किसानों के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा खेती किसानी पर मोदी सरकार का फैसला

modi farmers

By अजित सिंह यादव

कृषि और कृषि -खाद्यान्न बाजार को कारपोरेट कंपनियों के हवाले करने के मोदी मंत्रिमंडल द्वारा 3 जून को पारित कृषि सुधारों के तीन अध्यादेशों को राष्ट्रपति ने कल 5 जून को मंजूरी दे दी।

राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद मोदी सरकार ने कल ही अधिसूचना जारी कर तीनों अध्यादेशों को लागू कर दिया है।

जिन तीन अध्यादेशों की अधिसूचना भारत सरकार ने जारी की है वे निम्नवत हैं –

1.”मूल्य आश्वासन व कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षणअध्‍यादेश- 2020’
2.”कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020′
3.”आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन )अध्यादेश 2020 ‘

आज जारी बयान में उक्त जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश लोकमोर्चा ने उक्त अध्यादेशों के लागू होने को आज़ाद भारत का काला दिन बताते हुए इसे भारत में कंपनी राज की वापसी करार दिया।

कंपनियों का ग़ुलाम बना देगा नया क़ानून

मोर्चा ने कहा है कि हमारे पूर्वजों ने औपनिवेशिक कंपनी राज के विरुद्ध संघर्ष कर अनगिनत कुर्बानियां देकर मुल्क को आजाद कराया।

आजाद भारत में किसान , मजदूर  और आम आवाम फिर से कंपनी राज की वापसी किसी बजी कीमत पर नहीं होने देंगे । मोदी सरकार के इन देशविरोधी अध्यादेशों की वापसी को अंतिम दम तक संघर्ष किया जाएगा।

लोकमोर्चा की ओर से सभी विपक्षी दलों के राष्ट्रीय अध्यक्षों व किसान संगठनों के पदाधिकारियों को पत्र लिखकर अध्यादेशों की वापसी को साझा संघर्ष चलाने की अपील की गई है।

पत्र में कहा गया है कि कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने के नाम पर कृषि क्षेत्र में एक देश एक बाजार का नारा देकर मंडी कानून को खत्म करने, ठेका खेती/कांट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी दर्जा देने और अनाजों, आलू ,प्याज आदि खाद्यान्न को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे से बाहर करने के लिए मोदी सरकार इन अध्यादेशों को लेकर आई है।

इससे कृषि और कृषि – खाद्यान्न बाजार पर देशी -विदेशी कंपनियों का कब्जा हो जाएगा।

देश के किसान कंपनियों के गुलाम हो जाएंगे। इन अध्यादेशों के लागू होने से देश की खेती-किसानी और खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को खतरा पैदा हो गया है।

विदेशी कंपनियों के हाथों खेल रही मोदी सरकार

राष्ट्रीय महत्व के इन मसलों पर संसद में बिना कोई विचार विमर्श किये आनन फानन में अध्यादेश लाने से साबित होता है कि मोदी सरकार देशी विदेशी पूंजी कंपनियों के हाथों में खेल रही है।

पत्र में आगे कहा गया है कि सभी जानते हैं कि ठेका खेती /कांट्रैक्ट फार्मिंग का एकमात्र मकसद किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट पूंजी की लूट और मुनाफे को सुनिश्चित करना है।

भारत में जहां  लघु और सीमांत किसानों की संख्या 86 फीसदी है और जिनके पास औसतन एक एकड़ जमीन ही है वे ही नहीं बड़े किसान भी  बड़ी बड़ी कारपोरेट कंपनियों के सामने अपने हितों की रक्षा नहीं कर सकेंगे और  पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे।

परिणाम यह होगा कि इन लघु और सीमांत किसानों के हाथों से जमीन भी चली जाएगी। हम सब जानते हैं कि गन्ना कानून में गन्ना डालने के 14 दिनों के अंदर भुगतान का प्रावधान होने के बाबजूद गन्ना किसानों के गन्ना बकाया का सालों भुगतान नहीं हो पाता है।

पंजाब के उदाहरण से नहीं लिया सबक

कांट्रेक्ट फार्मिंग के अध्यादेश में कानूनी प्राधिकरण की बात है लेकिन किसान वहां पर ताकतवर कंपनियों से लड़कर न्याय हासिल कर लेगें इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

साम्राज्यवादी देश और बहुराष्ट्रीय कंपनियां  विकासशील देशों में खाद्यान्न परनिर्भरता को राजनैतिक ब्लैकमेल का हथियार बनाती हैं और संसाधनों पर कब्जा करने के लिए राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का उनका इतिहास रहा है।

कृषि क्षेत्र में कांट्रैक्ट फार्मिंग और कृषि व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खुली छूट के इस परिवर्तन से न सिर्फ खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता बल्कि देश की संप्रभुता भी खतरे में पड़ने जा रही है।

