मज़दूरों को तबाह करने के बाद मोदी सरकार ने किसानों पर लगाया हाथ, कंपनियों के हवाले करने साजिश

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By अजीत सिंह यादव 

कोरोना संकट के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 3 जून को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में अनाजों और दालों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने, कांट्रैक्ट फार्मिंग का कानून बनाने और मंडी कानून खत्म करने को अध्यादेश लाने का फैसला लिया गया है।

इसकी जानकारी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्‍याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पत्रकार वार्ता में दी है ।

केंद्र सरकार इन बदलावों को कृषि सुधारों का नाम दे रही है और इन्हें किसानों के हितों में बताकर अपनी पीठ थपथपा रही है। लेकिन सच्चाई यह है मोदी सरकार के इन निर्णयों से न तो किसानों को कोई फायदा होने जा रहा है और न देश की आम जनता को।

बुधवार को मोदी मंत्रिमंडल द्वारा पारित ये अध्यादेश यदि लागू हो गए तो कृषि और कृषि बाजार पर देशी विदेशी कारपोरेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा । देश के किसान कंपनियों के गुलाम हो जाएंगे और देश में भुखमरी का संकट पैदा हो जाएगा।

आइये मोदी मंत्रिमंडल के कृषि सुधारों संबंधी फैसलों से देश की आम जनता , किसानों व कृषि बाजार पड़ने वाले असर का विश्लेषण करें।

1. किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षण अध्‍यादेश- 2020

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पत्रकार वार्ता में बताया कि कृषि व्‍यवसाय फर्म, प्रोसेसरों, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों, बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ जुड़े रहने और किसानों को उचित एवं पारदर्शी तरीके से खेती सेवाओं तथा लाभकारी मूल्‍य पर भावी खेती उत्‍पादों की बिक्री में कृषि करार के लिए राष्‍ट्रीय फ्रेमवर्क प्रदान हेतु भारत सरकार ने “मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षणअध्‍यादेश- 2020’’लाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है।

यह और कुछ नहीं बल्कि कांट्रैक्ट फार्मिंग का केंद्रीय कानून है ।पंजाब ,महाराष्‍ट्र, हरि‍याणा, कर्नाटक और मध्‍य प्रदेश जैसे राज्‍यों में  कांट्रैक्‍ट फार्मिंग हो रही है।

अभी कांट्रैक्‍ट फार्मिंग एपीएमसी एक्‍ट 2003 के तहत आती है। इसमें कांट्रैक्‍ट फार्मिंग करने वाली कारपोरेट कंपनियों को आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए और पूरे देश के लिए कांट्रैक्‍ट फार्मिंग एक कानून मोदी सरकार यह अध्यादेश लेकर आ रही है ।

ये हैं कांट्रेक्ट फार्मिंग से जुड़ी देश की बड़ी कंपनियां –

आईटीसी, गोदरेज, रिलायंस, मेट्रो, अडानी, हिंदूस्तान यूनिलीवर, कारगिल, पेप्सिको, मैककेन, टाटा, महिंद्रा, डीसीएम श्रीराम, पतंजलि, मार्स रिगले कन्फेक्शनरी।

क्या है अनुबंध खेती/ ठेका खेती/कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग?

कांट्रैक्‍ट फार्मिंग के तहत कि‍सान और स्‍पांसर यानी कंपनी के बीच एक समझौते के तहत खेती होती है. यह कांट्रैक्‍ट कि‍सी एक कि‍सान के साथ भी हो सकता है और कि‍सानों के समूह के साथ भी।

ठेका खेती / कांट्रैक्‍ट फार्मिंग का मतलब यह है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए। इसमें कोई कंपनी या फिर कोई व्यक्ति किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल को एक निश्चित समय पर तय दाम पर खरीदेगा।

इसमें खाद-बीज, सिंचाई व मजदूरी सहित अन्य खर्चें कांट्रेक्टर के होते हैं। कांट्रेक्टर के अनुसार ही किसान खेती करता है। फसल का दाम, क्वालिटी, मात्रा और डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है।

 कांट्रैक्‍ट फार्मिंग में किसान हो जाएगा कंपनी का गुलाम

कांट्रैक्‍ट फार्मिंग में कंपनी ही तय करेगी कि कौन सी फसल उगानी है। बीज , खाद आदि का फैसला कंपनी करेगी। जाहिर है कंपनी उसी फसल को उगायेगी जिसमें ज्यादा मुनाफे की संभावना होगी।

उदाहरण के लिए अगर कंपनी को लगेगा कि फूल की खेती में फायदा है तो वह फूल की खेती करवाएगी। किसानों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी। किसान कंपनी का गुलाम बन जायेगा।

