में पहुंचे श्रमिकों को लेकर सरकार की बेपरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई है। मंच के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं का कहना है कि मनरेगा कानून का मखौल बना दिया गया है। यहां तक कि कार्यरत श्रमिकों की हाजिरी जॉबकार्ड पर दर्ज नहीं की जा रही है।

हफ्तों काम करने के बावजूद मजदूरों को मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ। जिन मजदूरों को भुगतान किया भी गया उनको किए गए काम के सापेक्ष कम मजदूरी दी गई है।

अभी भी बड़ी संख्या में रोजगार चाहने वाले मजदूर हैं पर उनको रोजगार उपलब्ध नहीं हो सका है। यहीं नहीं प्रवासी मजदूर जिनके परिवार के सामने जीने का ही संकट हो गया है, उन्हें भी रोजगार नहीं मिल रहा है। जबकि सरकार रोजगार देने की बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रही है।

यह बातें मजदूर किसान मंच के नेता कृपाशंकर पनिका व अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने कुसम्हा, रासपहरी, गोविन्दपुर, कुण्डाडीह, जामपानी, सुपाचुआं, किरवानी आदि गांवों का दौरा कर मजदूरों से बात करने के बाद प्रेस को जारी अपने बयान में कहीं। मंच के प्रतिनिधिमंडल ने बीडीओ म्योरपुर से मिलकर इस संबंध में वार्ता कर निर्देश देने की मांग भी की।

नेताओं ने कहा कि सरकार की घोषणाओं और जमीनी हकीकत तकलीफदेह है। ओलावृष्टि और भारी वर्षा से तबाह हुए किसानों को आज तक मुआवजा नहीं मिला। रोजगार के अभाव में बाहर पलायन कर गए मजदूर भारी संख्या में वापस लौटे हैं।

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इन श्रमिकों के लिए सरकार ने एक हजार रूपए और बारह सौ पचास रूपए का पंद्रह दिनों का राशन किट देने का वादा किया लेकिन अभी तक ज्यादातर मजदूरों को इसका लाभ नहीं मिला। बाहर से आए मजदूरों से संक्रमण फैलने का खतरा है लेकिन इनकी कोरोना जांच तक नहीं की गई है और महज थर्मल स्कैनिंग करके छोड़ दिया गया।

जिन अति पिछड़े इलाकों में जहां हर वर्ष सैकड़ों लोग मलेरिया, टाइफाइड से मर जाते हैं, वहां सरकारी अस्पतालों में ओपीडी तक बंद कर दी गई है।

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