पुण्यतिथि:बहादुर शाह ज़फर ने किया था 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व

अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह ज़फर की आज 160वी पुण्यतिथि है। बहादुर शाह ज़फर ऐसे सम्राट और सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अगुआ रहे है जिनको लगभग सभी इतिहासकारों ने नजरअंदाज किया है। बहादुर शाह ज़फर अपने सूफी विचारधारा व उर्दू के जाने-माने कवि के तौर पर भी याद किए जाते हैं। सन 1837 में उन्होंने गद्दी तब संभाली जब भारत लगभग अंग्रेजों के चंगुल में  फंस चुका था। उनके स्वतंत्रता सेनानी होने  को लेकर तमाम इतिहासकारों में मतभेद शायद इसी कारण से रहा है कि वह ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशनभोगी सम्राट व मुगल खानदान से हैं।
शायद इसी कारण उनको इतिहास में वाजिब स्थान नहीं दिया गया है। जबकि दूसरा पहलू यह है उन्होंने 82 साल की उम्र में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई की थी और सारे भारत के राजाओं को अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास किया था, जिसके लिए अंग्रेजों ने उनको रंगून में कैद किया और उनके बेटों का निर्मम कत्ल भी कर दिया। रंगून में कैद के दौरान बहादुर शाह जफर की सन 1862 में मृत्यु हो गई।
बहादुर शाह ज़फर के असली कब्र के बारे में आज भी विवाद है। अंग्रेजों ने दफनाने के बाद उनकी कब्र के निशान को  मिटा दिया था। 90 के दशक में रंगून, म्यांमार में एक कब्र की खोज करके ये पहचान की गयी कि ये बहादुर शाह जफर की कब्र है। वहां पर अब उनका स्मारक भी बना दिया गया है।
2017 में म्यांमार दौरे के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी बहादुर शाह जफर के इस मजार पर जा चुके हैं, जबकि इतिहासकारों में अब भी उनके सटीक कब्र के बारे में मतभेद है।
मुगलकालीन इतिहास के जानकार प्रोफेसर हरबंस मुखिया के अनुसार “बहादुर शाह जफर के कब्र के बारे में सटीक कुछ भी बता पाना संभव नहीं है।”
ब्रिगेडियर जसबीर सिंह अपनी किताब “कॉम्बैट डायरी, ऐन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ़ ऑपरेशन्स कनडक्टेड बाय फोर्थ बटालियनए द कुमाऊं रेजिमेंट 1788 टू 1974” में लिखा हैं  कि जिस घर में बहादुर शाह जफर को क़ैद कर के रखा गया था उसी घर के पीछे उनकी कब्र बनाई गई थी और उन्हें दफनाने के बाद कब्र की जमीन समतल कर दी गई थी।
(फेसबुक पोस्ट से साभार प्रकाशित)
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