बाबा आढवः ट्रेडयूनियनिस्ट से समाज सुधारक तक; जन्मदिन विशेष

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By चंदन कुमार

महाराष्ट्र में बाबा आढव का नाम ट्रेड यूनियन घेरे में जितना जाना पहचाना है, समाज में भी उनकी उतनी ही प्रतिष्ठा है।

पुणे में माल ढुलाई करने वालों से लेकर रिक्शा चलाने वाले, कूड़ा बीनने वाली मेहनतकश आबादी तक को उन्होंने न केवल संगठित किया बल्कि सम्मान से जीना सिखाया।

बाबा आढव न केवल मज़दूरों को संगठित किया, समाज में भेदभाव छूआछूत को लेकर तीखी लड़ाई लड़ी और आज़ाद भारत में मज़दूरों मेहनतकशों के हक में कई क़ानून पारित कराने में अहम भूमिका निभाई।

आज पुणे में मज़दूरों और मेहनतकश जनता का अपना कोआरपरेटिव है, सशक्तिकरण का अपना ढांचा है, जो इस बात का संकेत है कि असगंठित मज़दूर अपनी एकता के दम पर क्या कुछ कर सकते हैं।

बरतानवी गुलामी के समय से ही असंगठित मज़दूरों को लामबंद करने और अम्बेडकरवादी विचारों से प्रेरित होकर सामाजिक भेदभाव मिटाने में उनके कार्य अप्रतिम हैं।

डॉ. बाबासाहेब पांडुरंग आढाव का जन्म 1 जून 1930 में हुआ था और आज वे 92 साल के हो चुके हैं और सामाजिक कार्यों में उसी जीजीविषा  के साथ सक्रिय हैं।

हमाल पंचायत

बाबा आढव ट्रेड यूनियनवादी और एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें माथाडी, हमाल, विशेषकर असंगठित श्रमिकों के लिए सामाजिक सुधार बनाने में उनके काम के लिए जाना जाता है।

भारत के असुरक्षित मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा, कानूनी सुरक्षा, चिकित्सा बीमा और लोन हासिल करने के अधिकार दिलाने के पीछे बाबा आढव की अहम भूमिका रही है।

वो महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर और महात्मा गांधी से वैचारिक प्रेरणा लेते हैं।

उनके कुछ प्रमुख सामाजिक सुधारों में हमाल पंचायत नामक एक असंगठित श्रमिक ट्रेड यूनियन की स्थापना, हेड लोडर और मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी की शुरुआत, असंगठित कामगारों के सामाजिक और रोजगार सुरक्षा के लिए देश का पहला कानून (महाराष्ट्र मथाडी हमाल और अन्य मैनुअल वर्कर्स एक्ट) का निर्माण और कार्यान्वयन करके इतिहास रचा।

बांध और और बड़े परियोजना से प्रभावित मज़दूरों और छोटे किसानों के लिए पुनर्वास के कानून और देवदासी पुनर्वास अधिनियम जैसे प्रगतिशील कानून बनाने में बाबा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

एक गांव एक पनघट आंदोलन

90 साल की उम्र पार होने के बावजूद उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है। हाल ही में उन्होंने असंगठित मजदूरों के लिए वॉकिंग पीपुल्स कोएलिशन नामक एक राष्ट्रीय संगठन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

उन्होंने सामजिक राजनैतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी मज़दूर वर्ग की चेतना जगाई।

‘एक गांव और एक पनघट’ नाम से ग्रामीण महाराष्ट्र में दलितों/अछूतों को पानी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया।

जब देश मैं आपातकाल लागू हुआ, तो मज़दूरों के अधिकारों के लिए लड़ते हुए जेल भी गए।

बाबा आढव का जीवन मज़दूर एवं समाज के सारे उपेक्षित वर्ग के लिए प्रेरणा रहा है, और आज इस गहरे राजनैतिक संकट के दौर में हम उनके संघर्ष और योगदान के लिए उनकी 93वें जन्मदिवस पर बधाई देते हैं!

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