आजमगढ़ एयरपोर्ट: एक एयरपोर्ट बनाने के लिए क्यों चाहिए 670 एकड़ ज़मीन- ग्राउंड रिपोर्ट

By  राजेश आज़ाद/दुखहरन राम

इन दिनों आजमगढ़ इसलिए सुर्खियों में है क्योंकि यहां मोदी-योगी सरकार ने एक ड्रीम प्रोजेक्ट ला दिया है।

उनका यह ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है? उत्तर मिलेगा कि पिछले 15 वर्ष पहले वर्ष 2007 में मुलायमसिंह यादव ने हवाई पट्टी का उद्घाटन किया, वर्ष 2017में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आकर हवाई अड्डा का उद्घाटन कर दिया।

लेकिन आज तक यहां से कोई हवाई उड़ान नहीं कराया गया, हां अधिग्रिहित जमीन पर अब धान-गेहूं की जगह बाउंड्री से घिरा हुआ झाड़-झंखाड़,कुश के साथ एक आफिस भर दिखाई देता है।

इधर अब सरकार ने सपना देख लिया है कि मौजूदा तथाकथित हवाई अड्डा को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनायेगी।

खिरिया बाग़ में पिछले बहत्तर दिनों से अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के लिए यहाँ के आठ गांवों की 670 एकड़ जमीन सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा रहा है।

शासन-प्रशासन द्वारा गैरकानूनी हरकत

आश्चर्य है कि आज तक ग्रामीणों के पास कोई नोटिस तक नहीं आया। अखबारों का माने तो एक बार मंदुरी फोर लेन के उत्तर के गांवों को लेना था। फिर बाद में दक्षिण के गांव की ओर शिफ्ट करने की बात आ गई।

हद तब हो गई जब 12-13 नवम्बर 2022 के दिन और रात के 1-2बजे उपजिलाधिकारी सगड़ी, कई राजस्वकर्मी, पुलिसकर्मी, पी.एस.सी. के साथ आए और जरीब से नाप-जोख करने लगे।

ग्रामीणों ने कहा कि जब जमीन हम देना नहीं चाहते तो सर्वे का क्या औचित्य?प्रशासन के लोग भद्दी ,अश्लील, जातिसूचक गालियों के साथ ग्रामीणों को मारने लगे।

सुनीता भारती उम्र 22 वर्ष, फूलमती 50 वर्षीय,  प्रभादेवी 40 वर्षीय,  ज्ञानमती 50 वर्षीय को चोंटें आयी और ग्रामीणों राहुल राजभर , विनोद राजभर , इंद्रजीत राजभर , विकास राजभर आदि को 24 घंटे थाने में रखा गया और भारतीय दंड संहिता की धारा151थोंपकर चलान कर दिया।

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इस घटना के बाद ग्रामीणों में भयानक डर, आशंका घर कर गई कि जल्द ही आफत आने वाली है । तब से लोगों की आंखों की नींदे गायब होने लगीं। जिलाधिकारी आज़मगढ़ से शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

तभी से 70 दिनों से जमुआ हरिराम गांव के खिरिया की बाग में शांतिपूर्ण क्रमिक धरना जारी है। धीर-धीरे खिरिया की बाग (जमुआ हरिराम गांव) आजमगढ़ के गदनपुर, हिच्छनपट्टी, जिगिना करमनपुर, जमुआ हरीराम, जमुआ जोलहा, हसनपुर, कादीपुर हरिकेश, जेहरा पिपरी, मंदुरी, बलदेव मंदुरी गांव के ग्रामीण जनता एकजुट होकर धरना चलाते हैं ।

साथ-साथ देश-प्रदेश के मजदूर-किसान नेता,बुद्धिजीवी,सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता भी समर्थन करने आते हैं। 

ध्यान रहे यह आंदोलन मुआवजा बढ़ाने या पुनर्वास के लिए जमीन-मकान के अधिग्रहण को सिरे से खारिज करते हुए जारी है।इन गांवों के महिला-पुरुष,बूढे-बच्चे सब भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से असहमति दर्ज करा रहे हैं।

ग्रामीणों ने स्पष्ट मांग की हैं कि विस्तारीकरण के नाम पर जमीन-मकान के अधिग्रहण पर रोक लगाई जाए।

मंदुरी एयर पोर्ट के विस्तारीकरण का मास्टर प्लान रद्द किया जाए। 12-13 अक्टूबर 2022 की रात शासन-प्रशासन द्वारा महिलाओं-ग्रामीणों के उत्पीड़न की न्यायिक जांच कराकर दोषियों को सजा दी जाए। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने का मास्टर प्लान रद्द हो।

