किसान नेताओं को मज़दूर नेताओं की सलाह- सभी जनसंगठनों की नेशनल मीटिंग कर एक नेशनल कॉल देनी चाहिए

masa trade union leader at singhu border

पिछले एक महीने से दिल्ली के बॉर्डर को घेरे बैठे किसान मोर्चा के नेता किसी ठोस रणनीति पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मज़दूरों और अन्य जनांदोलनों के लोगों की ओर से भी लगातार सुझाव आ रहे हैं।

मज़दूर अधिाकार संघर्ष अभियान (अभियान), जोकि करीब दर्जन भर ट्रेड यूनियनों का मंच है, इससे जुड़े कर्नाटक के नेताओं ने इस आंदोलन को बड़ा करने के लिए एक राष्ट्रीय मीटिंग बुलाने का सुझाव दिया है।

कर्नाटक के कई जनसंगठनों के प्रतिनिधियों का एक दल रविवार को सिंधु बॉर्डर पहुंचकर आंदोलन कर रहे किसानों से मिला और उन्हें समर्थन दिया।

कर्नाटक से आए एकता मोर्चा के सदस्य और ट्रेड यूनियन नेता ने सिंघु बॉर्डर पर ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी (एआईकेएससीसी) के नेताओं को प्रस्ताव दिया है कि ‘देश में चल रहे सभी राष्ट्रीय जनांदोलनों, मज़दूर संगठनों, दलित संगठनों, जनवादी अधिकार लड़ रहे लोगों की एक राष्ट्रीय बैठक बुलाई जाए।’

उन्होंने कहा कि इसमें किसानों के साथ दलितों, मजूदरों, महिलाओं, आदिवासियों और जनवादी अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले जनसंगठनों के प्रतिनिधि शामिल हों और वहां से एक राष्ट्रीय आह्वान किया जाए।

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उन्होंने कहा कि ‘ये आंदोलन सिर्फ किसानों का नहीं बल्कि इसमें किसान, दलित, मज़दूर, दलित, महिला और जो भी लोकतांत्रिक ताक़तें अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनकी एक नेशनल मीटिंग बुलाई जाए और उसमें एक बड़ा नेशनल ऐलान किया जाए कि जो भी किसान आंदोलन चल रहा है इसे एक देशभक्ति आंदोलन के रूप में बदल दिया जाए।’

उन्होंने कहा कि जिस तरह पंजाब के किसान तीनों कानून के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं, उसी तरक कर्नाटक के जनसंगठन इन तीनों कानूनों के साथ ही राज्य के भूमि सुधार बिल के ख़िलाफ़ भी आंदोलनरत हैं।

इस बिल को कर्नाटक विधानसभा में भी केंद्र की तरह ही पास करा लिया गया है।

इस क़ानून के ख़िलाफ़ कर्नाटक के जनसंगठनों ने दो बार पूरे राज्य में बंद आहूत की और चार बार रास्ता रोका, जबकि इसके ख़िलाफ़ लगातार धरना दिया जा रहा है।

कर्नाटक से आए प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि नेशनल मीडिया में जिस तरह किसानों की लडाई को केवल पंजाब के किसानों तक सीमित करके दिखाया जा रहा है, वह सरासर झूठ है।

कर्नाटक में किसानों समेत तमाम जनसंगठन पहले से इन कानूनों के अलावा भूमि सुधार बिल की मुख़ालफ़त कर रहे हैं।

नेताओं ने कहा कि ‘दक्षिण के राज्यों में चल रहे आंदोलनों को भी दिल्ली में चल रहे आंदोलन के साथ जोडकर देखा जाना चाहिए। इस आंदोलन के साथ तमाम जनसंगठनों को जोड़ने की ज़रूरत है तभी इसे एक व्यापक आंदोलन बनाया जा सकेगा।’

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