प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार ठेका खेती का देश के विभिन्न राज्यों में अभी तक का अनुभव किसानों के लिए पीड़ाजनक रहा है। पंजाब के 22 जिलों में से एक फाजिल्का के किसानों की बड़ी संख्या ठेका खेती से जुड़ी है।

उनके अनुभव बताते हैं कि कंपनियां बीज और खाद के दाम बहुत बढ़ा चढ़ाकर लगाती हैं और फसल को नुकसान होने पर सारा भार किसानों को ही उठाना पड़ता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के पीलीबंगा में भी किसानों का ठेका खेती में शोषण हो रहा है।

कंपनियों की ठगी का शिकार किसान

तमिलनाडु के नीलगिरी पहाड़ के गुडालुर तालुक में और कर्नाटक के मलनाडु क्षेत्र में भी ठेका खेती करने वाले किसानों का हाल बेहाल है।ठेका खेती का छत्तीसगढ में बुरा अनुभव रहा है।

पिछले वर्ष ही माजीसा एग्रो प्रोडक्ट नामक कंपनी ने छत्तीसगढ़ के 5000 किसानों से काले धान के उत्पादन के नाम पर 22 करोड़ रुपयों की ठगी की है और जिन किसानों से अनुबंध किया था या तो उनसे फसल नहीं खरीदी या फिर किसानों के चेक बाउंस हो गए थे।

गुजरात में भी पेप्सिको ने उसके आलू बीजों की अवैध खेती के नाम पर नौ किसानों पर पांच करोड़ रुपयों का मुकदमा ठोंक दिया था।

ये  अनुभव बताते हैं कि ठेका खेती के नाम पर आने वाले दिनों में कृषि का व्यापार करने वाली कंपनियां किस तरह किसानों को लूटेंगी। इस लूट को कानूनी दर्जा देने के लिए मोदी सरकार ठेका खेती के अध्यादेश को लेकर आई है।

मंडी कानून खत्म कर  एक देश एक बाजार का अध्यादेश दरअसल कृषि और खाद्यान्न बाजार को बड़ी कंपनियों के हवाले करने का कानून है।

कंपनियां किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार की शर्तों के साथ बांधेगी, जिससे फसल का लागत मूल्य मिलने की भी गारंटी नहीं होगी। दरअसल मोदी सरकार किसानों की फसल की सरकारी खरीदी करने की व्यवस्था को ही खत्म करना चाहती है।

सट्टेबाज़ पूंजी को खुली छूट

पत्र में कहा गया है कि अध्यादेश लाकर मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की सूची से खाद्यान्न , तिलहन , दलहन फसलों के साथ आलू और प्याज जैसी प्रमुख फसलों को बाहर कर दिया है।

इन वस्तुओं के व्यापार का सरकार नियमन नहीं करेगी और इनका व्यापार मुक्त तरीके से किया जा सकेगा।

जब सरकार को नियमन का अधिकार था तब भी समय समय पर मुनाफाखोरों व जमाखोरों द्वारा मुनाफा कमाने को प्याज, आलू और दालों आदि के दामों में भारी उतार चढ़ाव को हम सबने देखा है और कीमतों के बढ़ने का कोई लाभ किसानों को नहीं मिला।

अब सरकार द्वारा नियंत्रण पूरी तरह समाप्त करने का मकसद कृषि उत्पादों की खरीद, भंडारण और आयात निर्यात व  व्यापार को देशी विदेशी सट्टेबाज पूंजी के बेलगाम मुनाफे के लिए खुला छोड़ देना है।

जाहिर है सब कुछ बाजार के हवाले कर देने के बाद किसान बड़ी पूंजी कंपनियों के सामने कहीं भी नहीं टिक सकेंगे और जो मूल्य उन्हें अब तक मिल जाता है वह भी नहीं मिल सकेगा।

मुनाफाखोर कंपनियां  अनाजों, दालों, तिलहन व आलू प्याज आदि की जमाखोरी कर जब चाहेंगी बाजार में सप्लाई रोक कर वस्तुओं के दामों को मनमर्जी से बढ़ाकर मनमाना मुनाफा वसूल सकेंगी और देश में भुखमरी का संकट पैदा कर देंगी।

ग़ुलामी का दस्तावेज़

पत्र में कहा गया है कि कृषि और कृषि बाजार देशी विदेशी कंपनियों का  कब्जा कराने को कानूनों में बदलाव के मोदी सरकार के ये अध्यादेश किसानों की गुलामी के दस्तावेज हैं।

जनता को भुखमरी के संकट में डालने की साजिश हैं और देश की खाद्यान्न सुरक्षा आत्मनिर्भरता व संप्रभुता के लिए बड़ा खतरा हैं ।

लोकमोर्चा ने सभी विपक्षी दलों व किसान संगठनों  से तत्काल संयुक्त बैठक कर राष्ट्रीय महत्व के इस मसले पर संयुक्त पहल लेकर अध्यादेशों को वापस कराने को निर्णायक संघर्ष छेड़ने की अपील की है।

(लेखक उत्तर प्रदेश लोकमोर्चा के संयोजक हैं।)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)