क्या आप जानते हैं, असम के चाय बगान मज़दूरों की कितनी दिहाड़ी है?

चाय की चुस्की लेते हुए क्या कभी ये ख्याल आपके जेहन में आया होगा कि दुनिया की मशहूर चाय उत्पादन में लगे असाम और पश्चिम बंगाल के चाय बगान मज़दूरों की मज़दूरी कितनी है?

अगर आप दिल्ली या मुंबई में रहते हैं तो ये अंदाज़ा लगाना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि गुलामी के दौर से लेकर आजतक चाय बगान मज़दूरों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिली है।

ये मांग लंबे समय से उठ रही है, लेकिन सरकारें आती जाती रहीं, लेकिन हरेक सरकार का रुख मज़दूरों की मांग को खारिज किए जाने का ही रहा है।

हड़ताल

ताजा हड़ताल के दौरान अब इस मांग के समर्थन में सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई एमएल, लेफ्ट डेमोक्रेटिक पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियां भी आगे आई हैं।

इन दलों ने जॉइंट एक्शन कमेटी फॉर टी वर्कर्स वेजेज की उस मांग का समर्थन किया है जिसमें चाय बगान में काम करने वाले मजदूरों के मेहनताने को बढ़ाकर 351.33 रुपए प्रति दिन करने की बात कही गई है।

जेएसीआईडब्ल्यूडब्ल्यू आठ संगठनों को मिला कर बना एक फोरम है.

इसमें आॅल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन आॅफ असम, अखिल भारतीय चाह मज़दूर संघ, असम संग्रामी चाह श्रमिक संघ, चाह मुक्ति संग्राम समिति, असम टी लेबर यूनियन, असम मज़दूर श्रमिक यूनियन, असम मज़दूर यूनियन और आॅल आदिवासी वुमन एसोसिएशन आॅफ असम जैसे संगठन शामिल हैं।

क्या है आठ लाख मज़दूरों की मांग

इन सभी की मांग है ​कि चाय बगान में काम कर रहे मज़दूरों की दिहाड़ी बढ़ाई जाए।

फिलहाल असम के 850 चाय बगानों में आठ लाख मजदूर काम कर रहे हैं।

जेएसीआईडब्ल्यूडब्ल्यू की मांग है कि चाय बगान में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी प्रतिदिन के हिसाब से कम से कम 350 रुपए हो।

मिनिमम वेज बोर्ड के साथ बैठक में राज्य सरकार ने असम के लेबर कमिश्नर से न्यूनतम मजदूरी तय करने को लेकर पूछा जिसके बाद इसे 351.33 रुपए किया गया।

सीपीआई के नेता मुनिन महंता, सीपीएम देवेन भट्टाचार्य, आप के भाभेन चौधरी, एलडीपी के गुना गोगोई और सीपीआई एम एल के बीटू गोगोई ने न्यूनतम मजदूरी को लेकर रखी गई एक कॉन्फ्रेंस में भी हिस्सा लिया, जो जेएसीआईडब्ल्यूडब्ल्यू की तरफ से रखी गई थी।

 

‘कम से कम मज़दूरी 351 रुपये हो’

इस कॉन्फ्रेंस में असम गण परिषद और आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमो​क्रेटिक फ्रंट को बुलाया गया था, लेकिन इन दोनों दलों के नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की श्रंद्धाजलि सभा में गए हुए ​थे और इसलिए कॉन्फ्रेंस में हिस्सा नहीं ले सके।

इस कॉन्फ्रेंस के अंत तक चाय बगान मजदूरों के समर्थन के लिए कई प्रस्ताव सामने आए।

इसे लेकर असम के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को एक मेमोरेंडम भी दिया जाएगा, जिसमें चाय बगान मजूदरों की न्यूनतम मजदूरी 351.33 रुपए करने की मांग रखी गई है।

इसके साथ ही सभी दलों ने तय किया है कि इस मुद्दे को संसद में भी उठाया जाएगा और जरूरत पड़ने पर पूरे राज्य में चाय बगान मजदूरों की हड़ताल का वो समर्थन भी करेंगे।

कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए महंता ने कहा कि असम की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इन चाय बगानों में काम करता है।

सभी दलों को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर मजदूरों के साथ खड़ें हों जिससे इसे जल्द से जल्द लागू करवाया जा सके।

2011 में दिहाड़ी थी 68 रुपये

वहीं भाभेन चौधरी ने कहा कि चाय बगानों में काम करने वाले मजदूरों को स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा ​मिलनी चाहिए, लेकिन सरकार की योजनाओं का लाभ इन मजदूरों को नहीं मिल रहा है।

चाय बगान के मज़दूरों ने औपनिवेशिक गुलामी के ठेका मज़दूरी से लेकर वर्तमान बदहाली के दौर तक की एक लंबी दूरी तय की है।

जबकि चाय की चुस्कियां लेते हुए भी आम लोगों को इनकी मुसीबतें आंखों से ओझल रहती हैं।

अभी जो हड़ताल हुई है वो न्यूनतम मज़दूरी को हासिल करने के लिए  हुई है।

इसे आसानी से समझा जा सकता है कि गुलाम भारत से लेकर आज़ाद भारत तक में उन्हें तमाम सरकारों की ओर से न्यूनतम मज़दूरी तक देने से इनकार किया जाता रहा।

सन 1983 में चाय बगान के मज़दूरी की दिहाड़ी 9.75 रुपये प्रति दिन थी जो 2011 में बढ़कर 68 रुपये प्रति दिन हुई।

अभी भी डेढ़ सौ रुपये की दिहाड़ी पर खटाया जाता है मज़दूरों को

मज़दूरों की ओर से लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद 2017 में उनकी मज़दूरी बढ़ाकर 132.50 रुपये की गई और इस समय उनकी मज़दूरी 150 रुपये प्रति दिन है।

वर्तमान संघर्ष में दार्जिलिंग हिल्स – तराई डोआर्स के चाय बागानों के मजदूर को सरकार की तरफ से मात्र 172 रुपए प्रतिदिन की मज़दूरी ऑफर की गई थी।

ताज्जुब इस बात का है कि असम से सटे पश्चिम बंगाल के चाय उत्पादक इलाकों में भी यही हाल है, जबकि यहां कई सालों तक लेफ्ट गवर्मेंट रही है। और पिछले क़रीब सात सालों से तृणमूल पार्टी की सरकार है।

पश्चिम बंगाल में नरेगा की दिहाड़ी 191 रुपये प्रति दिन है जबकि अकुशल वर्करों की न्यूनतम दिहाड़ी 260 रुपये प्रतिदिन है, उसी राज्य में दुनिया की बेहतरीन चाय उत्पादन में लगे मज़दूरों की दिहाड़ी इससे भी कम है।

 

असम के विश्वप्रसिद्ध चाय बगानों में मौजूदा मज़दूरी देखिए-

ब्रह्मपुत्र घाटी में 137 रुपये

बराक घाटी में 115 रुपये

एटीसी बगान में 126 रुपये

बाल श्रमिकों की दिहाड़ी इसी अनुपात में आधी

(आंकड़े हाल ही में तैयार की गई एक रिपोर्ट के हैं, जबकि इस रिपोर्ट में ये बात छिपाई गई है कि मज़दूरी समझौता में त्रिपक्षीय तंत्र है ही नहीं और यही नहीं समझौते में सत्तारूढ़ दल को छोड़कर किसी भी चाय बगान यूनियन, या अन्य दलों को शामिल नहीं किया जाता है।)

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