मज़दूरों पर लॉकडाउन और 950 तीर्थ यात्रियों को वोल्वो बसों से घर रवाना किया गया

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By नित्यानंद गायेन

जानलेवा कोरोना वायरस के चलते देशव्यापी लॉक डाउन के बीच ख़बर है कि बनारस के काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए आए हजारों यात्री बनारस में फंस गए हैं। सोमवार को लगभग 950 तीर्थ यात्रियों को उनके घर रवाना किया।

इससे पहले उत्तराखंड से भी गुजराती तीर्थ यात्रियों को रातों-रात बसों में भर कर निकला गया था।

ग़ौरतलब है कि इसके एक दिन पहले यानी सोमवार, 13 अप्रैल को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में फंसे क़रीब एक हज़ार तीर्थ यात्रियों को सरकार ने बस की सुविधा मुहैया कराकर गुजरात पहुंचवाया।

गुजरात नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश भी है जहां वो कई सालों तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे हैं।

यह सब उस वक्त हो रहा है जब एक वक्त के राशन और भोजन के लिए सड़क पर निकले मज़दूरों की पिटाई की तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं।

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देशव्यापी कोरोनाबंदी की मार का सबसे बुरा असर मज़दूर वर्ग पर पड़ा है।

लॉकडाउन के बाद राजधानी दिल्ली सहित देश के तमाम महानगरों में फंसे करोड़ों प्रवासी और असंगठित मजदूर और परिवार जिनमें छोटे-छोटे बच्चे शामिल हैं।

इस बदइंतज़ामी के चलते भूखे-प्यासे सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलने को मज़बूर हुए और इस दौरान सड़क दुर्घटनाओं और भूख से कईयों ने अपनी जान गंवा दी।

अब जब तमाम सरकारी दावे झूठे साबित हुए हैं और मज़दूर सड़क पर आ गये तब भी न तो उन्हें राशन पानी और रोजगार की सुरक्षा का इंतज़ाम किया गया और ना ही घर जाने की व्यवस्था।

कहीं मुट्ठीभर अनाज के लिए तो कहीं एक वक्त के खाने के लिए इस चिलचिलाती गर्मी में खड़े मज़दूरों की लंबी-लंबी कतारों के बीच तीर्थ यात्रियों को गुजरात पहुंचाने की घटना लॉकडाउन का मखौल है।

बीते 15 अ  प्रैल को जब पूर्व घोषित 21 दिन का लॉक डाउन खत्म होना था उस दिन मुंबई के बांद्रा स्टेशन के बाहर हजारों मज़दूर अपने-अपने घर जाने के लिए इकठ्ठा हो गये और इसके लिए रेलवे और एक मीडिया द्वारा फैलाई ख़बर ज़िम्मेदार थी। रेलवे ने टिकट जारी किया था।

किन्तु इस बीच प्रधानमंत्री ने एक बार फिर सुबह दस बजे टीवी पर आकर लॉक डाउन को 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा कर दी जिसमें एक बार फिर मज़दूर और गरीबों के लिए भाषण के अलावा कुछ न था।

लाखों मज़दूर जो अपने घरों के लिए सड़क पर निकल पड़े थे उनमें से कितने मज़दूर आजतक अपने राज्यों और घरों तक पहुंचे आज तक इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा किसी राज्य ने नहीं जारी किया है।

उनमें से कितनों का कोरोना जांच किया गया और कितनों को आइशोलेशन में रखा गया इसकी भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

इस बीच सबसे हैरान करने वाली ख़बर यह रही कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिये गये “सभी के लिये निजी अस्पतालों में कोरोना के मुफ्त जांच” के फैसले में बदलाव करते हुये अब इसे केवल “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना” और “कम आय वर्ग” तक सीमित कर दिया है।

अब सवाल है कि क्या देश के सभी मज़दूरों के पास ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ है ? दूसरा सवाल है कि किराये के कमरों में रहने वाले मज़दूर कहां से देंगे कमरे का भाड़ा ?

भाजपा शासित हरियाणा जहां प्रवासी मज़दूरों का एक बड़ा हिस्सा रहता है वहां से खबर है कि उद्योग जगत घर बैठे मज़दूरों को अप्रैल का वेतन नहीं देगा। ऐसे में अब मजदूरों का क्या होगा ? वे कहां से लायेंगे किराया? कैसे जिंदा रहेंगे ?

कोरोना महामारी को गोदी मीडिया ने तबलीगी जमात तक सीमित कर उसे सांप्रदायिक रंग देकर फिर से एक बार हिन्दू-मुस्लमान कर दिया। जबकि देश में डॉक्टरों-नर्सों के पास बुनियादी सुरक्षा उपकरणों की कमी है।

दिहाड़ी मज़दूर और गरीब कोरोना से अधिक भुखमरी से पीड़ित हैं। इनके बारे में कोई बात नहीं हो रही है। और जो इनकी बात कर रहा है उन्हें फोन पर धमकी मिल रही है।

उधर सरकार के मंत्री भूख से बिलबिला रहे मज़दूरों की समस्याओं से निबटने के लिए कोई ठोस नीति बनाने की बजाय टीवी पर रामायण चलाने की वकालत कर रहे हैं तो कुछ लोग घर पर रहकर मास्क बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

पहले स्मृति ईरानी की एक तस्वीर और वीडियो आई जिसमें वो सिखा रही थी कि थी कैसे घर बैठे मास्क बनाएं। फिर संबित पात्रा और अब प्रकाश जावड़ेकर का वीडियो आया।

अभी इस कोरोना संकट से निपटने के लिए सरकार पीएम केयर में अलग से फंड ले रही है। आखिर उसका इस्तेमाल सरकार कब करेगी, ये साफ़ नहीं है।

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