जिलाधिकारी धरना स्थल पर आकर लिखित रूप से आश्वासन दें कि जमीन-मकान अधिग्रहण नहीं होगा।

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आंदोलनकारियों को चौतरफा समर्थन की पृष्ठभूमि

पुलिसिया उत्पीड़न की कार्यवाही और जमीन-मकान बचाने के सवाल ने क्षेत्र की जनता को एकजुटता के लिए मजबूर कर दिया।

जमीन छिनने के खिलाफ क्षेत्रीय जनता स्वत:स्फूर्त एकजुटता के लिए आगे आयी। जब स्वयंस्फूर्त आंदोलन एक-दो व्यक्ति के हाथों में जाने लगा तो व्यक्ति के बरक्स सामूहिकता व लोकतांत्रिक कार्यशैली से आंदोलन चलाने के लिए जमीन-मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा बना ।

इससे फायदा यह हुआ कि आपसी जातिगत,धार्मिक,पार्टीगत बंटवारों पर उठने वाले लुके-छिपे अंतर्विरोध (जो आंदोलन को तोड़कर कमजोर कर देते हैं) को भी मुख्य बनाने से बचा गया ।

लोगों में आपसी सहमति बनी कि हमें जमीन के सवाल पर एकजुटता को बनाये रखते हुए अन्य अंतर्विरोधों को हल करना है।

आंदोलन को क्षेत्र की जनता का समर्थन तो हैं ही साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलनकारियों का भी समर्थन हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की जिला कमेटी ने समर्थन करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा (पूर्वी उ.प्र.) को फिर संयुक्त किसान मोर्चा  (उ.प्र.) के समर्थन को भी हासिल किया ।

संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान नेता राकेश टिकैत, जगतार सिंह बाजवा ,चौधरी राजेंद्र,राजवीर सिंह जादौन,भारत सिंह, पंजाब के गुरनाम सिंह चंढूनी, पूनम पंडित , बलवंत यादव, राघवेंद्र जी, शिवाजी राय, बृजेश आज़ाद, रविंद्रनाथ राय, दान बहादुर मौर्या, तेज बहादुर, रामराज, सूबेदार यादव, वीरेंद्र यादव, नंदलाल, बचाऊ राम, रजनीश भारती, वेदप्रकाश उपाध्याय, रामाश्रय यादव , विनोद सिंह, जयप्रकाश नारायण, अरविंद भारतीय आदि के क्रमश: धरने पर पहुंचते रहने के कारण आंदोलन और व्यवस्थित , ऊर्जावान होता गया।

कौन बनाता हिंदुस्तान, भारत का मज़दूर किसान के जैसे नारे की धारणा भी स्थापित हुई। इसी तरह आंदोलन के समर्थन में जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (N.A.P.M.) की मेधा पाटेकर , अरुंधती ध्रुव, सिटिज़न फ़ॉर जस्टिस एंड पीस की डॉ0 मुनीज़ा रफ़ीक खान, ऐपवा की कुसुम वर्मा, गांव के लोग से अपर्णा श्रीवास्तव, रामजी यादव, घरेलू कामगार संगठन की धनशीला देवी समर्थन में आये नेतागणों ने मजबूती प्रदान किया।

वाराणसी के लोकविद्या पीठ से चित्रा सहत्रबुध्दे,लक्ष्मण यादव,सुनील सहत्रबुध्दे,भगतसिंह छात्र मोर्चा,अखिल भारतीय प्रगतिशील छात्र मंच, मेहनतकश मुक्ति मोर्चा आदि के समर्थन ने आजमगढ़ एयरपोर्ट के सवाल को देश-प्रदेश स्तर पर प्रचारित किया।

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जमीन छिन जाने आशंका से आहत शहादतें

जमीन छिन जाने के डर और चिंता के कारण 70 दिनों मेंं 10 लोगों की मौतें ह्दयाघात , हाई ब्लड प्रेशर आदि हो चुकी हैं। किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने शोकाकुल परिजनों संवेदना व्यक्त करने गये।

इसी दौरान परिजनों ने ही इन मौतों के पीछे कारणों से अवगत कराया कि कैसे जमीन छिन जाने , अंधकारमय भविष्य की आशंका, डर, चिंता ने उनकी जान लिया है।

