दिल्ली में मनरेगा मजदूरों का 100 दिवसीय धरना, 34वें दिन भी सरकार ने नहीं ली सुध

देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर नरेगा मजदूरों का 100 दिवसीय धरने जारी है।  राजस्थान से आए  मज़दूरों ने कठपुतली नाटक के माध्यम से मनरेगा में लागू नए NMMS ऐप का विरोध किया गया।

भारत में मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) और ‘नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टू इंफॉर्मेशन’ (एनसीपीआरआई) के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने कठपुतली शो को लेकर अपने ट्विटर पेज पर नरेगा संघर्ष मोचा के पेज को साझा किया है।

उन्होंने लिखा है कि “यह कोई कठपुतली शो नहीं है। यह वास्तविकता है।
असली “कठपुतली” टेक्नोक्रेट हैं जो काम और मजदूरी के करोड़ों लोगों को लूटने के लिए अतार्किक मनमाने “तकनीकी समाधान” का उपयोग करके होने वाले नुकसान को जानते हैं; और फिर भी अपने राजनीतिक आकाओं के इशारों पर नाचते हैं जो #मनरेगा को बंद करना चाहते हैं।”

उल्लेखनीय है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में मनरेगा में बेहद कम बजट आवंटन करने, काम मिलने और हाजिरी के लिए नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर (NMMS) एप्लिकेशन नामक नया ऐप सिस्टम लागू किया गया है।

बुधवार, 29 मार्च को धरने का 34वां दिन था। नरेगा संघर्ष मोर्चा के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे राजस्थान के नरेगा मज़दूरों की मांग है कि NMMS ऐप को तत्काल हटाया जाये, नरेगा भुगतानों को आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) से हटाया जाये , समय पर सही और पूरी मज़दूरी का भुगतान का भुगतान किया जाये और मनरेगा मज़दूरी को 600 रुपये प्रतिदिन की जाये।

नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक NMMS ऐप लागू होने के बाद से मज़दूरों को डिजिटल उपस्थिति दर्ज करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

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NMMS का विरोध

राजस्थान के अजमेर जिले में मनरेगा में मेट के तौर पर काम करने वाली एक महिला का कहना है कि NMMS ऐप आने के बाद उनको अपनी रोज़ी रोटी बचाने के लिए महंगा स्मार्ट फ़ोन खरीदना पड़ा।

हालाँकि, खराब नेटवर्क के कारण वह ऐप पर अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर पाती हैं। मोर्चा का दावा है कि ऐसे कई अन्य मज़दूर हैं जिनको उपस्थित दर्ज न होने के कारण अपने काम की पूरी मज़दूरी नहीं मिली है।

मनरेगा मज़दूरों का कहना है कि कई ऐसे मज़दूर हैं जिन्होंने 13-14 दिनों तक काम किया, लेकिन उन्हें केवल 5-6 दिनों की मज़दूरी का भुगतान मिलता है।

नरगा संघर्ष मोर्चा का आरोप है कि जबसे NMMS ऐप आया है तबके मज़दूरों को सफल भुगतान नहीं हो पारहा है। एक अन्य मज़दूर का कहना है कि उन्हें बीते 6 महीने से मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है। इसके अलावा MNNS ऐप आने के बाद उनको काम मिलने भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।

राजस्थान के सिरोही जिले के श्रमिकों ने भी अपनी कठिनाइयों के बारे में बताया। आदिवासी क्षेत्रों की एक कार्यकर्ता ने कहा कि उन्होंने अपना जीवन नरेगा में काम करते हुए बिताया है। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन-आधारित उपस्थिति के कारण कई नरगा मज़दूरों को उनकी मज़दूरी भी नहीं मिलती है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने 12 दिन नरेगा योजना के तहत काम किया था लेकिन उनको मात्र 3 दिन की मज़दूरी का भुगतान किया गया है। यही कारण है जो वह जंतर मंतर पर धरने पर बैठे है। उनकी मांग है कि ऑनलाइन उपस्थिति बंद कर मैनुअल मस्टर रोल वापस लाया जाना चाहिए।

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सरकार ने नहीं ली सुध

गौरतलब है कि 34 दिनों के धरने के बाद भी अभी तक सरकार का कोई भी प्रतिनिधि मज़दूरों की समस्या पर बात करने नहीं आया हैं। इसके अलावा बड़े मीडिया में कही भी इसकी कोई खबर नहीं दिखाई दे रही है।

दरअसल, बीते 7 फरवरी को लोकसभा में एक लिखित जवाब में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा था कि ‘साथियों’ को एनएमएमएस ऐप के माध्यम से श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज करने की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और मंत्रालय प्रदान कर रहा है।

उन्होंने यह भी कहा था कि ऐप को सुचारु रूप से परिवर्तित करने के लिए राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को प्रशिक्षण दिया जायेगा।

जहां एक तरफ मोदी सरकार ने बीते 9 सालों में हर बार मनरेगा के लिए आवंटित बजट को काम किया है वहीं ग्रामीण सत्र पर डिजिटल अटेंडेंस की योजना मज़दूरों के ऊपर अतिरिक्त दबाव डालने वाली है।

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