साप्ताहिक छुट्टी के बगैर काम करने को मजबूर बेंगलुरु के सफाई कर्मी, मिलता है बस एक Half Day

By शशिकला सिंह 

बेंगलुरु के सफाई कर्मचारी पिछले कई सालों से नियमित होनी की मांग कर रहे हैं। बीते रविवार को बेंगलुरु के सफाई कर्मचारियों का एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित मासा रैली का हिस्सा बना। कर्नाटक श्रमिक शक्ति (KSS) की कोऑर्डिनेटर सुषमा ने प्रदर्शन के दौरान सफलतापूर्वक मंच का संचालन किया।

ज्ञात हो कि बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवेज बोर्ड (BWSSB) के कर्मचारी लंबे समय से स्थाई रोजगार की मांग कर रहे हैं। इसके लिए कर्मचारियों के सैकड़ों बार प्रदर्शन भी किया है।

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बेंगलुरु के सफाई कर्मचारियों की समस्याओं और मांगों पर वर्कर्स यूनिटी से चर्चा के दौरान सुषमा ने बताया कि BWSSB में कुल 31,000 सफाई कर्मचारी काम करते हैं। इसमें से बीते सितंबर से सरकार ने मात्र 3,793 कर्मचारियों को ही नियमित किया था। लेकिन संगठन की मांग है कि बाकि बचे 24,000 कर्मचारियों को भी नियमित किया जाए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में सफाई कर्मचारी राज्य की नींव हैं और पुरुष सफाई कर्मचारियों की तुलना में महिला कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

शौचालय का नहीं है कोई इंतजाम

BWSSB में लगभग 19,000 महिलाएं काम करतीं हैं। जबकि पुरुषों के संख्या मात्र 1000 के आस पास है।

सुषमा का आरोप है कि राज्य में महिला कर्मचारियों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। उन्होंने बताया कि काम के दौरान कर्मचारियों के लिए शौचालय का कोई इंतजाम नहीं है। न पेंशन की सुविधा और न ग्रेच्युटी।

इतना ही नहीं साप्ताहिक अवकाश के नाम पर हाफ डे की छुट्टी दी जाती है। जिसके कारण कर्मचारी प्रशासनिक दबाव में आकर काम करने को मजबूर हैं।

बेंगलुरु से रैली में आईं एक महिला सफाई कर्मचारी ने बताया कि पहले सभी महिलाएं काम के दौरान नजदीक में बने अपार्टमेंट्स में शौच के लिए चली जातीं थीं। लेकिन कोरोना महामारी के बाद ऐसा करना मुश्किल हो गया है। अब गार्ड अंदर जाने से रोक देते हैं।

मातृत्व अवकाश से वंचित हैं महिला कर्मचारी

सुषमा का मानना है कि मातृत्व अवकाश हर महिला का अधिकार है, लेकिन बेंगलुरु में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करने वाली महिलाएं इस लाभ से भी वंचित हैं। उन्होंने बताया कि काम के दौरान होने वाली अनहोनी घटनाओं के लिए किसी भी तरह के मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है।

सुषमा ने बताया कि बेंगलुरु प्रशासन कर्मचारियों को झाड़ू भी मुहैया नहीं करता है यह भी कर्मचारी अपने वेतन से खरीदते हैं।

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संगठन के सदस्यों से मिली जानकारी के मुताबिक, सभी कर्मचारियों को DDC योजना के तहत वेतन दिया जाता है। इसमें ठेकेदार की कोई भूमिका नहीं होती है। सरकार कर्मचारियों के अकाउंट में डायरेक्ट सैलरी भेजती है।

रैली में शामिल हुए KSS के सदस्य रवि मोहन ने वर्कर्स यूनिटी टीम के साथ सीवेज कर्मचारियों की समस्याओं पर खुल कर चर्चा की। उन्होंने बताया कि फिलहाल बीते चार सालों से सीवेज सफाई के दौरान होने वाली कर्मचारियों की मौत अंकुश लगा है। लेकिन आज भी सीवेज कर्मंचारियों को बेसिक सुविधाएं नहीं दी जा रहीं हैं।

साल में एक बार मिलते हैं सुरक्षा उपकरण

रवि का मानना है कि एक सीवेज सफाई कर्मचारी के लिए मास्क सबसे बड़ा और जरूरी सामान है, लेकिन आज भी कर्मचारी बिना मास्क के ही काम करते नजर आते हैं। इतना ही नहीं साल में एक बार यूनिफार्म दी जाती है और जूतों का भी यही हिसाब है। इन जरूरी सुविधाओं के अभाव के चलते कर्मचारी लगातार बीमार हो रहे हैं, लेकिन सरकार की आंखें अभी भी नहीं खुल रही हैं।

रवि ने कहा कि बेंगलुरु सफाई कर्मचारी मुख्य रूप से नियमित करने की मांग को लेकर मासा की रैली में शामिल हुए हैं। साथ ही मासा की अन्य मांगों का भी पूरा समर्थन करते हैं।

जातिगत भेदभाव

अगर हम सफाई कर्मचारियों की बात करते हैं तो उसमें जाति का मुद्दा भी एक बड़ा विषय है। बातचीत के दौरान रवि ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवेज बोर्ड (BWSSB) में 80 फीसदी कर्मचारी दलित समुदाय से आते है, जबकि अन्य 20 फीसदी सामान्य वर्ग से आते हैं। रवि का मानना है देश में जातीय भेदभाव आज भी खत्म नहीं हुआ है, जिसके कारण सफाई कर्मचारियों को काम के दौरान काफी चुनौतियों का सामान भी करना पड़ता है। आज भी लोग कर्मचारियों को पानी पिलाने में संकोच करते हैं।

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चर्चा के अंत में रवि ने नए लेबर कोड और मासा की अन्य छह सूत्रीय मांगों का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी सरकार द्वारा लाया गया, नया लेबर कोड हर तरह से और हर वर्ग के मजदूर के लिए घातक है, जिसका KSS विरोध करता है और तत्काल वापस लेने की भी मांग करता है

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One Comment on “साप्ताहिक छुट्टी के बगैर काम करने को मजबूर बेंगलुरु के सफाई कर्मी, मिलता है बस एक Half Day”

  1. कर्नाटक ही नहीं कई राज्यों में सफाई कर्मचारियों के साथ भेदभाव होता है…

    ठेके पर काम करने वालों की हालात ज्यादा खराब है…

    अनहोनी के दौरान मृत्यु हो जाए, तो कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता…

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