Hipad: कंपनी ने दिया डेढ़ रुपये का बोनस, मज़दूरों ने लगाया करोड़ रुपये सैलरी गबन का आरोप

hipad noida labour unrest

“इस बार दीपावली में कंपनी ने बोनस नहीं दिया। इसके बाद कंपनी ने बंदों को निकालना शुरू कर दिया और एक महीने बाद बोनस के नाम पर न्यूनतम डेढ़ रुपये तक की राशि दी।”

ये कहते हुए क़रीब 24 साल के मनीष कुमार आक्रोष से भर जाते हैं।

वो दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर 63 में स्थित स्मार्टफ़ोन बनाने वाली कंपनी हाईपैड टेक्नोलॉजी इंडिया में ऑपरेटर के पद पर कार्यरत रहे हैं।

हाईपैड टेक्नोलॉजी कंपनी भारत में तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे चीनी स्मार्टफ़ोन कंपनी ओप्पो और शाओमी के हैंडसेट असेंबल करती है।

मनीष बताते हैं कि क़रीब दो साल पहले अस्तित्व में आई इस कंपनी में मज़दूर उत्पीड़न की सभी हदें पार की गईं।

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9700 की सैलरी में क्या खाएं क्या बचाएं

उनके अनुसार, “जबरदस्ती ओवरटाइम, मनमानी वेतन कटौती, फायर करने के बाद सैलरी न देना, बात बात पर गाली गलौच और सज़ा देना आम था।”

इसी फैक्ट्री में काम करने वाले गौरव बताते हैं, “कंपनी में काम की स्थितियां काफी विकट हैं। असेंबली लाइन में ऑपरेटरों की संख्या कुल वर्क फ़ोर्स का क़रीब 80 प्रतिशत होती है।”

“ऑपरेटरों की सैलरी सीटीसी क़रीब 12,500 है, जबकि कट-कटा कर हाथ में 9,700 रुपये आता है। ओवर टाइम 100 रुपये/घंटा है, लेकिन पिछले छह महीने से कभी पूरी सैलरी किसी को नहीं मिली।”

वेंडर के मार्फत छह महीने पहले कंपनी ज्वाइन करने वाले कपिल कहते हैं कि ‘कंपनी में कुल 10 प्रतिशत चीनी वर्कर हैं, जो सुपरवाइज़र या मैनेजर के पद पर हैं। वो स्थानीय वर्करों के साथ दोयम दर्जे का सलूक करते हैं।’

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3 दिसम्बर को कंपनी गेट पर इकट्ठा हुए मज़दूर। (फ़ोटोः वर्कर्स यूनिटी)
जोर जबरदस्ती, धमकी, फ़ायर

हाईपैड में काम करने वाले मज़दूर स्किल्ड हैं, आम तौर पर बीटेक, आईटीआई, पॉलिटेक्निक करने वाले लड़के हैं।

मनीष बताते हैं, “ग़लती होने पर चायनीज़ सुपरवाइज़र कहते हैं, आई स्लैप यू (थप्पड़ मारूंगा)। लड़कों को बेंच पर हाथ उपर कर घंटों खड़े रहने की सज़ा दी जाती है।”

उनके मुताबिक, “बात बात पर वार्निंग लेटर जारी किया जाता है। एक एक मिनट का हिसाब लिया जाता है। पेशाब जाने तक पर भी जवाब तलब किया जाता है।”

मज़दूर बताते हैं कि काम का इतना दबाव रहता है कि अगर कुछ मिनटों के लिए भी कोई न रहे तो असेंबली लाइन बाधित हो जाती है।

मनीष कुमार ने बताया कि पूरे दिन के काम के बीच एक घंटे का लंच टाइम होता है। कैंटीन में इतनी भीड़ होती है कि एक घंटे में तो कई लोगों का नंबर भी नहीं आ पाता।

जबकि सुपरवाइज़रों की गुहार 45 मिनट बाद ही शुरू हो जाती है। अगर किसी को लंच टाइम से देर हो जाती है, तो उसका वेतन कटना शुरू हो जाता है।

वेंडर अपने ईशू किए एटीएम कार्ड वर्करों को देते हैं और कभी कभार ओटीपी के माध्यम से पैसे निकाल लेते हैं, जिसकी कंपनी में कोई सुनवाई नहीं होती।

तकरार होने पर वेंडर आईकार्ड छीन कर मनमाने तरीके से वर्कर को निकाल देते हैं।

ताज़ा घटनाक्रम

पिछले महीने 29 नवंबर को अचानक बिना नोटिस के फ़ायर कर दिए गए 200 मज़दूरों का उग्र प्रदर्शन हुआ था।