उदाहरण के लिए दीपक शर्मा जिगिना गांव का 32वर्षीय युवा आंदोलन में आते थे लेकिन जमीन छिनने का डर व चिंता से लागातार परेशानी को परिजनों से शेयर भी किया था, लेकिन 22-23 नवंबर 2022की रात हार्ट अटैक में खो दिया गया।

65वर्षीय आदोलन के मजबूत समर्थक सुवाष उपाध्याय 11 दिसंबर 2022 को हार्ट अटैक से मौत हो गई।धरने की उन्होंने एक दिन अध्यक्षता की थी।

ऐसे ही आंदोलन से बिछड़े साथी जवाहिर यादव (जिगना करमनपुर),लल्लन राम (गदनपुर हिच्छनपट्टी), महंगी राम (जमुआ हरिराम),सीता देवी पत्नी जीताऊ राम (जमुआ हरिराम),दीपक शर्मा(जिगना), गुलाब चंद, (हसनपुर), शिवचरण राम (जमुआ) की अपूर्णनीय क्षति को भुलाना कठिन है।

इसीलिये किसान-मजदूर नेताओं ने तय किया कि ऐसे मौतों को हम अपने आंदोलन की शहादतों में दर्ज करेंगे और उनके अपूर्णीय क्षति को पूरा करने का संकल्प को मजबूत करेंगे।

इन शहादतों की स्मृति क़ो धरना-स्थल के बैनर का हिस्सा बनाया गया। इसे विषय से भी अवगत कराते हुए डीएम को भी ज्ञापन में लिखित कहा गया कि मामले को संजीदगी से लेते हुए तत्काल आंदोलनकारियों की मांगे मानी जाय।

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आजमगढ़ एयर पोर्ट के औचित्य पर उठे सवालिया निशान

संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने कहा कि पिछले करीब पंद्रह सालों से आजमगढ़ में मंदुरी हवाई अड्डा के लिए जो जमीन अधिग्रहित हुई उस पर न कोई विमान आया न उड़ा और न ही आसपास के ग्रामीणों को रोजी-रोजगार, जीवकोपार्जन का कोई साधन उपलब्ध हुआ।

आजमगढ़ जैसे पूर्वांचल के जिलों से नौजवान रोजी-रोटी की तलाश में ट्रेनों में जानवर की तरह ठूंसकर मुम्बई, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, चेन्नई के शहरों में जाने के लिए मजबूर होते हैं।

आवश्यकता तो यह है कि रेलों की यातायात क्षमता बढ़ाई जाय और पूर्वी उ.प्र.में बड़े पैमाने पर उद्योग-धंधे खोलें जाए और खुदरा व्यवसायों को बढ़ावा दिया जाए।

मोर्चे के नेताओं ने सवाल किया कि आजमगढ़ में एयरपोर्ट के विस्तारिकरण पर इतनी आतुरता क्यों है जब जनपद से 100-150 किलोमीटर की दूरी पर वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, कुशीनगर, अयोध्या में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं।

यह भी आरोप लगाया कि जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में बेचा जा रहा है, अब उसी तर्ज पर किसानों की जमीन-मकान छीनकर निजी कंपनियों के हाथों बेचने की साजिश की जा रही है।

बुलडोजर सरकार देशभर में तीन कृषि काले कानून के जरिये किसानों की जमीन नहीं हड़प सकी तो अब चोर दरवाजे से बहुफसली,उपजाऊ और घनी आबादी वाली जमीनों को एयर पोर्ट , हाईवे,ऐक्सप्रेस-वे,फ्लाई-वे , सेंचुरी, अभ्यारण्य,इंडस्ट्रियल कारिडोर, टूरिज्म कारिडोर के नाम पर कब्जाने की कोशिश कर रही है।

इसलिए देश में जमीन बचाने की लड़ाई और खेती-किसानी बचाने की लड़ाई एक होती जा रही है।

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इस आंदोलन में संदीप पांडे ने बनारस से आजमगढ़ तक पैदल यात्रा की घोषणा की और जब वाराणसी पहुंचे तो उन्हें हिरासत में लेकर नज़रबंद कर दिया गया। राजीव यादव को शनिवार आज़मगढ़ से पुलिस ने उठा लिया। सोशल मीडिया पर दबाव के चलते दोनों को शनिवार रात छोड़ दिया गया।

सांसद दिनेश लाल यादव ऊर्फ निरहुआ के बयान से आक्रोश

पुलिस उत्पीड़न व भूमि अधिग्रहण के खिलाफ बहुत ही धैर्य का परिचय देते हुए गांव की जनता ने शांतिपूर्ण क्रमिक धरना अपने इलाके में ही शुरु किया।

