जनता की बुनियादी सुविधाओं में कटौती करके अडानी पर मेहरबान हुई मोदी सरकार : नजरिया

modi adani duo

By पुश्पिंद

भारत के पहले और दुनिया के दूसरे नंबर के सबसे अमीर आदमी गौतम अडानी पर क़र्ज़ विस्फोटक रूप लेता जा रहा है। ब्लूमबर्ग विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक़, अडानी समूह ‘ओवर लीवरेज़्ड’ है यानी उस पर क़र्ज़ उसकी हैसियत, उसकी भुगतान करने की क्षमता से कहीं ज़्यादा हो चुका है।

इस समय अडानी समूह पर 2.6 लाख करोड़ का क़र्ज़ है, जोकि भारत के शिक्षा बजट से दुगने से भी ज़्यादा है।

अडानी समूह ने पिछले पाँच वर्षों में अपने कारोबार को बहुत बड़े पैमाने पर फैलाया है और लगभग हर क्षेत्र में मोदी सरकार की शह पर क़र्ज़ा लेकर पैसे लगा रहा है। पिछले महीने में इसने सीमेंट बनाने वाली कंपनी ख़रीदी है, जिसके लिए 40,000 करोड़ का क़र्ज़ लिया।

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नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सबसे बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए अडानी समूह ने 2030 तक अपनी हरित ऊर्जा में कुल 70 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश करने का ऐलान किया है।

इस साल के अंत तक इसकी ओडिशा में एल्यूमीनियम रिफ़ाइनरी और लोहे के उद्योग लगाने की तैयारी है। इसका शुरुआती ख़र्चा 58,000 करोड़ रुपए होगा, जो क़र्ज़ लेकर लगाया जाएगा।

‘क़र्ज़ के बल पर व्यापारिक सल्तनत फैला रहे अडानी’

क़र्ज़ लेकर अपनी व्यापारिक सल्तनत फैला रहे अडानी समूह की प्रमुख कंपनियाँ, जैसे कि अडानी एंटरप्राइजे़ज़, अडानी ग्रीन, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी गैस, अडानी पोर्ट आदि के शेयरों की क़ीमत जनवरी 2020 के मुकाबले अगस्त 2022 तक 12 से 14 गुणा तक बढ़ चुकी है।

जैसा कि अडानी एंटरप्राइजे़ज़ के एक शेयर की क़ीमत जनवरी 2020 में 208 रुपए थी, पर अगस्त 2022 तक आते-आते इसकी क़ीमत 2927 रुपए हो गई यानी 14 गुणा बढ़ गई, मतलब यह कि इन कंपनियों की आर्थिक बुनियाद उतनी मज़बूत नहीं, जितनी कि इसके शेयरों की क़ीमत को बढ़ाया गया है।

अगर भविष्य में नक़ली ढंग से फुलाया गया यह गुब्बारा फूटेगा, तो अर्थव्यवस्था पर इसके बुरे प्रभाव पड़ने तय हैं। शेयर डूबने की हालत में शेयर धारकों का निवेश किया गया पैसा भी फँस जाएगा और पूरे शेयर बाज़ार और अर्थव्यवस्था पर इसकी बड़ी चोट पड़ेगी।

क़र्ज़ पूँजीपतियों के लिए मुनाफ़े का सौदा

सवाल यह उठता है कि इतने क़र्जे़ के बावजूद अडानी समूह को और क़र्ज़ा क्यों दिया जा रहा है, कि और अब तक इससे क़र्ज़ की वसूली क्यों नहीं की जा रही है? ज़ाहिर है कि इसका कारण मोदी सरकार द्वारा अडानी का खुलकर साथ देना है।

