ग़ाज़ियाबाद प्रशासन का मज़दूरों पर अहसान, न पीने का पानी न साफ़ टॉयलेट

transit camp ghaziabad meerut road

By  खुशबू सिंह

ऐसा लगता है कि प्रशासन की नज़र में प्रवासी मज़दूर दोयम दर्ज़े के नागरिक हैं और जो थोड़ा बहुत हो भी रहा है वो जनता के दबाव में सिर्फ चेहरा बचाने के लिए।

ग़ाज़ियाबाद में मेरठ रोड पर राधास्वामी सत्संग ब्यास आश्रम में प्रवासी मज़दूरों को उनके घरों तक बस से भेजने की व्यवस्था देखकर लगता नहीं कि कोरोना के समय में बीमारी से बचाने की ज़रा भी चिंता है।

उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के लिए बसें मज़दूरों को उनके गृह जनपद पह़ुंचाने का काम कर रही हैं, यहां पीने का साफ़ पानी तक ग़ाज़ियाबाद प्रशासन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।

अपने घरों को जाने वाले मज़दूरों का तांता लगा है, उन्हें पड़ोस के ही एक बारात घर में इकट्ठा किया जा रहा है लेकिन न वहां साफ़ टायलेट है न साफ़ पीने का पानी।

radhaswami satsang byas ghaziabad

स्वयंसेवी संस्थाएं जब आती हैं तो इन मज़दूरों को खाना पानी मिलता है, लेकिन वो भी अपर्याप्त।

ईद के दूसरे दिन मंगलवार को वहां डेढ़ हज़ार मज़दूर इकट्ठा थे। वहां वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन की ओर से पानी और जूस की बोतलों का वितरण किया गया लेकिन फिर भी आधे से ज़्यादा लोगों को निराश होना पड़ा।

इस भीषण गर्मी में 46 डिग्री तापमान में महिलाएं, दुधमुएं बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग बच्चे बूंद बूंद के लिए तरस गए।

प्रवासी मज़दूरों ने यहां की अव्यवस्था के बारे में जो बताया और जो दिखा, वो दिल दहलाने के लिए काफ़ी था।

टॉयलेट साफ़ नहीं थे, सो महिलाओं, बच्चों, बुज़ुर्गों और बीमार लोगों को शौचालय के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

administration provided drinkin water

प्रशासन की तरफ से मज़दूरों को कोई सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई। ना तो मास्क, ना ही सैनेटाइज़र। तीखी धूप, लू और झुलसा देने वाली गर्मी में बारात घर के मैदान में न कोई पंखा, न कूलर और ना ही ठंडा रखने के लिए कोई इंतज़ाम।

लोग दीवार और सजावटी पौधों के नीचे बैठ कर बसों का इंतज़ार करते मिले। मज़दूरों ने बताया कि बसों का हाल और बुरा है।

सीट के नीचे गंदगी का अंबार है। सोशल डिस्टेंस सरकार के शब्दों में सिमट कर रह गया है। बसों में एक सीट पर तीन तीन लोगों को बैठाया जाता है।

समाजसेवी संस्थाएं बसों के निकलने वक़्त पानी की बोतलें बांटती हैं, किसी बस में पहुंचा किसी में नहीं। प्रशासन की सारा ज़ोर इस बात पर है कि अधिक से अधिक मज़दूरों को बसों में बैठा कर किसी तरह रवाना किया जाए।

वर्कर्स यूनिटी की टीम को एक मज़दूर दिल्ली यूपी बॉर्डर पर पैदल जाते हुए मिला। दोपहर 12 बजे तपती धूप में कंधे पर बैग टांगे पैदल चले जा रहा था और फ़ोन पर अपनी मां से रोते हुए बचा लेने की गुहार लगा रहा था।

worker rushing to catch bus in ghaziabad

टीम ने उसे राधास्वामी स्वामी सत्संग आश्रम पहुंचाया। वहां उसे बलिया जाती हुई बस में किसी तरह जगह मिली। उस बस में क़रीब 40 लोग बैठे थे। उसे कटिहार जाना था।

मज़दूर इस चिलचिलाती धूप और शरीर जला देेने वाली लू में अपने प्रियजनों के पास जाने के लिए हजारों मील का सफर तय कर रहे हैं।

वे कई किलोमीटर चलकर बस पकड़ने की आस में ग़ाज़ियाबाद में मोरटा गांव के पास इस आश्रम पहुंच रहे हैं, लेकिन वहां वे खुद को पुलिस के हवाले पा रहे हैं।

कुछ मज़दूर बस पकड़ने की चाह में सड़क किनारे बैठे थे। अचानक पुलिस वाले आते हैं और उन्हें वहां से वापस लौट जाने के लिए कहते हैं। पुलिस वालों के डर से मज़दूर सर पर बोझा लेकर एक जगह से दूसरी जगह भटकते हुए नज़र आ रहे थे।

जिन मज़दूरों के लिए बसें नहीं जा रही थीं, इन्हें इस आश्रम से दो किलोमीटर दूर एक अन्य बारात घर में बने ट्रांज़िट कैंप में रखा जा रहा है।

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उस कैंप की हालत भी बहुत खराब है। पीने के लिए ठीक से पानी की भी व्यस्था नहीं की गई है और शौचालय स्वच्छ भारत अभियान का मज़ाक उड़ाते लगते हैं।

पानी को लेकर स्थिति इतनी खराब है कि यदि कोई पानी बांटने के लिए आता है तो मज़दूर एक के उपर एक टूट पड़ते हैं।

पानी के लिए तड़पते बच्चों को देख कर ‘वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन’ की टीम ने क़रीब साढ़े छह सौ पानी की बोतलें पहुंचाईं लेकिन वो देखते देखते ख़त्म हो गईं।

इन ट्रांज़िट कैंपों को देखकर लगता है कि प्रशासन सिर्फ ऊपर के आदेश को बड़े बेमन से अमल में लाने की कोशिश कर रहा है। जिन मज़दूरों के पैरों पर मलहम, पीने को पानी और दो मीठे बोल देने चाहिए, उन्हें डांट फटकार और काबू करने की मशक्कत अधिक दिखाई देती है।

ये मज़दूर मज़बूरी में अपने कमरे छोड़ पूरी गृहस्थी लिए सड़क पर आ चुके हैं। जब सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली तो खुद ही तवा बनी सड़क पर पैदल ही घर की तरफ निकल लिए।

water distribution from workers unity

इसी बीच कई मज़दूर सड़क हादसे का शिकार भी हो गए। लॉकडाउन के इस महासंकट में अब तक 500 से अधिक मज़दूरों की मौत हो चुकी है। इनमें से अधिकतर मज़दूरों की मौत उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िला, कुशीनगर, गोंडा आदि जिलों में हुई है।

लगातार बढ़ते हादसों को के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मज़दूरों के लिए निःशुल्क बसों की व्यस्था कराई। हालांकि यूपी दिल्ली बार्डर सील करने के साथ ही मज़दूरों को हर पुलिस नाके पर रोककर उन्हें यहां पहुंचाया जा रहा है।

प्रशासन ने इस बारे में कोई फरमान ज़ारी नहीं किया है लेकिन लगता है कि सरकार अब मज़दूरों को पैदल जाने नहीं देना चाहती, भले ही उनके लिए वो विधिवत व्यवस्था करने में अक्षम क्यों न हो।

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