भारत में भी क्यूबा जैसी मेडिकल व्यवस्था लागू करने की ज़रूरत, स्वास्थ्य बजट बढ़ाया जाएः डॉ. सीडी शर्मा

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/01/cd-sharma.jpg

स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाना आवश्यक है, उन्होंने कहा कि भारत सरकार जीडीपी का केवल 1.4 प्रतिशत तक स्वास्थ्य पर खर्च करती है जबकि दूसरे कई देश जीडीपी का 10 प्रतिशत से भी अधिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।

दुनिया में पहली बार रूस और क्यूबा ने जनता के स्वास्थ्य को लेकर क्रांतिकारी पहलकदमी की और उसी का दबाव रहा कि पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य के नाम पर सरकारों ने जनता के स्वास्थ्य को लेकर रियायतें दीं।

बीते रविवार को दिल्ली में जन स्वास्थ्य को लेकर हुए एक कार्यक्रम में ये बातें मुख्य वक्ता डॉ.  सीडी शर्मा ने कहीं।

कार्यक्रम का लाईव देखने के लिए यहां क्लिक करें

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का मुद्दा सरकार की मंशा पर निर्भर करती है। इँदिरा गांधी ने जब दवाओं के अंतरराष्ट्रीय पेटेंट क़ानून पर रोक लगा दी और पेटेंट की नई नीति लागू की तो यहां दवाएं सस्ती हो गईं।

लेकिन आज की बाज़ारवादी सरकार ने फार्मा कंपनियों को अनाप शनाप दाम वसूलने की खुली छूट दे रखी है, इसीलिए 30 रुपये का इंजेक्शन 500 रुपये में मिल रहा है।

ये भी पढ़ें-

रूस और क्यूबा की स्वास्थ्य नीति

उन्होंने कहा कि 1917 की रूसी समाजवादी क्रान्ति के सफल होते ही रूस की मेहनतकशों की सरकार ने हर नागरिक के लिये पैदा होने से मृत्यु तक की स्वास्थ्य की गारण्टी की घोषणा कर दी। दुनिया के स्तर पर पहली बार समाजवादी रूस ने अपने यहाँ स्वास्थ्य मन्त्रालय बनाया।

रूस के क्रान्तिकारी बदलावों के देखादेखी दुनिया भर में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की माँग उठने लगी। इस दबाव में अमेरिका, ब्रिटेन जैसे साम्रज्यवादी देशों को भी अपने यहाँ स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च बढ़ाना पड़ा।

भारत में भी रूस की स्वास्थ्य नीतियों का गम्भीर प्रभाव पड़ा। भारत सरकार ने भी रुस के स्वास्थ्य मॉडल के कुछ हिस्से को आधे अधूरे तरीक़े से अपने देश में लागू किया।

उन्होंने आगे कहा कि समाजवादी क्रान्ति के बाद क्यूबा की स्वास्थ्य नीति ने दुनिया के स्तर पर और भी उन्नत मॉडल प्रस्तुत किया। उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य के अलावा मानसिक व सामाजिक स्वास्थ्य की भी गारण्टी हर नागरिक को देने की घोषणा की।

क्यूबा ने एक नायाब मॉडल बनाया जिसके तहत एक टीम के तहत एक डॉक्टर, एक नर्स व एक पैरामीडिकल कर्मचारी को कुछ सौ लोगों के एक समुदाय का हिस्सा बना दिया जाता था, जो हर वक्त उस समुदाय के लोगों के लिये उपलब्ध रहते थे। यही नहीं क्यूबा सरकार ने अपनी जीडीपी का 11 प्रतिशत से भी अधिक स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करना शुरू किया। नयी दवाएँ खोजने के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किये।

उन्होंने कहा कि भारत में भी समाजवादी दौर के रुस व क्यूबा जैसे स्वास्थ्य मॉडल अपनाने की ज़रूरत है, लेकिन हमारी सरकारें उल्टी दिशा में चल रही हैं। यहाँ सरकारें न केवल स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च करने से बचती रही हैं बल्कि WTO के सदस्य बनने के साथ ही प्रॉडक्ट पेटेंट की नीति के लागू होने से दवाओं के दाम आसमान छूने लगे हैं।

ये भी पढ़ें-

एमआरआई के लिए 2 साल की वेटिंग

महिला एकता मंच की ललिता रावत ने कहा कि कोरोना काल ने दिखा दिया कि हमारे देश की स्वास्थय व्यवस्था कितनी चरमराई हुई है, उन्होंने कहा कि आज आम आदमी के लिये उचित इलाज पाना एक सपना बन गया है, आज हमारी स्वास्थ्य नीति में आमूल चूल परिवर्तन करने की ज़रूरत है।

वर्कर्स यूनिटी के संतोष ने कहा कि भारत सरकार ठीक-ठीक स्वास्थ्य आँकड़े जुटाने की भी ज़हमत नहीं उठाती है ऐसे में स्वास्थ्य के गारण्टी की इनसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है।

इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के मुन्ना प्रसाद ने कहा कि आरटीआई से प्राप्त दिल्ली के एम्स अस्पताल के आँकड़े दिखाते हैं कि जब देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल में डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ की इतनी कमी है तो दूर दराज के अस्पतालों की हालत कितनी बदतर है उसका अंदाज़ा यहीं से लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर अस्पताल जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुँच चुके हैं, ज़िला अस्पताल रेफरल सेंटर बन गये हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ़ अनाज गोदामों में सड़ रहा है दूसरी तरफ़ लोग भूख से मर रहे हैं। यह पूंजीवादी व्यवस्था की विडंबना है इसे समाजवादी व्यवस्था के ज़रिए ही ठीक किया जा सकता है।

क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के सत्यवीर सिंह ने कहा कि ईएसआईसी में मज़दूरों के पैसे से लाखों करोड़ रुपया इकट्ठा हो चुका है लेकिन तब भी इन अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं व दवाओं का अभाव है, सरकार की प्राथमिकता मज़दूरों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाना है ही नहीं। उल्टा इस पैसे को प्राइवेट फण्ड मैनेजमेंट कंपनियों को सौंपकर शेयर बाज़ार में लगाने की योजना है, जहाँ से इस फण्ड का डूबना तय है।

जनाधिकार संघर्ष मंच के अश्विनी कुमार ‘सुकरात’ ने कहा कि स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की मांग गलत है क्योंकि स्वास्थ्य जीवन के मौलिक अधिकार के तहत स्वतः मौलिक अधिकार है। इस बात को प्रमाणित करते अनेको सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय हैं। जरूर इस मौलिक अधिकार को जनपक्षधरता के साथ लागू करने की है।

उन्होंने कहा कि, यदि संविधान संशोधन के माध्यम से स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाया गया तो उसका वही होगा, जो शिक्षा का हुआ। शिक्षा के मौलिक अधिकार वाले 86वें संशोधन (2002) और कानून(2009) ने जनता को समान शिक्षा के अधिकार से वंचित किया।

मथुरा से आये सौरभ इंसान ने अपना हालिया अनुभव साझा करते हुए कहा कि दिल्ली के एम्स में उनके पिताजी को MRI के लिये 2 साल बाद की तारीख़ दी गई जबकि डॉक्टर को अंदेशा था कि उन्हें कैंसर हो सकता है।

ये भी पढ़ें-

स्वास्थ्य बजट 10% हो

उन्होंने अपने अनुभवों के माध्यम से प्राइवेट कंपनियों द्वारा दवाओं की क़ीमत वास्तविक क़ीमत से कई गुना अधिक रखकर लोगों को लूटने का भी खुलासा किया।

समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीश कुमार ने कहा कि भारत के WTO के सदस्य बनने के साथ ही देशी व विदेशी पूँजीपति खुलकर महँगे दवा बेचकर हमारे देशवासियों को लूट रहे हैं, उन्होंने प्रोडक्ट पेटेंट के लागू होने को दवाओं पर कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार होने का रास्ता बताया।

उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण इलाज व बेहतर स्वास्थ्य हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे संविधान में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार घोषित नहीं किया गया है। अभी केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर स्वास्थ्य पर जीडीपी का मात्र 1.4 प्रतिशत जबकि बेहतर स्वास्थ्य तन्त्र खड़ा करने व सबको निःशुल्क इलाज मुहैया करवाने के लिये जीडीपी का 10% स्वास्थ्य पर खर्च करने की ज़रूरत है।

उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों की स्थिति दिन पर दिन ख़राब हो रही है, उन्हें पीपीपी मॉडल के ज़रिये निजी हाथों में सौंपा जा रहा है।

उन्होंने देशव्यापी स्तर पर प्रगतिशील ताकतों व जनपक्षधर लोगों को एक साथ आकर स्वास्थ्य के मुद्दे को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने, स्वास्थ्य के अधिकार को हासिल करने के लिये संगठित होकर आवाज उठाने की जरूरत पर ज़ोर दिया है।

समाजवादी लोक मंच इससे पहले भी इस विषय पर अन्यत्र कार्यक्रम कर चुका है, उनकी भारत सरकार से मुख्य माँगें इस प्रकार हैं-
1) समूचे स्वास्थ्य क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करो।
2) स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार घोषित करो।
3) जी.डी.पी का 10 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करो!
4) प्रदूषण व दुघर्टनाओं को दूर करने के लिये जरूरी कदम उठाओ।
5) डब्ल्यू.एच.ओ. की सिफारिशों के अनुरूप चिकित्सा कमिर्यों की भर्ती करो व आधारभूत संरचना का निमार्ण करो।
6) प्रोडक्ट पेटेंट समेत सभी पेटेंट क़ानूनों को रद्द करो।

प्रत्येक देशवासी को निःशुल्क व गुणवत्तापूर्ण इलाज की गारंटी की मांग को लेकर समाजवादी लोक मंच द्वारा रविवार, 15 जनवरी को गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, आईटीओ, दिल्ली में एक संगोष्ठी का आयोजन किया था।

इस संगोष्ठी में कई प्रगतिशील संगठनों व व्यक्तियों ने भागीदारी की। गोहाना के प्रसिद्ध सर्जन डॉ सी.डी शर्मा इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता थे। संगोष्ठी का संचालन कमलेश कुमार ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत महिला एकता मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा एक क्रान्तिकारी गीत की प्रस्तुति की साथ हुआ।

(प्रेस विज्ञप्ति)

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.