नोटबंदी पर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली जस्टिस नागरत्ना कौन हैं?

BY: नित्यानंद गायेन 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आपात नोटबंदी के फैसले को  भले  ही  सुप्रीमकोर्ट  की पांच जजों की पीठ ने चार एक के बहुमत से सही  ठहराया हो लेकिन, इस फैसले के खिलाफ़ एक मात्र जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने नोटबंदी को असंवैधानिक और गैरकानूनी कहा है।

सोमवार, 2 जनवरी को  इस मामले  में सुनवाई के दौरान  जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा –

“8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के तहत केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी है। लेकिन फैसले के छह साल बाद कुछ नहीं किया जा सकता।”

अपने फैसले में  जस्टिस नागरत्ना ने जो कहा, वह बहुत महत्वपूर्ण है,  उन्होंने  कहा –

500 रुपये और 1,000 रुपये की सीरीज के नोटों को चलन से बाहर एक कानून के माध्यम से किया जाना था, न कि एक अधिसूचना के माध्यम से।  संसद में चर्चा के बाद सहमति से इस पर कानून बनाने की चर्चा थी।  नोटबंदी के कानून पर संसद में चर्चा होनी चाहिए थे। देश के लिए इतने अहम मुद्दे पर संसद को अलग नहीं छोड़ा जा सकता है।  RBI और केंद्र ने जो जवाब दाखिल किए हैं, उनमें अंतर्निहित विरोधाभास है।  नोटबंदी की पूरी कवायद 24 घंटे में की गई। जबकि गंभीर आर्थिक प्रभाव वाले केंद्र के इस प्रस्ताव को विशेषज्ञ समिति के समक्ष रखा जाना चाहिए था।

उनके इस एतिहासिक फैसले की चर्चा अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि उन्होंने इसके अगले  ही दिन  एक सच्चे और निष्पक्ष न्यायाधीश  होने का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए  मंत्रियों और नेताओं  के साम्प्रदायिक, भड़काऊ और  नफरती  भाषणों के लिए भी सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

yogi adityanath

मंत्री के नफ़रती भाषणों  के लिए सरकार और पार्टियां ज़िम्मेदार 

दूसरे  दिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के  मामले में कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। हालांकि, संविधान पीठ में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने दोनों बार बेंच से अलग रुख रखा है।

उन्होंने मंगलवार को अभिव्यक्ति की आजादी मामले में कहा है कि नफरत फैलाने वाला भाषण हमारे संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करता है। अगर कोई मंत्री अपने बयान में अपमानजनक टिप्पणी करता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा-

नफ़रत फैलाने वाला भाषण हमारे संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करता है। अगर कोई मंत्री अपने बयान में अपमानजनक टिप्पणी करता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

इस मुद्दे पर बेंच के फैसले पर असहमति व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हाल के दिनों में नफरती और गैरजिम्मेदाराना भाषण चिंता का कारण हैं क्योंकि यह समाज के लिए हानिकारक हैं।

अभद्र भाषा संविधान के मूलभूत मूल्यों पर हमला करती है। उन्होंने कहा, भारत जैसे बहुलता और बहु-संस्कृतिवाद पर आधारित देश में नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां हैं।

जबकि पांच जजों वाली संविधान पीठ में जस्टिस एस ए नज़ीर, बी आर गवई, ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन ने कहा है कि एक मंत्री के बयान को सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लेखित प्रतिबंधों को छोड़कर कोई अतिरिक्त पाबंदी की आवश्यकता नहीं है।

जबकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि जबकि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बहुत आवश्यक अधिकार है, ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित और शिक्षित किया जा सके, यह अभद्र भाषा में नहीं बदल सकता।

जस्टिस नागरत्ना  के  वक्तव्यों  को मैं इसलिए कोट कर रहा हूँ क्योंकि भारत के न्यायिक इतिहास में  उनके इन शब्दों को  दशकों तक नहीं, सदियों तक याद रखा जाएगा।

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गौरवपूर्ण उदाहरण

आज जब कोई जज किसी भय,  निजी स्वार्थ और राज्य सभा की  सदस्यता के लिए अपनी नैतिकता और संवैधानिक कर्तव्यों को  छोड़ कर  सत्ता के पक्ष में  फैसला सुनाने को तैयार बैठा हो, ऐसे वक्त में इस तरह के फैसले न सिर्फ साहसिक  ईमानदारी कदम है, बल्कि यह जनहित में लिए गये फैसले हैं जो कि न्याय व्यवस्था  के लिए  शानदार और गौरवपूर्ण  उदाहरण हैं।

