Zepto द्वारा शोषण का डिलीवरी ब्वॉयज़ ने किया विरोध

Zepto delivery boys protest

Zepto कंपनी के करीबन 30 डिलीवरी बॉय्ज़ ने मजदूर विरोधी रवैय्ये के खिलाफ दिल्ली के पश्चिम विहार के B-2/8 में स्थित कंपनी आउट्लेट के सामने 29 मई को विरोध प्रदर्शन किया।

हाल ही में 10 मिनट के अंदर डिलीवरी करने का दावा करने के लिए सुर्खियों में रहे Zepto कंपनी की इस नीति को कई लोगों ने अमानवीय करार दिया था जिनमें उद्योगपति आनंद महिंद्रा भी शामिल थे।

Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक डिलीवरी में थोड़ी भी देर होने से डिलीवरी बॉय्ज़ के पैसे काट लिए जाते हैं।

समय पर सामान पहुंचाने के लिए डिलीवरी बॉय्ज़ तेज गाड़ी चलाने और ट्राफिक नियम तोड़ने पर बाध्य हो जाते हैं।

मैनेजर, TL देते हैं धमकी

प्रदर्शन में शामिल एक डिलीवरी पार्टनर ने हमें बताया कि उनके मैनेजर और टीम लीडर उन्हें धमकाते हैं, कहते हैं ‘आइडी बंद कर देंगे’।

जिस आइडी की यहाँ बात हो रही है, वह एक तरह से इनके काम करने का लाइसेन्स है।

उन्होंने कहा कि डिलीवरी में थोड़ी सी भी देर हो, तो उसे ब्रीच का नाम दिया जाता है और पैसे काट लिए जाते हैं।

वे कहते हैं, “डिलीवरी में हुई देरी में हमारी गलती है या नहीं, इससे कंपनी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।”

“ऑर्डर करने के बाद दुकान द्वारा सामान पैक करने में 1-2 मिनट लग जाते हैं। गेटेड कॉलोनियों में कभी कहीं गेट बंद रहता तो घूम कर जाना पड़ता है।”

ना बैठने की जगह ना पानी की व्यवस्था

“कंपनी का पश्चिम विहार आउट्लेट एक बिल्डिंग की सिर्फ बेसमेंट तक सीमित है, जिससे 125 डिलीवरी बॉय्ज़ काम करते हैं।”

उन्होंने बताया, “लेकिन बैठने की जगह सिर्फ 15-20 लोगों की है। जब तक ऑर्डर नहीं मिलता, तब तक हम बिल्डिंग की सीढ़ियों पर या कहीं जगह खोजकर बैठे रहते हैं।”

“इनके पास पार्किंग की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। फिलहाल पास की एक खुली जगह पर बिना शेड के पार्किंग की जगह दी गई है।”

“लेकिन एक साथ इतनी सारी गाड़ियों के खड़े रहने से मोहल्लेवालों से बहस होती है, क्यूंकि वह कोई आधिकारिक पार्किंग नहीं है।”

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वे कहते हैं, “हमें धूप में इंतज़ार करना पड़ता है। कंपनी की तरफ से चाय या पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई है।”

“अगर किसी का एक्सीडेंट हो जाए या चोट लग जाए, या गर्मी में तबीयत खराब हो जाए तो स्वास्थ सेवा का कोई प्रावधान नहीं बनाया गया है।”

दरअसल, कंपनियां डिलीवरी बॉय्ज़ को मजदूर का दर्जा ना देकर फ्रीलांसर कहती है ताकि वह न्यूनतम मजदूरी या बाकी सुरक्षा देने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकें।

कंपनी ने डिलीवरी बॉय्ज़ को जूते नहीं दिए हैं बल्कि नाईलॉन के यूनिफॉर्म दिए हैं जिसे इतनी भीषण गर्मी में पहनना दूभर हो जाता है।

दोहरे मापदंड

कुछ दिनों पहले आई Economic Times की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर डिलीवरी में देर भी होती है तो मौसम की मार को देखते हुए उनके वेतन में कोई कटौती नहीं की जाएगी।

रिपोर्ट मे कहा गया था कि डिलीवरी बॉय्ज़ के स्वास्थ की देखभाल के लिए डॉक्टरों से करार किया गया है और उन्हें ऑर्डरों के बीच ब्रेक लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

लेकिन जमीन पर स्थिति इसके उलट है। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने बताया कि कंपनी कोई कोरोना गाइडलाइन का भी कोई ध्यान नहीं रखती।

ना सिर्फ उनके पैसे काटे जा रहे हैं, बल्कि उन्हें धमकियां, शोषण और मौसम की मार झेलनी पड़ रही है।

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