उन्हें खाद्यान्न के लिए बाजार पर निर्भर रहना पड़ेगा। उत्पादित फसल के दाम बाजार में गिरने पर कंपनी नुकसान का रोना रोकर किसानों का भुगतान कभी भी फंसा सकेगी ।कंपनी की ओर से समय पर भुगतान न मिलने पर किसानों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो जाएगा।

औपनिवेशिक भारत में मुनाफा कमाने को अंग्रेज भारत के किसानों से जबरन नील की खेती करवाते थे। बिहार के चम्पारण जिले में महात्मा गांधी ने 1917 में नील की खेती करने वाले किसानों को शोषण से मुक्त कराने के लिए चम्पारण सत्याग्रह शुरू किया था और किसानों को शोषण से मुक्त कराया था।

नील की खेती भी कांट्रैक्‍ट फार्मिंग थी। आज चम्पारण सत्याग्रह के 103 साल बाद आजाद भारत में मोदी सरकार नीलहे किसानों की तरह देश के किसानों का शोषण करने के लिए कंपनियों को छूट दे रही है।

जो सामाजिक दूरी अछूतों से थी, वही मज़दूरों के ख़िलाफ़ सोशल डिस्टेंसिंग बना दी गई

 2. ”कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020”

केंद्रीय मंत्री तोमर ने इस अध्यादेश के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ”कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020” राज्य कृषि उपज विपणन कानून के तहत अधिसूचित बाजारों के अहाते के बाहर अवरोध मुक्त अंतर-राज्य और अन्य राज्यों के साथ व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देगा।”

मोदी सरकार का दावा है कि कृषि उपज के बाधा मुक्त व्यापार को सुनिश्चित करने के मंत्रिमंडल के इस  फैसले पर उन्होंने कहा  ‘‘यह देश में व्यापक रूप से विनियमित कृषि बाजारों को खोलने का एक ऐतिहासिक कदम है।

जाहिर है इस अध्यादेश का मकसद  पूरे देश के कृषि बाजार को करपोरेट कंपनियों के हवाले करने का है।

3. आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन

मोदी मंत्रिमंडल ने आवश्यक वस्तु अधिनियम की सूची से खाद्यान्न , तिलहन , दलहन फसलों के साथ आलू और प्याज जैसी प्रमुख फसलों को बाहर कर दिया है।

इन वस्तुओं के व्यापार का सरकार नियमन नहीं करेगी और इनका व्यापार मुक्त तरीके से किया जा सकेगा।

जब सरकार को नियमन का अधिकार था तब भी समय समय पर मुनाफाखोरों व जमाखोरों द्वारा मुनाफा कमाने को प्याज, आलू और दालों आदि के दामों में भारी उतार चढ़ाव को हम सबने देखा है और कीमतों के बढ़ने का कोई लाभ किसानों को नहीं मिला।

अब सरकार द्वारा नियंत्रण पूरी तरह समाप्त करने का मकसद कृषि उत्पादों की खरीद, भंडारण और आयात निर्यात व  व्यापार को देशी विदेशी सट्टेबाज पूंजी के बेलगाम मुनाफे के लिए खुला छोड़ देना है।

जाहिर है सब कुछ बाजार के हवाले कर देने के बाद किसान बड़ी पूंजी कंपनियों के सामने कहीं भी नहीं टिक सकेंगे और जो मूल्य उन्हें अब तक मिल जाता है वह भी नहीं मिल सकेगा।

मुनाफाखोर कंपनियां  अनाजों , दालों,  तिलहन व आलू प्याज आदि की जमाखोरी कर जब चाहेंगी बाजार में सप्लाई रोक कर वस्तुओं के दामों को मनमर्जी से बढ़ाकर मनमाना मुनाफा वसूल सकेंगी और देश में भुखमरी का संकट पैदा कर देंगी।

ज़ाहिर है मोदी कैबिनेट द्वारा लिए गए कृषि सुधारों से संबंधित ये फैसले खेती किसानी और कृषि बाजार को देशी विदेशी पूंजी कंपनियों के हवाले करने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैं।

मोदी सरकार देश के संसाधनों, बैंक ,बीमा, रेलवे आदि सार्वजनिक उपक्रमों को पूँजीघरानों के हवाले तेजी से करती ही जा रही है।

अब कोरोना संकट को एक अवसर के बतौर देखकर कृषि और कृषि बाजार पर भी पूँजीघरानों का कब्जा कराने को कानूनों में बदलाव कर रही है।

मोदी सरकार के ये अध्यादेश किसानों की गुलामी के दस्तावेज हैं। यदि मोदी सरकार इसमें सफल हो गई तो देश में कंपनी राज की वापसी हो जाएगी।

इसलिए देश हित और किसान हित में संघर्षरत सभी संगठनों, व्यक्तियों, राजनीतिक सामाजिक शक्तियों को मोदी सरकार की इस साजिश को विफल करने के लिए एकजुट होकर निर्णायक संघर्ष में उतरने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और लोकमोर्चा के संयोजक हैं।)

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