पारसनाथ का मुद्दा जनता को भड़काने के लिए उछाला गयाः झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा

rajbhavan march

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा ने केंद्र सरकार से आदिवासी मूलवासी जनता के जल, जंगल और जमीन के अधिकारों को सुनिश्चित करने की मांग की है । इसके अलावा मोर्चा ने पूरे देश की प्रगतिशील जनता से आह्वान किया है कि आदिवासी समाज के खिलाफ चल रहे ऐतिहासिक अन्याय के खिलाफ जारी संघर्ष में मोर्चा का हिस्सा बने।

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा ने इस संबंध में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। जिसमें लिखा है कि पिछले कुछ सालों में धार्मिक असहिष्णुता यानि अलग-अलग धर्मों के बीच तनाव बढ़ गया है।

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा का आरोप है कि कुछ खास राजनीतिक पार्टियां इसके विपरीत जाकर अलग-अलग धर्म के लोगों को लड़ाने में व्यस्त हैं। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों को वोट की राजनीति करने के लिए बाँट दिया गया है।

संगठन का यह भी आरोप है कि भारत में बेरोजगारी और भुखमरी के बारे में बात नहीं होती। सिर्फ धार्मिक भावनाओं के आहत होने की बातें होती हैं। भ्रष्टाचार, जल-जंगल-ज़मीन की कॉर्पोरेट द्वारा लूट और आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ते सैन्यीकरण से क्या किसी के भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचती?

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा के सदस्यों का कहना है कि अभी हाल ही में झारखण्ड के मारांग-बुरु पारसनाथ क्षेत्र में कुछ ऐसा ही मसला बना जिसे मीडिया ने खूब उछाला। एक बार फिर से धार्मिक विवाद के नाम पर जनता को भड़काने की पूरी कोशिश की गयी। जहाँ एक तरफ जैन समुदाय ने इस क्षेत्र में पर्यटन स्थल बनाने के खिलाफ पूरे देश में धरना प्रदर्शन किया, वहीँ दूसरी तरफ मारांग-बुरु पारसनाथ क्षेत्र में जैनों के आधिपत्य के खिलाफ स्थानीय आदिवासी-मूलवासी जनता ने भी मोर्चा खोला।

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झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि मारांग-बुरु पारसनाथ में आदिवासी-मूलवासी जनता के ऐतिहासिक हक़ों और अधिकारों का समर्थन करता है और मारांग बुरु बचाने की मुहीम में एकजुट है।

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा ने जनता से आह्वान किया है कि वह धार्मिक, राजनीतिक कर्मकांडों के पीछे छुपे पूंजीवादी रवैये को समझे और अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर बचाने के साथ-साथ अपने मानवाधिकारों को भी सुनिश्चित करें।

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा इस मुद्दे से उपजे कई सवालों को जनता के सामने रखते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब  मांगा है।

संगठन का पहल सवाल है कि गिरिडीह मारांग बुरु पारसनाथ क्षेत्र में अगर पर्यटन काम्प्लेक्स बनेगा तो उससे किसे लाभ और किसे हानि है? जमीन तो निश्चित रूप से आदिवासी समाज से छीनी जाएगी और पैसा लगाया जायेगा बहुराष्ट्रीय कंपनियों का। इस क्षेत्र में विकास का कुछ ऐसा खाका तैयार है जिसमें बुलेट ट्रेन का भी जिक्र है। इन परियोजनाओं की प्लानिंग में क्या स्थानीय निवासियों के विचार सरकार ने लिए हैं?

जन संघर्ष मोर्चा का कहना है कि इस पूरे इलाके को उग्रवाद से निपटने के नाम पर सैन्य कैम्पों से भर दिया गया है। उनका दूसरा सवाल है कि क्या पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में यह करना न्यायोचित है? इस इलाके के जल-जंगल-जमीन बचाने वाले भगवान दास किस्कू को पिछले साल झूठे मुकदमों में जेल में डाल दिया गया है।

संगठन का आरोप है कि आये दिन सुरक्षाबलों द्वारा स्थानीय आदिवासी जनता को परेशान करने की खबरें आती रहती हैं।

मिली जानकारी के मुताबिक कुछ दिनों पहले सुरक्षा बलों ने छोटे-छोटे बच्चों के साथ भी मारपीट किया था। इस क्षेत्र के स्कूलों में भी सुरक्षा बलों ने कई बार कब्ज़ा जमाया जो शिक्षा के अधिकारों का हनन है।

जन संघर्ष मोर्चा ने विज्ञप्ति के माध्यम से केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के बीच काम करने के तरीके पर भी कई सवाल उठाये हैं।

संगठन का तीसरा सवाल है कि शुरुआत में जैसे ही जैन समुदाय ने पर्यटन स्थल का विरोध करना शुरू किया, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के पर्यटन स्थल बनाने के निर्णय को ख़ारिज कर दिया। क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकार एक दूसरे के विपरीत काम करते रह सकते हैं?

संगठन का कहना है कि इससे भारत के लोकतंत्र के कार्यशैली पर सवाल बनते हैं।

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ज्ञात हो कि इसी मुद्दे के दौरान गिरिडीह सांसद सी पी चौधरी का विवादित बयान भी सामने आया था जिसमें कहा गया था कि जैन तीर्थस्थल के पांच कि. मी. क्षेत्र में किसी को भी मांस-मदिरा खाने की अनुमति नहीं होगी। इस पर संगठन का सवाल है कि क्या लोकतंत्र के प्रतिनिधि लोगों के खान पान को लेकर ऐसे फरमान जारी कर सकते हैं?

मसलन इस मामले से निबटने के लिए एक कमिटी का गठन किया गया था जिसमें आदिवासी प्रतिनिधियों में इस केवल एक व्यक्ति  का चयन किया गया था जबकि जैन समुदाय में से दो सदस्यों को चुना गया था। इस पर संगठन का सवाल है कि जिस क्षेत्र में आदिवासी-मूलवासी बहुसंख्या में निवास करते हों, उनके प्रतिनिधियों की संख्या दूसरे समुदाय से कम क्यों है?

जन संघर्ष मोर्चा के सदस्यों का आरोप है कि मुद्दे को भड़काने में जहाँ  राजनीतिक पार्टियां और मीडिया जोर-शोर से लगी रही, वहीँ जनता के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए आनन-फानन में मसले का समाधान किया जा रहा है।

सदस्यों का कहना है कि सिर्फ मीडिया में बयान देकर सरकार अपना पल्ला झाड़कर नहीं निकल सकती। संगठन की मांग है कि पूरे मसले की उच्च-स्तरीय और स्वतंत्र जांच होनी चाहिए और आदिवासी-मूलवासी के हक़ों को लिखित रूप से माना जाये।

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