श्रमिक ट्रेनों में भूख प्यास से 80 मज़दूर मरे, पीयूष गोयल झूठ बोल रहे हैं या रेलवे पुलिस

रेल मंत्री पीयूष गोयल भले ही कह रहे हों कि श्रमिक ट्रेनों में भूख प्यास से किसी प्रवासी मज़दूर की मौत नहीं हुई लेकिन उनके ही मंत्रालय से आई एक रिपोर्ट कहती है कि अबतक 80 मज़दूरों की मौत हो चुकी है।

रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ़ ) के डेटा से इस बात का खुलासा हुआ है कि 9 मई से लेकर 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मज़दूरों की मौत हो गई।

अपने ही विभाग से आए मौत के आंकड़ों पर लीपापोती करने के लिए पीयूष गोयल ने शनिवार को बयान जारी कर गर्भवती महिलाओं, बुज़ुर्गों और गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को श्रमिक ट्रेनों से यात्रा न करने की सलाह दी है।

लेकिन पीयूष गोयल के पास ट्रेनों में इतने बड़े पैमाने पर होने वाली मौतों के बारे में सफाई देने के लिए कुछ नहीं है।

संख्या और बढ़ सकती है

आरपीएफ़ के अनुसार, ये शुरुआती लिस्ट है। इस सिलसिले में फाइनल लिस्ट राज्यों से बात करने के बाद तैयार की जाएगी।

यानी मौत का ये आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। बीते बुधवार को ही ख़बर आई थी कि 48 घंटे में ही श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 9 लोगों की मौत हो गई है।

अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे पुलिस फ़ोर्स के एक अधिकारी ने मौत के इन आंकड़ों की पुष्टि की है।

रेल मंत्रालय के अनुसार,  एक राज्य से दूसरे राज्य में फसे मज़दूरों को निकालने के लिए केंद्र सरकार ने 1 मई से 27 मई के बीच 3,840 ट्रेनों को चलाया था। अब तक 52 लाख मज़दूरों को उनेक गृहराज्य तक पहुंचाया गया है।

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव ने कहा कि अंतिम श्रमिक के अपने घर पहुंचने तक श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलती रहेंगी, किराये में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

उन्होंने शनिवार को प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि अबतक कुल 71 श्रमिक ट्रेनों का रूट डायवर्ट किया गया। हालांकि अध्यक्ष ने कहा कि ट्रेनों के भटकने की बातें अफवाह हैं लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि आखिर जब सारी ट्रेनें बंद हैं तो रूट डायर्ट करने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?

मौत के आकड़ों पर रेल मंत्रालय ने सफाई पेश करते हुए कहा कि ‘ट्रेनों में मरने वाले ज्यादातर लोग गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे।’

सड़ा खाना और गंदा पानी

मंत्रालय का कहना है कि वे उपचार के लिए शहरों में आए थे और लॉकडाउन के चलते वहीं फंस गए थे। स्पेशल ट्रेन शुरू होने के बाद ही वे घरों के लिए निकले थे।

इससे पहले ऐसी रिपोर्ट आ रही थी कि थकान, गर्मी और भूख के चलते मुसाफिरों की मौतें हो रही हैं।

अबतक कुल 40 ट्रेनें अपना रास्ता भटक कर कहीं का कहीं पहुंच चुकी हैं। एक ट्रेन को तो सूरत से बिहार पहुंचने में 9 दिन लग गए।

ऐसे कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जहां मज़दूरों को सड़ा हुआ खाना दिया गया या पानी नहीं दिया गया तो मज़दूरों ने स्टेशन के काउंटर को ही लूट लिया।

नरेंद्र मोदी ने मज़दूरों की दुख तकलीफ़ पर संवेदना ज़ाहिर की है, लेकिन अव्यवस्था पर एक लब्ज़ नहीं बोला है।

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