सुधा भारद्वाजः एक ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट की यात्रा

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जानी मानी ट्रेड यूनियन नेता और विख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज के साथ विशेष बातचीत, उनके निजी जीवन के उन अनुभवों पर जिनकी वजह से उन्होंने एक ट्रेड यूनियनिस्ट बनने का फैसाल किया।

Eminent trade union activist Sudha Bhardwaj was released on 9 December 2021 after being in jail for three years. She is not allowed to go out of Mumbai. She gave a glimpse of her journey from giving up American citizenship to become a trade unionist in remote Chhattisgarh. This interview done by Sandeep Rauzi.

सुधा भारद्वाज के लिए छत्तीसगढ़ पिछले करीब 40 सालों से घर जैसा रहा है।

लेकिन पिछले चार सालों से वो वहां जा नहीं पाईं। पहले तीन साल जेल के अंदर रहने के कारण और फिर रिहा होने के बाद ज़मानत की शर्तों के कारण। उन्हें मुंबई छोड़कर जाने की इजाज़त नहीं है।

जेल  में रहने के दौरान कैदियों की कानूनी मदद में वो कभी पीछे नहीं रहीं। शायद यही कारण रहा कि जेल में वो लॉयर आंटी के नाम से प्रसिद्ध थीं। वो बताती हैं कि जेल से आज भी ख़त आते रहते हैं।

छत्तीसढ़ में वो मज़दूरों के बीच काम करती थीं। लेकिन चार साल पहले उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया था। उस समय वो दिल्ली के एक कॉलेज में लॉ प्रोफ़ेसर की नौकरी शुरू ही की थी।

इस मामले में कई बार  ज़मानत ख़ारिज होने के बाद आखिरकार 9 दिसम्बर 2021 को वो बाहर आईं।

रिहाई के एक साल पूरे हो रहे हैं। वो कहती हैं कि रिहाई भी ‘एक निर्वासन’ ही है उनके लिए।

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