21 दिनों बाद आजमगढ़ कलेक्ट्रेट तक किसान-मार्च निकालकर जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्य मंत्री,प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति महोदय के नाम ज्ञापन सौंपा।

आंदोलन में रोचकता लाने के लिए 4 नवंबर से 9 नवंबर 2022 यानि छ दिनों क्रमश: महिला-किसान पंचायत,मजदूर-किसान पंचायत,छात्र-नौजवान-किसान पंचायत,सांस्कृतिक कार्यक्रम तय किया।

जब आंदोलनकारीयों पर तंज कसते हुए आजमगढ़ सांसद दिनेश लाल यादव ऊर्फ निरहुआ का शर्मनाक बयान आया कि सरकारी जमीन को जो लोग हड़पे हैं वही एयरपोर्ट का विरोध कर रहे हैं, सरकारी जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा।

दुसरे दिन आंदोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल जवाब-तलब करने ज्ञापन के साथ सांसद निरहुआ से मिलनकर निंदा करने के लिए उनके पास पहुंच गया।

आंदोलनकारियों के प्रतिनिधि मंडल के अनुसार सांसद निरहुआ ने अस्पष्ट आश्वासन देकर भुलावा दिया कि हम नुकसान नहीं होने देने का प्रयास करेंगे।

पुलिस नाकेबंदी को तोड़ते हुए आंदोलकारियों ने 26 नवंबर 2022 को संविधान दिवस और ऐतिहासिक किसान आंदोलन के शुरुआत की दुसरी वर्षगांठ पर संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान साथ एकजुटता दिखाते हुए हजारों की संख्या में लखनऊ ईको गार्डेन से राजभवन तक किसान-मार्च के अपनी मांगों को ज्ञापन दिया।

दो दिन पहले से ही एस.डी.एम. सगड़ी , एस.ओ। आदि शासन-प्रशासन द्वारा लखनऊ न जाने देने कोशिशें की। बेवजह धारा 144 थोपा गया।

25 नवंबर की रात तक रेलवे स्टेशनों और मुख्य चौराहों पर पुलिस बल का कई दर्जन टीमें लगा दी गई। शादी-व्याह तक में आने-जाने वाली गाड़ीयों को रोककर पुलिस पूछताछ की।

खुफिया दल के लोगों ने बकरी चराने वाले छोटे बच्चों तक को दस रुपये देकर लखनऊ जाने वाले आंदोलनकारियों की सुराग जानने की कोशिश की।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार,अपने अधिकार के लिए संगठन बनाने के अधिकार के अर्थ को आंदोलनकारियों ने बहुत अच्छी तरह से अहसास किया कि वास्तविक मुद्दों के कितना खिलाफ है शासन-प्रशासन।

संयुक्त मोर्चा के तरफ से विधायकों-सांसदों को सदन में अपने मुद्दे को मजबूती से उठाने के लिए चेतावनी पत्र दिया और कि मुद्दा नहीं उठाने पर गांवों में बहिष्कार किया जायेगा।नतीजतन सदन में सवाल भी उठा।

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चुनौतियां

जमीन अधिग्रहण के प्रश्न पर उठ खड़ा हुआ स्वत:स्फूर्त आंदोलन एक संगठित आंदोलन की तरफ जा चुका है।

शासन-प्रशासन और सत्ता से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े ताकतें आंदोलन को तोड़ने, भटकाने में लगी हैं। हर आंदोलनों में अराजकता और व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा पूरा करने वाले नेताओं के कारण भी तमाम जटिलताएं आती हैं।

इनसे कैसे पार पाया जाये, इस पर मंथन नहीं हो पाया हैं अतः आपस में सामूहिकता के ख़िलाफ़ व्यक्तिगत हिरोनीज्म या संकीर्णता बड़ी कमजोरी बन सकती है। लेकिन सैध्दांतिक-राजनैतिक विभम्र व उत्तर-सत्तयुग के दौर में बाहर से खड़े होकर नहीं, आंदोलन में शामिल होकर ही ठीक किया जा सकता है।

आंदोलन को टिकाये रखने के लिए गांव -गांव कमेटियों का निर्माण और लोकतांत्रिक तरीके से आपसी मामलों को हल करते हुए व्यवस्थित और छात्र-युवा,महिला सहित मजदूरों-किसानों की एकता पर आधारित मजबूत संयुक्त मोर्चा बनाना चाहिये।

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