किसानों के बारे में मोदी के भाषण के 10 बड़े झूठ और उनकी सच्चाई

modi and darshan pal

By दीपक कुमार

किसान सम्मान निधि किसानों के अकाउंट में डाले जाने के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को, क्रिसमस के दिन किसानों को संबोधित किया और किसान आंदोलन को लेकर जमकर भड़ास निकाली।

सीधे किसानों और उनकी मांग पर बात करने की बजाय वह ममता बनर्जी और उससे ज्यादा वामपंथी दलों को कोसते नजर आए। पश्चिम बंगाल चुनाव पर नज़र गड़ाए मोदी ने कहा कि ममता किसान सम्मान निधि का पैसा अपने राज्य के किसानों के खाते में नहीं जाने देना चाहती इसलिए उनके नाम नहीं देतीं।

पीएम ने यह नहीं बताया कि ममता सरकार राज्य की ओर से किसानों के खाते मे उससे ज्यादा पैसा डालती है, जितना किसान सम्मान निधि में दिया जाता है।

किसान आंदोलन के बढते जाने से पीएम के माथे पर बढ़ती लकीरों को गिना जा सकता है, भले ही वह रविंद्रनाथ टैगोर लुक बनाकर  इससे बचना चाह रहे हों।

उन्होंने कहा कि बंगाल में लडने वाले वामदल और ममता बनर्जी, पंजाब के किसानों के आंदोलन  में साथ आ रहे हैं। इस मौके पर पीएम ने इस बात को नकारा कि किसान आंदोलन की लीडरशिप किसानों के हाथ में है, इसकी बजाय इसका दारोमदार उन्होंने बिना नाम लिए वामदलों पर डाला।

लेकिन मोदी ने भाषण में ऐसे कई गुमराह करने वाले दावे किए जिनका सच्चाई से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। आईए उन दस झूठे दावों की पड़ताल करते हैं, जो मोदी ने अपने भाषण में किए-

1.  कुछ राजनीतिक दल किसानों को गुमराह कर रहे हैं

सच  : दरअसल प्रधानमंत्री यह दर्षाना ही नहीं चाह रहे कि किसान आंदोलन पूरी तरह से किसानों का आंदोलन है। सच्चाई यह है कि एक महीना बीत जाने के बाद भी आंदोलन का नेत्रत्व किसानों के हाथ में है। वे तीनों कानूनों की बारीकियां समझते हैं और उन्हें वापस लेने की मांग कर रहे हैं। विपक्षी दल अभी भी आंदोलन में अपनी भूमिका की तलाष भर कर रहे हैं, वे उसमें ढंग से षामिल भी नहीं हैं, हां लगभग सभी राजनीतिक दल किसान आंदोलन का समर्थन जरूर कर रहे हैं।

2.  विपक्षी दल राजनीतिक कारणों से किसानों को सरकार से चर्चा नहीं करने दे रहे।

सच  : किसानों की सरकार से कई बार चर्चा हो चुकी है। फिलहाल किसान, सरकार के साथ अगली बैठक इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि सरकार बैठक के प्रस्ताव में उनकी मांगों को लेकर कोई ठोस बात नहीं कर रही, सिर्फ पुरानी बातें दोहरा रही है। किसानों की सरकार के साथ चर्चा में भी किसी राजनीतिक दल की कोई भूमिका नहीं है। आंदोलन की लीडरशिप कई किसान संगठनों के हाथ में है, इसकी रणनीति और सरकार के साथ चर्चा का फैसला भी वही करते हैं।

3.  किसानों के कंधे पर विपक्षी दल बंदूक छोड़ रहे हैं।

सच : यह बयान भी बचकाना है, किसान समझदारी और संगठन की ताकत से आंदोलन चला रहे हैं, हां, पीएम और सरकार आम जनता को यह दिखाना चाहती है कि यह राजनीतिक आंदोलन है। फिलहाल कांग्रेस समेत किसी दल में इस तरह का आंदोलन खडा करना या उसकी लीडरषिप लेना संभव ही नहीं था। तमाम दल आंदोलन में अपनी भूमिका को तो मजबूत कर नहीं पा रहे, किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति करना तो दूर की बात है।

