विशाखापट्टनम में 70 टन वज़नी विशालकाय क्रेन मज़दूरों पर गिरी, 11 की मौत, कई घायल

hindustan shipyard crane accident

विशाखापट्टनम मज़दूरों की कब्रगाह बनता जा रहा है। आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में दो महीने के अंदर तीसरा भीषण हादसा हुआ है जिसमें कई मज़दूरों की मौत हो गई और कई घायल हैं।

शनिवार को हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड में एक विशालकाय क्रेन के ढह जाने से कई मज़दूर दब गए जिनमें 11 मज़दूरों की मौत की पुष्टि हुई है।

हादसे का वीडियो ट्विटर पर वायरल हो रहा है जिसमें विशालकाय क्रेन के अचानक गिरते हुए देखा जा सकता है।

स्थानीय मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार, हादसे के वक्त 20 मज़दूर काम कर रहे थे। क्रेन की जांच के लिए उस समय इंजीनियर्स और कंपनी के उच्च अधिकारियों के मौजूद होने की बात कही जा रही है।

विशाखापट्टनम के जिलाधिकारी विनय चंद ने बताया है कि मृतकों में छह मज़दूर ठेकाकर्मी हैं और बाकी चार एचएसएल के स्टाफ़र हैं।

न्यूज़8प्लस की ख़बर के अनुसार, ज़िलाधिकारी ने कहा कि दो साल पहले मंगाई गई 70 टन की क्रेन की टेस्टिंग की जा रही थी तभी ये ढह गई।

ख़बर लिखे जाने तक अन्य कई मज़दूरों के नीचे दबे होने की आशंका जताई जा रही थी क्योंकि नीचे से फ़ोन की घंटी बजने की आवाज़ें आ रही थीं।

सोशल मीडिया पर औद्योगिक सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लग रहे हैं और पीड़ित परिवारों के आर्थिक मुआवज़े की भी मांग उठ रही है।

दो महीने में तीन हादसे

प्रशासन ने इस हादसे की जांच के आदेश दिए हैं लेकिन जैसा होता है, ये जांच भी पीड़ित मज़दूर परिवारों शायद ही इंसाफ़ दिला पाए।

दो महीने पहले सात मई को एलजी पॉलीमर्स कंपनी में ज़हरीली गैस लीक के कारण 11 लोगों की जान गई थी और दर्जनों लोग बुरी तरह बीमार पड़ गए थे और घरों में, सड़कों पर बेहोश होकर गिरने लगे थे।

बीते जून के आखिरी सप्ताह में सैनर लाइफ साइसेंज प्राइवेट लिमिटेड में ज़हरीले बेंजिमिडेजोल गैस लीक होने से दो कर्मचारियों की मौत हो गई थी।

हाल के दिनों में भारत में भीषण औद्योगिक हादसों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है, लेकिन प्रशासन और सरकारें सुरक्षा मानकों को लेकर आंख मूंदे हुए हैं, बल्कि उसमें और ढील तेने की पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं।

मोदी सरकार ने औद्योगिक सुरक्षा क़ानून को रद्दी काग़ज बनाने पर अमादा है और अगले ही सत्र में चार लेबर कोड में से औद्योगिक सुरक्षा संबंधी कोड को पास कराने पर अमादा है, जिसके बाद सुरक्षा पुख़्ता करने की कंपनियों की क़ानूनी जवाबदेही भी लगभग ख़त्म हो जाएगी।

वैसे भी पहले से ही फ़ैक्ट्रियों में सुरक्षा मानकों को लागू करवाने की कोई कोशिश नहीं हो रही थी लेकिन अब तो नियम ही नहीं रहेंगे कि उन्हें क़ानून के कटघरे में खड़ा किया जा सके।

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