यहाँ पर यह समझना ज़रूरी है कि अडानी जैसे पूँजीपतियों के लिए क़र्ज़ कोई आफ़त नहीं बल्कि नियामत है। इनके लिए क़र्ज़ लेना कोई चिंता का विषय नहीं है। यह क़र्ज़ पूँजीपतियों के लिए मुनाफ़े का सौदा होता है। अरबों रुपए के क़र्ज़ लेकर ये पूँजीपति कहीं भी निवेश करते हैं और उससे मोटा मुनाफ़ा कमाते हैं।

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इस मुनाफे़ का एक छोटा-सा हिस्सा उन्हें ब्याज़ के रूप में वापिस करना पड़ता है और बड़ा हिस्सा उनका मुनाफ़ा होता है। इस तरह क़र्ज़ उनके लिए मुफ़्त की कमाई का साधन होता है। इन पूँजीपतियों को जितना ज़्यादा क़र्ज़ मिलता है, उतना ही उनका मुनाफ़ा बढ़ता है। इसलिए पूँजीपति ज़्यादा-से-ज़्यादा क़र्ज़ लेने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

इसलिए मोदी सरकार का अडानी को इतना ज़्यादा क़र्ज़ देने का मतलब यही है कि दुनिया के सबसे ज़्यादा अमीरों की लिस्ट में शामिल होने के लिए मोदी सरकार उसकी मदद कर रही है।

सरकार दिलवाती है कर्ज

भारत के बड़े पूँजीपतियों द्वारा मोदी को सत्ता में लाया गया है, इसलिए मोदी सरकार तन-मन से उनकी सेवा कर रही है। सरकार ना सिर्फ़ इन पूँजीपतियों के लिए आसान क़र्ज़ उपलब्ध कराती है, बल्कि बड़े स्तर पर इन क़र्ज़ों को बट्टे खाते में डालकर माफ़ भी कर दिया जाता है।

मोदी ने 2014 में सत्ता पर क़ाबिज़ होते ही अडानी समूह का 72,000 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ कर दिया था। अगर हम नज़र डालें तो पिछले पाँच सालों में मोदी सरकार ने 7.7 लाख करोड़ रुपए के क़र्ज़ माफ़ करके बड़े पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाया है।

एक तरफ़ तो मोदी सरकार आम जनता को मिलने वाली थोड़ी-बहुत सुविधाओं को रेवड़ी कल्चर बताकर बदनाम करती है और इन सुविधाओं को ख़त्म करती है। वहीं दूसरी तरफ़ पूँजीपतियों को बड़े स्तर पर फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है। इस पक्षपाती नीति का ही नतीजा है कि आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा ग़ैर-बराबरी वाला देश बन चुका है।

बढ़ती महँगाई से मज़दूर परेशान

थोपे गए लॉकडाउन ने पिछले दो सालों में आम जनता के लिए तबाही, बर्बादी पैदा की है, वहीं साल 2020-21 में भारत में 26 नए अरबपति बने और इनकी दौलत 35% बढ़ी है, जबकि इसी समय भारत के 23 करोड़ लोग और ज़्यादा बदहाली में धकेले गए हैं। अब बढ़ती महँगाई मज़दूर-मेहनतकशों के लिए आफ़त बन गई है।

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आज सिर्फ़ भारत ही नहीं पूरी दुनिया की पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था ही संकट के गहरे दलदल में धँसती जा रही है। पूँजीपतियों पर लगातार बढ़ रहा क़र्ज़, लोगों का मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना, महँगाई का बोझ, टैक्सों का बोझ आम जनता के जीवन को निगल रहा है। इस व्यवस्था की ऐसी हालत यह दिखाती है कि यह व्यवस्था अपने अंत की तरफ़ बढ़ रही है।

पूँजीपतियों की सरकारों और मोदी सरकार की कोई भी कोशिश इस व्यवस्था को नहीं बचा सकती, इसलिए आज ज़रूरत इस मुनाफ़ाखोर पूँजीवादी व्यवस्था को ख़त्म करके, अडानी-अंबानी जैसों का राज ख़त्म करके एक समाजवादी व्यवस्था क़ायम करने की ज़रूरत है।

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