नागपुर: मोराराजी टेक्सटाइल्स के वर्कर पानी की टंकी पर चढ़े, चार महीने से बकाया है सैलरी

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महाराष्ट्र के नागपुर में  स्थित मोरारजी टेक्सटाइल कंपनी के वर्करों का गुस्सा बीते सोमवार को तब भड़क गया जब कंपनी गेट पर बेहिसाब पुलिस फोर्स तैनात कर वर्करों को डराने धमकाने की कोशिश की गई।

वर्कर चार माह से बकाया सैलेरी और अन्य लंबित मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं ।

सोमवार आठ मई को कंपनी के कुछ वर्कर पानी टंकी पर चढ़ गए। इसी बीच कंपनी के गेट से बाहर आंदोलन कर रहे वर्करों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया।

मराठी अख़बार ‘सकाल’ के अनुसार, पुलिस की बढ़ती दबिश से वर्कर उग्र हो गए और उन्होंने पथराव करना शुरू कर दिया।

आंदोलन कर रहे एक वर्कर किशोर गोहाने ने अख़बार को बताया कि कंपनी के बाहर 150 से 200 वर्कर और अंदर 150 वर्कर जबकि पानी की टंकी पर 12 वर्कर मौजूद थे।

उन्होंने कहा कि ” हमारा आंदोलन जारी है। मंगलवार को कलेक्टर व कंपनी प्रशासन के बीच बैठक में कर्मचारियों की मांगों का समाधान नहीं होने पर आंदोलन की दिशा तय की जाएगी.”

पथराव होने से बुटीबोरी थाने के पुलिस उपनिरीक्षक जगदीश पालीवाल जख्मी हाे गए, तो लाठीचार्ज में कई कर्मचारी भी घायल हो गए।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मोराराजी टेक्सटाइल्स कंपनी व्यवस्थापन ने 2000 ठेका और परमानेंट वर्करों को करीब 3 महीने से वेतन नहीं दिया है। इसके अलावा आंदोलनकारी कर्मचारियों की कई मांगें लंबित हैं।

सोमवार को इस मामले ने तूल पकड़ लिया। बढ़ते विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया। पुलिस ने सुबह से ही कंपनी के गेट के पास बेरिकेड्स लगा रखे थे।

कंपनी के सामने की सड़क मार्ग को बंद कर दिया गया था। इसके बावजूद कुछ कर्मचारी कंपनी के अंदर पानी की टंकी पर चढ़ गए।

क्या है पूरा मामला?

वर्करों का कहना है कि पिछले चार माह से वेतन, बोनस, ले-ऑफ वेतन नहीं मिला। 26 दिन से बिना काम के मजदूरों को परेशान किया जा रहा है। निलंबित वर्करों को भी काम पर नहीं रखा जाता है।

13 दिनों तक कंपनी प्रबंधन के समक्ष विभिन्न मांगें रखी गईं। चूंकि मांगों पर कोई विचार नहीं किया गया, इसलिए दो हजार से अधिक ठेका और परमानेंट वर्करों ने 17 अप्रैल से हड़ताल शुरू कर दी।

कंपनी प्रबंधन द्वारा चार माह से वेतन नहीं दिए जाने के कारण वर्कर भूख हड़ताल पर हैं। ऐसे में घर का किराया, बच्चों की पढ़ाई और परिवार के भरण-पोषण जैसे कई सवाल हैं जिससे मजदूर “करो या मरो” की मानसिकता में आ गए हैं।

पिछले साल एक मई को श्रम मंत्री बच्चू कडू ने श्रम आनंद मेले में कंपनी के अधिकारियों से इस बारे में चर्चा की थी। इस बार उन्होंने वर्करों की मांगों को मानने का आदेश दिया था। लेकिन कंपनी की अड़ियल नीति के चलते कंपनी ने श्रम मंत्री के आदेश को नहीं माना।

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