दिल्ली में बुलडोज़र की दहशतः 2000 परिवार, 15 दिनों में झुग्गियां ज़मींदोज़ करने का अल्टीमेटम

उत्तराखंड के हल्द्वानी में हज़ारों परिवारों को उजाड़ने की कोशिश विफल होने के बाद अब दिल्ली में बुलडोज़र का कहर बरपने वाला है।

दक्षिणी जिले में तुगलकाबाद क़िला इलाके में रहने वाले झुग्गीवासियों को बुधवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 15 दिनों के अंदर झुग्गियां खाली करने का निर्देश दिया गया है।

11 जनवरी 2023 को बस्ती की लगभग 1000 झुग्गियों पर नोटिस चस्पा किया गया। नोटिस में झुग्गियों में रहने वाले मज़दूर और गरीब लोगों से 15 दिनों के भीतर घर को खाली करने का अल्टीमेटम दिया गया है।

ASI का दावा है कि 1995 में, किले के चारों ओर 2661 बीघे का क्षेत्र दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा उसे सौंप दिया गया था और 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि यहां कोई और निर्माण न हो।

फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण की स्थिति पर ASI से रिपोर्ट मांगी थी। तबसे समय समय पर झुग्गियों पर बुलडोज़र चलता रहा।

बीते 24 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ASI को सभी झुग्गियां हटाने और 16 जनवरी को एक और स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया। मौजूदा नोटिस इसी आदेश के संदर्भ में आया है।

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2000 मज़दूर परिवारों पर बेघर होने का संकट

तुग़लकाबाद के जिस इलाके में बुलडोज़र चलाने की तैयारी की जा रही है वहां लगभग 2,000 मज़दूरों के घर हैं जिनमें 20,000 से ज्यादा लोग गुजर बसर करते हैं। इन परिवारों में ज्यादातर मज़दूर हैं जो पिछले तीन दशकों में बिहार, बंगाल और नेपाल से आकर यहाँ बसे थे।

आवास की बुनियादी आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्थानीय भूस्वामियों से क्षेत्र में जमीन खरीदी। वे ज्यादातर घरेलू कामगार, निर्माण श्रमिक, दिहाड़ी मजदूर हैं, जो न केवल शहर में अपना जीवन यापन करते हैं बल्कि शहरी अर्थव्यवस्था को भी चलाते हैं।

झुग्गियों में रहने वाले सभी परिवारों के पास झुग्गियों के मकान नंबर है। वो हर महीने बिजली और पानी का बिल भी इसी पते के आधार पर भरते हैं।

बीते रविवार, 15 दिसंबर को झुग्गियों में रहने वाले लोगों ने महरौली-बदरपुर रोड के पास बुलडोज़र एक्शन के विरोध में प्रदर्शन किया। इस दौरान दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया और महिलाओं और बच्चों के साथ बदसलूकी की।

लाठचार्ज की जानकारी मिलने के बाद ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) की टीम ने इलाके का दौरा किया। टीम ने अपनी जाँच में पाया कि ASI की ओर से जारी नोटिस में कई खामियां हैं।

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बिना पुनर्वास के कैसे रौंद सकते हैं घरों को?

ऐक्टू का कहना है कि 24 नवंबर के आदेश के अनुसार, आवश्यक सर्वेक्षण – जो प्रत्येक घर की वैधता का पता लगाएगा – अभी पूरा होना बाकी है इसलिए नोटिस की देने की हड़बड़ी समझ के बाहर है। इसके अलावा नोटिस में पुनर्वास का कोई जिक्र नहीं है।

टीम के सदस्यों ने बताया कि 100 मीटर के दायरे में एक सरकारी स्कूल और डिस्पेंसरी के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद रमेश बिधूड़ी का घर भी है। टीम के सदस्यों का कहना है कि ऐसा लगता है कि इनमें से कोई भी इमारत विध्वंस के लिए निर्धारित नहीं की गई है।

ऐक्टू ने बिना पुनर्वास के झुग्गियों को हटाने वाले नोटिस की कड़ी निंदा की है और कहा है कि सभी के लिए आवास के अधिकार के साथ, श्रमिकों के शहर में अधिकार के लिए और पुनर्वास के बिना घरों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ खड़ा है।

मांग

  1. बेदखली प्रक्रिया तत्काल रोकी जाए।
  2.  सर्वेक्षण को क़ानून के अनुसार पूरा किया जाए।
  3. सभी के लिए पुनर्वास पहले सुनिश्चित किया जाए।
  4. अदालत की भाषा में निवासियों को “अतिक्रमण करने वालों” की बजाय “श्रमिकों” की मान्यता दी जाए।
  5. प्रभावित लोगों पर आगे कोई पुलिस कार्रवाई न हो।
  6. महिलाओं और बच्चों पर क्रूरता से हमला करने वाले पुरुष पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई।

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