ये विरोध इतना उग्र था कि कंपनी के एक फ्लोर की असेंबली लाइन क़रीब क़रीब तहस नहस हो गई।

इस मामले में पुलिस ने कुछ मज़दूरों को गिरफ्तार किया, और उसके बाद कंपनी को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया।

29 नवंबर की घटना के बाद कंपनी ने मज़दूरों को 3 दिसम्बर को आने को कहा लेकिन जब सुबह मज़दूर पहुंचे तो कंपनी ने 5 दिसम्बर को आने को कहा।

मज़दूरों का मानना है कि ये घटना नहीं भी होती तो भी कंपनी अपना टार्गेट पूरा कर चुकी थी और मज़दूरों गैर कानूनी तरीके से फायर करना जारी रखती।

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कंपनी में तोड़फोड़ के बाद कार्यरत मज़दूरों को भी तीन दिसम्बर को लौटा दिया गया।  (फ़ोटोः वर्कर्स यूनिटी)
सैलरी में करोड़ों रुपयों का ग़बन

मनीष कहते हैं कि एक मिनट की देरी से भी कार्ड पंच हुआ तो आधे दिन की सैलरी काट ली जाती है।

अगर लंच से लौटने में एक मिनट की भी देरी हुई तो पांच रुपये प्रति मिनट के हिसाब से दिहाड़ी कटनी शुरू हो जाती है।

अगर किसी महीने में पांच रविवार है तो एक रविवार को आना ही होगा, जबकि उसके बदले ओवर टाइम भी नहीं दिया जाता।

अनाप शनाप वेतन कटौती हर महीने की बात है, जिस पर कोई भी दावा सुना नहीं जाता।

जिस मज़दूर को निकाला जाता है उसका आईकार्ड छीन लिया जाता है और उसका बकाया वेतन भी नहीं दिया जाता है।

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29 नवंबर को हुए उग्र विरोध प्रदर्शन में तहस नहस हुई असेंबली लाइन। (फ़ोटोः वायरल वीडियो का स्क्रीन खॉट)

लंच में देरी होने, आने में एक मिनट की भी देरी होने, ओवर टाइम चार घंटे कराकर तीन घंटे दर्ज करने के अनेक बहानों से सैलरी काट ली जाती है।

मज़दूरों का कहना है कि पिछले छह महीने से वेतन कटौती, जुर्माना, सैलरी जब्त किया जाने आदि वर्करों की सैलरी के करोड़ों रुपये कंपनी गबन कर चुकी है।

इसकी पुष्टि के लिए मज़दूरों ने अपनी सैलरी स्लिप दिखाई और कहा कि पिछले 6 महीने से हर महीने 500 से लेकर 2000 रुपये तक की कटौती की गई।

कई मजदूरों को निकालने के बाद उनको सैलरी भी नहीं दी गई। ओवर टाइम के पूरे पैसे नहीं दिए गए और इस तरह अगर जोड़ा जाए तो यह 20 करोड़ से ज्यादा ही होगा।

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कंपनी में मज़दूर काम कर पाएंगे या नहीं, असमंजस का है माहौल। (फ़ोटोः वर्कर्स यूनिटी)
मज़दूर विरोधी नीतियों से आईटी सेक्टर में तबाही

ग़ाज़ियाबाद के ट्रेड यूनियनिस्ट सुभाष शर्मा कहते हैं कि वर्तमान मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों से उद्योग जगत में तबाही मची हुई है।

इस सरकार ने हायर एंड फ़ायर की नीति को स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसे जुमलों में लपेट कर लागू कर दिया है।

उनके मुताबिक, फैक्ट्री ऐक्ट, अप्रेंटिस ऐक्ट में बदलाव करके मोदी सरकार ने पूंजीपतियों को लूटने की खुली आज़ादी दे दी है।

गुड़गांव में ट्रेड यूनियन आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता श्यामवीर कहते हैं कि एक तरफ़ लुभावने जुमले और दूसरी तरफ़ फिक्स टर्म एम्प्लायमेंट (एफ़टीई) और नीम परियोजना जैसी नीतियां लागू की जा रही हैं।

उनका कहना है कि सरकार के इस कदम से पूंजीपतियों का हौसला बढ़ा है और वो हायर एंड फ़ायर की नीति को पूरी तरह अमल में लाने में जुट गए हैं।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र मीडिया और निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो करें।) 

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