बजट काट कर, किसानों को हल बैल की ओर लौटने की सलाहः बजट 2019

किसान

                                                                      By मुकेश असीम

(July 6, 2019) बजट में किसानों को दुगनी आय का महामंत्र दिया गया है।

बताया गया है कि ज़ीरो बजट प्राकृतिक कृषि के जरिए किसान प्राचीन भारतीय ज्ञान की ओर लौटेंगे तो उनकी आय दुगनी हो जाएगी। (ध्यान देने वाली बात है कि सिंचाई के मद में सरकार ने 433 करोड़ रुपये की कटौती कर दी है।)

प्राचीन भारतीय ज्ञान वाली यह कृषि कैसी होगी?

पहला, किसान मुख्य फसलों के बीच अन्य फसल बोयें जिसे बेचकर आय बढ़े।

दूसरा, रासायनिक खाद व कीटनाशकों जैसे महँगी लागतों के बजाय स्थानीय उपलब्ध गोबर, गौमूत्र, गुड, आदि का प्रयोग करें तो लागत कम हो जाएगी।

तीसरे, आर्थिक सर्वेक्षण में वैदिक कृषि की भी सलाह दी गई है हालाँकि उसके तरीके नहीं बताए गए।

पर इतिहास कहता है कि वैदिक युग में लकड़ी के हल व बैलों से खेती होती थी, तो हम मान सकते हैं कि ऐसी खेती करने वाले किसान आधुनिक यंत्रों-तकनीक को छोड़कर बैल व लकड़ी के हल का इस्तेमाल शुरू करेंगे।

फसल बेचकर अपनी मज़दूरी भी निकलती

एक हेक्टेयर से कम वाले किसानों की स्थिति फिलहाल यह है कि उन्हें हर फसल पैदा करना घाटे का सौदा है।

क्योंकि कम ज़मीन पर कम साधनों से की गई खेती में इस्तेमाल किए गए साधनों की ज़्यादा लागत व अधिक मेहनत की ज़रूरत होती है जो आज के सामाजिक तौर पर औसत खेती की लागत से अधिक है।

लेकिन किसी भी बाज़ार में औसत मूल्य से अधिक दाम कोई किसी को क्यों देगा?

इसलिए इन 80% किसानों के लिए हर नई फसल व अधिक उत्पादन और भी अधिक नुकसान का बायस होगा।

किसान असल में अपनी लगाई गई मेहनत की औसत मज़दूरी के बराबर आमदनी भी फसल बेचकर प्राप्त नहीं कर सकते, बाकी लागत की वापसी का तो सवाल ही नहीं उठता।

मोदी मंत्र और बढ़ाएगा तबाही

एक और फसल उगाने से इनकी आमदनी नहीं बल्कि घाटा ही बढ़ेगा, अधिक उत्पादन से पूर्ति बढ़ने पर बाज़ार में दाम भी और कम ही होंगे।

आज बचे समय में ये अन्य जगह मज़दूरी कर जो कमा लेते हैं वो भी एक और फसल के चक्कर में बंद हो जाएगा।

जहाँ तक बैल, लकड़ी के हल, गोबर-गौमूत्र के खाद का सवाल है तो कोई भी व्यावहारिक किसान बता देगा कि इनको छोड़ने की वजह इनका आधुनिक यंत्रों-खादों-रसायनों से महँगा होना था।

अगर ये सस्ते पड़ते तो किसान इनको छोड़ते ही क्यों? इनको सस्ता सिर्फ वही ‘कृषि विशेषज्ञ’ बता सकते हैं जिन्हें गेहूँ और धान के पौधों तक में फर्क मालूम न हो!

छोटी जोत वाली कृषि कभी लाभकारी नहीं हो सकती, उसका कोई भविष्य नहीं।

इसमें नीम हकीमी नुस्खों के जरिये लाभ का सपना दिखाना इन गरीब किसानों के साथ दुश्मनी का काम है। जो संकटग्रस्त पूंजीवाद और बढ़ती बेरोजगारी के आलम में इन्हें जमीन के इन टुकड़ों के साथ ही उलझाये रखने के लिए दिखा रहा है।

खेती की ज़मीन के राष्ट्रीयकरण और सामूहिक खेती के अतिरिक्त अधिकांश गरीब-सीमांत किसानों के लिए कृषि समस्या का कोई समाधान नहीं।

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