समानांतर सिनेमाः गैर तेलुगु लोगों द्वारा बनाई गईं तेलुगु फ़िल्में : Part-4

By मनीष आज़ाद

अब हम आते हैं तमिल सिनेमा पर। तमिल सिनेमा में समानान्तर सिनेमा उस तरीके से नहीं आया। उसका एक बड़ा कारण शायद यह था कि तमिल सिनेमा में जाति के खिलाफ़ फ़िल्में बनाने की बड़ी पुरानी परंपरा है।

वह यहाँ के द्रविण आन्दोलन के कारण था। करुणानिधि फ़िल्मों के बहुत सफल पटकथा लेखक थे। ये लोग द्रविण आन्दोलन और पेरियार की ‘जस्टिस पार्टी’ की पैदाइश थे।

इसलिए यहाँ की फ़िल्मों में कितना ही मेलोड्रामा हो, रोना, गाना, डांस, कितना भी हो लेकिन जाति के खिलाफ़ एक धारा इन फ़िल्मों में जरूर रही है।

इस सन्दर्भ में हिंदी फ़िल्मों में तो सन्नाटा ही रहा है। ‘सुजाता’, ‘अछूत कन्या’, जैसी दो–चार फ़िल्मों को छोड़ दें, तो ‘मुख्य धारा’ की हिंदी फ़िल्मों के लिए आज भी यह विषय एक ‘टैबू’ बना हुआ है।

लेकिन तमिल में यह परम्परा बनी रही है और आज भी जारी है। लेकिन वहां पर समानान्तर सिनेमा का ऐसा कोई बड़ा मूवमेंट नहीं रहा है।

लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां पर समानान्तर सिनेमा की जो पहली फ़िल्म मानी जाती है, वह मलयालम के मशहूर फ़िल्मकार जान अब्राहम ने ही बनाई थी।

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‘डंकी इन दि ब्राहमन विलेज’

अंग्रेजी में उसका अर्थ होगा- ‘डंकी इन दि ब्राहमन विलेज’। ये फ्रांस के मशहूर फ़िल्मकार ब्रेस्सा (Robert Bresson) की एक फ़िल्म (Au Hasard Balthazar) से प्रभावित है।

कहानी कुछ यूँ है- एक गधा ब्राह्मणों के गांव में आ जाता है।

पहले ब्राह्मण उसे अपशकुन मानते हैं, उसको मार देते हैं, बाद में जब गांव पर विपत्ति टूटती है तो उनको लगता है कि गधे को मारने से ही विपत्ति टूटी है, तो ब्राह्मण उसे देवता बना देते हैं, उसकी पूजा करने लगते हैं, तो इस तरह यह ब्राह्मणों के पाखंड पर एक जबर्दस्त व्यंग्य (सटायर) है।

अब हम तेलुगु में आते हैं। तेलुगु में एक दिलचस्प चीज़ है। तेलुगु में समानान्तर सिनेमा की जो फ़िल्में बनी हैं, वो अधिकांशतः गैर तेलुगु लोगों ने बनाई हैं।

यहाँ पहली समानान्तर फ़िल्म बंगाल के प्रसिद्ध फ़िल्मकार मृणाल सेन ने ‘कफ़न’ (1977) नाम से बनाई। यह फ़िल्म इसी नाम की प्रेमचंद की एक कहानी पर आधारित है।

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श्याम बेनेगल की तेलुगु फ़िल्म ‘अनुग्राहम’

हिंदी के मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर श्याम बेनेगल ने यहाँ तेलुगु में ‘अनुग्राहम’ बनाई।

बंगाल के ही एक और मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर गौतम घोष ने इसी समय तेलुगु में ‘माँ भूमि’ बनाई, जो तेलंगाना के आन्दोलन पर आधारित थी, इसे उन्होंने उसी समय हिंदी में भी बनाया।

इस फ़िल्म में तेलंगाना आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित किया गया है। बहुत ही बेहतरीन फ़िल्म है।

इसके बाद बड़ा नाम ‘बी. नरसिम्हाराव’ का है, उन्होंने ‘दासी’, ‘माटी-मानुशुल’ बनाई।

ओमपुरी को लेकर उन्होंने एक फ़िल्म ‘अंकुरम’ नाम से बनाई। हालाँकि ये थोड़ी बाद की फ़िल्म है।

जारी…

(लेखक प्रगतिशील फ़िल्मों पर लिखते रहे हैं। विश्व सिनेमा, समानांतर सिनेमा और सामाजिक आंदोलन के अंतरसंबंध को मोटा मोटी समझने के लिए लिखा गया ये  एक लंबा लेख है जिसे पांच हिस्सो में बांटा गया है और शृंखला में प्रकाशित होगा। इस लेख की यह चौथी कड़ी है। )

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