जस्टिस नागरत्ना ने  बीते साल 1 अक्टूबर, शनिवार को  कहा था:- “कानून का शासन न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बहुत निर्भर है।”

जस्टिस बीवी नागरत्ना सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, पुणे के विधि दिवस समारोह में जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ मेमोरियल पब्लिक लेक्चर ‘सुशासन पर न्यायिक प्रक्षेपवक्र’ विषय पर बोल रही थीं।

गौरतलब है कि , 8 नवंबर 2016 को  अचानक टीवी पर आकर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किये गये आपात नोटबंदी की घोषणा के बाद देश में हाहाकार जैसा मच गया था,  देश भर में बैंकों और एटीएम मशीनों के बाहर लंबी कतारें लगीं थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नोटबंदी के दौरान कैश के लिए लाइनों में लगने की वजह से हुए हादसों में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस बात को खुद मोदी सरकार ने दो साल बाद संसद में स्वीकार भी किया था। हालाँकि सरकारी आंकड़ा इससे भिन्न और कम था।

modi supreme court

अगली प्रधान न्यायाधीश!

18 दिसंबर 2018 को संसद में एक लिखित जवाब में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि, “नोटबंदी के दौरान नोट बदलने के लिये लाइन में खड़े होने से, सदमे से और काम के दबाव आदि से व्यक्तियों और बैंक के कर्मचारियों की मौत और परिजनों को दिये गये मुआवजे के बारे में एसबीआई को छोड़कर सरकारी क्षेत्र के किसी बैंक ने कोई सूचना नहीं दी है।”

जहां एक ओर जस्टिस नागरत्ना अपने हाल के फैसलों के लिए सुर्ख़ियों में हैं, वहीं यह भी ख़बर है कि वे सर्वोच्च न्यायालय की अगली  प्रधान न्यायाधीश  बन सकती हैं!  लेकिन अभी महज यह एक ख़बर मात्र है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश ने  कई मामलों में किस तरह के फैसले दिए और  सेवानिवृत्त होने के बाद किस तरह से सत्ता पक्ष की तरफ से राज्यसभा में नियुक्त हुए  हम सभी जानते हैं।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना  ने यह पहली बार नहीं किया है, इससे पहले भी उन्होंने कई मामलों में बेबाक और न्यायपरक फैसला देकर न्याय पालिका की विश्वसनीयता  और गरिमा को कायम रखने  का प्रयास किया है।

साल 2012 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संचालन  के मामले में अपनी टिप्पणी  में उन्होंने कहा था – “किसी भी मीडिया चैनल के लिए सच पर आधारित सूचना दिखाना एक प्रमुख काम है। लेकिन सनसनीखेज के रूप में दिखाई जाने वालीं ‘ब्रेकिंग न्यूज’, ‘फ्लैश न्यूज’, या किसी भी ऐसी खबर पर अंकुश लगाना चाहिए।”

कौन हैं जस्टिस नागरत्ना

इंडियन एक्सप्रेस ने जस्टिस नागरत्ना का परिचय विस्तार से प्रकाशित किया है जिसके मुताबिक,  उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ फैकल्टी से कानून की डिग्री हासिल किया है और जस्टिस नागरत्ना के पिता ईएस वेंकटरमैया साल 1989 में छह महीने के लिए चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रहे थे। उनके पिता के बारे में यह जानकारी विकिपीडिया पर भी उपलब्ध है।

जस्टिस बी.वी.  नागरत्ना का पूरा नाम है बैंगलोर वेंकटरमैया नागरत्ना। उन्हें  साल 2021 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था। इससे पहले वो कर्नाटक हाईकोर्ट में जज थीं।

न्याय का  सिद्धांत यह होना चाहिए कि समाज का सबसे कमज़ोर वर्ग और वंचितों का भरोसा कायम रहे भले ही बहुतम की सत्ता उनके खिलाफ़ कार्य करें लेकिन जब वे न्याय के बारे में सोचे तो न्यायालय और न्यायधीशों के पर उनका यकीन कायम रहे कि जब वे इंसाफ के लिए उनके सामने जायेंगे तो उन्हें इंसाफ मिलेगा।

उन्हें यह नहीं लगना चाहिए कि-“मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है क्या मिरे हक़ में फ़ैसला देगा!” सुदर्शन फ़कीर ने यह शे’र  कब और क्यों कर कहा था पता नहीं लेकिन, ज़रूर किसी नाइंसाफी के दर्द से कहा होगा।

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