4.  ठोस तर्क और मुददे न होने की वजह से विपक्षी दल बाकी के मुददे उछाल रहे हैं।

सच  : किसान आंदोलन का एक ही तर्क और मुददा है, तीनों कानूनों को रद्द करना। इसके अलावा किसानों का और कोई मुददा नहीं है। एक आंदोलन अपने समग्र रूप में इंसाफ, बराबरी और मानवाधिकार जैसे तमाम मुद्दों को शामिल किए रहता ही है, ऐसा ही इस आंदोलन के साथ भी है, जिसमें कभी कभी दूसरी मांगें भी की गई हैं, हालांकि इसमें भी विपक्षी दलों की कोई भूमिका नहीं है। क्या वजह हो सकती है कि बिजली संशोधन बिल 2020 का भी ये किसान विरोध कर रहे हैं, जिसकी वजह से बिजली के रेट पांच गुना बढ़ जाएंगे।

5.  एमएसपी की जगह हिंसा के आरोपियों को छुडाने की मांग की जा रही है।

सच : किसानों की मुख्य मांग एमएसपी ही है, यह जरूर है कि आंदोलन में एक दिन उमर खालिद और वरावरा राव जैसे एनएसए में बंद एक्टिविस्टों की रिहाई की मांग के पोस्टर लगाए गए थे, पीएम का इषारा उसी ओर था। यह बात कहकर मोदी किसान आंदोलन की गंभीरता को संदेह के दायरे में लाना चाहते होंगे, जिसके लिए केंद्रीय मंत्रियों पियूष गोयल, रविषंकर प्रसाद आदि को पहले से लगा रखा गया है।

6.  देष भर में किसानों ने खेती से जुडे सुधारों का समर्थन किया

सच  : दरअसल भाजपा सरकारों वाले राज्यों में किसान सम्मेलन चलाकर दिल्ली के आसपास चल रहे आंदोलन को कमतर दिखाने की कोशिश की जा रही है। इन सम्मेलनों में सरकारी प्रचार से यह साबित किया जा रहा है कि मोदी काल में किसानों की उपज और आय बढी है और लाभ पाने वाले किसान, नए कानूनों के पक्ष में हैं।

7. स्थानीय चुनावों में किसानों ने भाजपा को जिताया, ये नए कानूनों पर मुहर है।

सच  : मोदी सरकार के अहंकार का सबसे बडा पहलू चुनावों में जीत ही है। पीएम बार बार यह कहते हैं कि जब तक जनता वोट देकर जिता रही है, तब तक हम एनआरसी व सीएए, धारा 307, तीन तलाक, श्रम सुधार या खेती से जुड़े कानूनों जैसे ‘कड़े’ फैसले लेते रहेंगे, भले ही कोई संगठन या लोग कितना बडा आंदोलन चला लें। लेकिन इन राज्यों में पंचायत जैसे निचले स्तर के चुनाव में मिली जीत खेती के कानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे एक देशव्यापी और ऐतिहासिक आंदोलन से बड़ी कैसे हो सकती है, यह मोदी के भक्तों के अलावा बाकी लोेगों की समझ में शायद ही आए।

8. देशव्यापी किसानों की आय बढ़ रही है और उनके हालात सुधर रहे हैं

सच  : कृषि मजदूरी, जो कि ग्रामीण आय का एक अहम हिस्सा है, उससे जुड़े कुछ आंकड़े मौजूद है। इसके मुताबिक साल 2014 से 2019 के बीच विकास की दर धीमी हुई है। भारत में महंगाई दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है, विश्व बैंक के डेटा के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2017 में 2.5% से थोड़ी कम थी जो कि बढ़कर 2019 में लगभग 7.% हो गई इसलिए मजदूरी में मिले लाभ का कोई फायदा नहीं हुआ।

9. किसान आंदोलन से दिल्ली के नागरिकों को परेेशानी हो रही है, अर्थव्यवस्था चरमरा रही है

सच : सच्चाई यह है कि दिल्ली की ज्यादातर जनता आंदोलन को समर्थन व सहयोग दे रही है, बिना उसके सहयोग के आंदोेलन का इस तरह से चलना संभव नहीं होता, जहां तक अर्थव्यवस्था चरमराने की बात है, उसके लिए केंद्र सरकार की मनमाना लॉकडाउन और नोटबंदी जीएसटी जैसी नीतियां जिम्मेदार हैं, किसान आंदोलन नहीं। क्योंकि किसान आंदोलन शुरू होने से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था माइनस 20 प्रतिशत नीचे जा चुकी थी।

10. मीडिया में दिखने के लिए वामदल किसान आंदोलन का सहारा ले रहे हैं।

सच  : यह एक बडा झूठ है, मीडिया में दिखने की जितनी ललक पीएम की पार्टी और उनके मंत्रियों में है, उतनी वामदल तो क्या, किसी पार्टी में नहीं, वामपंथी दल तो मीडिया को ही नजर नहीं आते, ऐसे में उन पर यह आरोेप लगाना दरअसल लोगों को बरगलाना ही है।

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