दिल्ली : मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जंतर-मंतर पर विशाल धरना प्रदर्शन

देश की राजधानी दिल्ली के आज जंतर मंतर पर 3 विशाल धरनों का आयोजन किया गया। इसमें दिल्ली आशा कामगार यूनियन सम्बद्ध AICCTU द्वारा देशभर की आशा वर्कर्स ने अपनी मांगों के लिए धरना दिया।

दूसरी तरफ CITU की ओर से “21 नवंबर दिल्ली चलो” का नारा देकर मज़दूर विरोधी लेबर कोड को रद्द करने की मांग को लेकर प्रदर्शन का आयोजन किया गया है।

तीसरा प्रोटेस्ट ऑल इंडिया इंडिपेंडेंस विघुत एम्प्लाइज फेडरेशन ने ‘बिजली संशोधन बिल 2022’ को वापस लेने की मांग के साथ धरना दिया।

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आशा वर्कर्स का धरना, नहीं मिली पुलिस परमिशन

दिल्ली आशा कामगार यूनियन सम्बद्ध AICCTU द्वारा आयोजित प्रदर्शन में देशभर से भारी संख्या में आशा वर्कर्स शामिल हुईं। आयोजकों ने बताया कि ज्यादातर आशा वर्कर्स बीते 19 नवंबर को ही दिल्ली पहुंच गए थे, फिर भी दिल्ली पुलिस ने धरने की परमिशन को कैंसल कर दिया। इसके बाद भी सभी आशा वर्कर्स आज धरना स्थल पहुंचे।

धरने में शामिल आशा वर्कर्स की मांग है कि सभी स्कीम वर्कर्स जिसमें आशा मिड-डे मिल, आंगनबाड़ी ममता आदि को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाये, सभी स्कीम वर्कर्स के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 28,000 रुपए मासिक वेतन तय किया जाये। पेंशन सहित समुचित सामाजिक सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित की जाये।

‘तत्काल रद्द हो नए लेबर कोड्स ‘

वहीं दूसरी तरफ फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स’ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMSRI) सम्बद्ध CITU की ओर से नए लेबर कोड्स के विरोध में धरने का आयोजन किया गया।

संगठन के सदस्यों का आरोप है कि मोदी सरकार द्वारा लाया जाने वाले नए लेबर कोड्स मज़दूर संगठनों, मज़दूरों और कर्मचारियों, सभी के लिए घातक है। इसलिए इन कोड्स को तत्काल रद्द किया जाये और SPE एक्ट 1936 को लागू किया जाये।

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नए लेबर कोड को मज़दूरों का दमन करने की नीतियों के साथ तैयार किया गया है।

ज्ञात हो कि इसी संबंध में बीते 13 नवंबर को मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के बैनर तले देश भर से जुटे दर्जनों मज़दूर संगठनों, ट्रेड यूनियनों, चाय बागान वर्कर, मनरेगा, आंगनबाड़ी वर्करों ने नए लेबर कोड के ख़िलाफ़ विशाल प्रदर्शन किया था। तत्काल रद्द करने की मांग की थी। इस सम्बन्ध ने मासा के प्रतिनिधि मंडल ने अपनी छह सूत्रीय मांगों का ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपा था।

बिजली संशोधन बिल 2022

वहीं तीसरा धरना दलित संगठनों का संयुक्त संगठन आल इंडिया इंडिपेंडेंस विघुत एम्प्लाइज फेडरेशन द्वारा आयोजित किया गया। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि बिजली संशोधन बिल 2022 को वापस लिया जाये। राज्यों का अधिकार छीनने वाले बिडिंग दस्तावेजों को रद्द किया जाये और निजी बिजली कम्पनी में एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण दिया जाये। इसके अलावा सरकारी बिजली कम्पिनियों को बंद करने की सूचना को वापस लिया जाये।

संगठन के सदस्यों का मानना है कि बिजली संशोधन बिल 2022 न केवल बिजली उपभोक्ताओं के लिए बल्कि बिजली क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी और इंजीनियरों के लिए भी घातक है।

उन्होंने कहा कि इस संशोधन विधेयक के जरिए केंद्र सरकार बिजली वितरण हेतु निजी घरानों को सरकारी बिजली वितरण के नेटवर्क के जरिए बिजली आपूर्ति करने की सुविधा देने जा रही है। इसलिए एआईपीईएफ ने मांग की है कि केंद्र सरकार ग्राहकों, कर्मचारियों के साथ-साथ इंजीनियरों के हितों का भी ध्यान रखते हुए इस बिल को तत्काल वापस ले।

प्रदर्शनकरियों ने कहा कि अगर बिजली कर्मचारियों और आम उपभोक्ताओं की सहमति के बगैर ‘बिजली (संशोधन) विधेयक-2022’ संसद में पास होता है, तो पूरे देश में आंदोलन शुरू हो जाएगा।

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गौरतलब है कि नवम्बर या दिसंबर के पहले सप्ताह के अंदर संसद के शीतकालीन सत्र के होने का अनुमान है। जिसमें इस नए लेबर कोड और बिजली संशोधन बिल 2022 को मोदी सरकार द्वारा लागू किया जाने का डर कर्मचारियों और मज़दूरों ने दिख रहा है। यही कारण है कि नवंबर के महीने ने जंतर मंतर के अलावा भी दिल्ली के कई प्रसिद्ध धरना स्थलों पर लोग अपनी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

आप को बता दें कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब बीते एक हफ्ते में दिल्ली में मोदी सरकार की नई नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं।

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