मोदी की घोषणा से उपजे सात सवाल, जिनके जवाब कभी नहीं मिलेंगे

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By राकेश कायस्थ

अचानक सुबह-सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेना की घोषणा कर दी। इससे मोटे तौर पर कई बातें समझ में आती हैं।

1. सबसे पहली बात यह कि कानून सरकार ने वापस नहीं लिया है बल्कि किसानों ने उसे ऐसा करने पर बाध्य किया है। आज़ाद भारत के सबसे शानदार, संगठित और अहिंसक लड़ाई में किसानों को जीत मिली है। इससे यह समझ में आता है कि अगर आप नैतिक रूप से सहीं हों तो जीत आखिरकार आपकी ही होगी। सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं।

2. देशद्रोही, आढ़तिये, मुट्ठीभर और खालिस्तानी जैसे तरह-तरह के विशेषणों से नवाजे जाने के बाद अचानक मोदीजी को किसानों पर इतना प्यार क्यों आया? इसका उत्तर सतपाल मलिक जैसे भाजपा नेता कई महीनों से देते आये हैं। वे कह रहे हैं कि ग्राउंड रिपोर्ट्स बता रही है किसानों के विरोध की वजह से यह सरकार सिर्फ यूपी का चुनाव ही नहीं हारेगी बल्कि 2024 में सत्ता से पूरी तरह बेदखल हो जाएगी।

3. कृषि कानूनों को लेकर सरकार का रवैया हद से ज्यादा अड़ियल और तानाशाही भरा रहा था। राज्यसभा तक में इसे नियमों को ताक पर रखकर पास करवाया गया था। किसानों को अपनी गाड़ी से कुचल देनेवाले व्यक्ति के पिता अजय मिश्रा टेनी आज भी मोदी सरकार में है। इसलिए प्रधानमंत्री चाहकर किसानों के बीच यह संदेश नहीं भेज सकते कि यह फैसला उन्होंने किसानों से हमदर्दी के आधार पर लिया है।

4. 700 किसानों की मौत और आम नागरिकों को हुई बेशुमार परेशानी के बाद कानून वापसी के फैसले को सरकार मास्टर स्ट्रोक किस तरह बताएगी और कॉरपोरेट मीडिया प्रधानमंत्री का तोहफा कैसे साबित करेगा यह एक बड़ा सवाल है। सरकार और सरकार समर्थक मीडिया दोनों की चुनौतियां बड़ी हैं।

5. कृषि कानून के नाम पर पूरे साल देश में जो कुछ चला है, वह केंद्र सरकार को निरंकुश, अहंकारी और गैर-जिम्मेदार साबित करता है। पहला सवाल यह है कि देश के सबसे बड़े कार्मिक समूह यानी किसानों की जिंदगी और मौत से जुड़ा फैसला उन्हें बिना भरोसे में लिये क्यों किया गया?

अगर यह फैसला देशहित में इतना ही ज़रूरी था तो फिर इसे चुपके से वापस क्यों लिया जा रहा है? ये सारे सवाल पीछा नहीं छोड़ेंगे। मनमाना फैसला थोपना निरंकुशता है तो कथित तौर पर देशहित से जुड़ा बड़ा कानून चुनावी फायदे के लिए वापस लेना मौकापरस्ती। सरकार को गैर-जिम्मेदार या मौका-परस्त दोनों में कोई एक विशेषण अपने लिए चुनना पड़ेगा। कोई और रास्ता नहीं है।

6. इस पूरे प्रकरण से सबसे बड़ा धक्का प्रधानमंत्री मोदी की उस छवि को लगा है, जिसमें उन्हें कठोर और निर्णायक फैसले लेने वाले नेता के तौर पर चित्रित किया जाता है।

7. कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब शायद यूपी के गाँवों में बीजेपी कार्यकर्ता घुस पाएंगे। लेकिन किसानों के जख्म हरे हैं, इसलिए एक सीमा से ज्यादा डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाएगा। कानून वापसी का इस्तेमाल विपक्ष यह संदेश देने में करेगा कि भाजपा को पता है कि वो चुनाव हार रही है। यानी मोमेंटम विपक्ष की तरफ ही शिफ्ट होगा।

2024 अभी दूर है। फेस सेविंग के लिए बीजेपी कौन सी नई कहानी लेकर मैदान में उतरेगी यह देखना दिलचस्प होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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