ऑटो कंपनियों में रोज़ 20 मज़दूर होते हैं जख़्मी, तीन साल में गुड़गांव में 2400 वर्कर घायल

लॉकडाउन के दौरान फ़ैक्ट्रियों में सुरक्षा उपायों का निरीक्षण हरियाणा सरकार ने रोक दिया था, जिसकी वजह से जब फ़ैक्ट्रियां शुरू हुई तो फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ी है।

इस बात को खुद हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने स्वीकार किया है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ख़बर के अनुसार, चौटाला ने फ़ैक्ट्रियों में मज़दूरों के लिए सुरक्षा संबंधी मामलों की जांच के लिए एक कमेटी गठित करने का ऐलान किया है जिसमें एक वरिष्ठ आईएस अधिकारी रहेंगे।

अख़बार के अनुसार, चौटाला ने कहा कि तीन सदस्यों की ये कमेटी फ़ैक्ट्रियों में जाकर जांच पड़ताल करेगी और सुरक्षा उपायों में ढील पाने पर कड़ी कार्यवाही करेगी।

हालांकि यही दुष्यंत चौटाला हैं जिन्होंने फ़ैक्ट्रियों में हरियाणा राज्य के मज़दूरों को ही नौकरी देने का आश्वान दिया था लेकिन होंडा आंदोलन में लगातार गुहार के बावजूद वो कंपनी का पक्ष लेते रहे, जिसका एक वीडियो भी वर्कर्स यूनिटी पर वायरल हुआ था।

हरियाणा में कई फ़ैक्ट्रियां ऐसी हैं जहां के अधिकांश मज़दूरों का कोई न कोई अंग भंग हुआ है और किसी न किसी तरह की विकलांगता के शिकार है।

इन्हीं में मानेसर के श्रीराम इंजीनियर्स का नाम है, जहां 90 प्रतिशत मज़दूरों की अंगुलियां कटी हुई हैं।

रिको धारूहेड़ा में काम करने वाले मज़दूरों में से अधिकांश को कभी न कभी दुर्घटना का सामना करना पड़ा है।

हकीक़त ये है कि कंपनियां उत्पादन बढ़ाने के लिए सुरक्षा मानकों को नज़रअंदाज कर देती हैं और मशीनों के सेंसर को बंद कर देती हैं जिससे दुर्घटनाओं का ख़तरा बढ़ जाता है। लेकिन कभी किसी फ़ैक्ट्री पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।

एक सर्वे बताता है कि ऑटो सेक्टर में हर दिन 20 मज़दूर दुर्घटनाओं में घायल होते हैं। गुड़गांव की एक एनजीओ सेफ़ इन इंडिया से जुड़े संदीप सचेवा का कहना है कि पिछले तीन सालों में 2400 से अधिक घायल वर्करों की उन्होंने मदद की है जिनमें 90 प्रतिशत ऑटो सेक्टर से थे।

ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स मैन्युफ़ैक्चरर्स एसोसिएशन निदेशक विन्नी मेहता का कहना है कि अधिकांश दुर्घटनाएं असंगठित क्षेत्र में होती हैं क्योंकि वहां सुरक्षा के उपाय नहीं होते।

इसके लिए सरकार और कंपनियों दोनों को आगे आकर एक साथ काम करने की ज़रूरत है ताकि इऩ दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके।

लेकिन कोरोना काल में लॉकडाउन और फिर अनलॉक के दौरान भारत सरकार का मज़दूरों के प्रति जो व्यवहार दिखा, उससे लगता है कि दुर्घटनाएं कम होने की बजाय बढ़ेंगी ही क्योंकि सरकार खुद श्रम क़ानून ख़त्म कर रही है और फ़ैक्ट्रियों में सेफ़्टी नार्म को लगभग रद्दी बनाने जा रही है।

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