देश में 40 करोड़ मेहनतकश आबादी भयंकर ग़रीबी की भेंट चढ़ी

भारत में असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ से अधिक मज़दूर ग़रीबी के दुष्चक्र में फंस सकते हैं। ये कहना है अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ का।

आईएएलओ की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में मज़दूरों पर भयंकर असर पड़ने वाला है और उनका रोज़गार और कमाई छिन जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, नाइजीरिया और ब्राजील के साथ उन देशों में शामिल है, जो इस महामारी से होने वाले हालात से निपटने के लिए कम तैयार थे।

संगठन का अनुमान तो ये भी है कि भयंकर ग़रीबी में आने वालों की संख्या एक अरब पार कर जाएगी।
कोरोना के चक्कर में लगाए गए लॉकडाउन में 12 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को पहले ही कर्ज़दार बना दिया है।
इधर रोज़ ही ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि मज़दूरों को कंपनियों से निकाला जा रहा है।

अभी हाल में आई एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के चलते आई आर्थिक गिरावट के कारण दुनियाभर में 39 करोड़ 50 लाख अतिरिक्त लोग बेहद ग़रीबी की चपेट में आने वाले हैं।

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संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनिवर्सिटी वर्ल्ड इंस्टीट्यूट ने ये रिपोर्ट जारी की है।
सबसे बुरे हालात को ध्यान में रखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रति व्यक्ति आय या उपभोग में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
इससे घोर ग़रीबी में रहने वालों की संख्या 1.12 अरब पहुंचने का ख़तरा है।
वहीं उच्च-मध्यम आय वाले देशों में भी इतनी ही गिरावट का अनुमान लगाया है, जहां कि प्रतिदिन 5.50 डॉलर पर रहने वाले सामान्य गरीबों की संख्या 3.7 बिलियन हो जाएगी।
यह संख्या दुनिया की आबादी के आधे से भी अधिक है।

अध्ययन रिपोर्ट लिखने वालों में से एक एंडी समनर का कहना है, ‘दुनियाभर में घोर गरीबी में रहने वालों की दशा भविष्य में और दयनीय दिखाई दे रही है। अगर हालात इतने खराब हुए तो दुनियाभर में गरीबी से लड़ने के लिए किए जा रहे प्रयासों को तगड़ा झटका लगेगा और हम बीस से तीस वर्ष पहले वाली स्थिति में पहुंच जाएंगे।”
संयुक्त राष्ट्र का ग़रीबी खत्म करने का लक्ष्य महज सपना ही रह जाएगा। इससे निपटने के लिए सरकारों को जल्द और बड़े कदम उठाने होंगे ताकि इन अत्यंत गरीबों को मंडरा रहे खतरे से बचाया जा सके।

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विश्व बैंक ने आगाह किया है कि इस महामारी की वजह से भारत ही नहीं बल्कि समूचा दक्षिण एशिया ग़रीबी उन्मूलन से मिले फ़ायदे को गवां सकता है।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन ने कहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं रहा, बल्कि ये एक बड़ा लेबर मार्केट और आर्थिक संकट भी बन गया है जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा।
उत्पादन स्थगित होने के कारण मजदूरों का पलायन बढ़ा है।

लॉकडाउन से भारत की बेरोज़गारी दर में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है। इसको लेकर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट्स में चेतावनी जारी की है।

(खिड़की डॉट कॉम की ख़बर से साभार संपादित प्रकाशित।)

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