हापुड़ फैक्ट्री धमाके में 13 मज़दूरों की मौत, एक महीने में दिल्ली एनसीआर में अब तक 40 मज़दूरों की जान गई

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शनिवार को उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक केमिकल फैक्ट्री में हुए भीषण विस्फोट में मरने वालों मज़दूरों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है। गंभीर रूप से घायलों की संख्या 20 के करीब बताई जा रही है।

स्थानीय मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार, विस्फ़ोट इतना शक्तिशाली था कि आस पास की कई फैक्ट्रियां क्षतिग्रस्त हो गई हैं और धमाके की आवाज़ करीब 10 किलोमीटर दूर तक सुनाई दी।

यह घटना हापुड़ में एमजी रोड औद्योगिक इलाके के फर्स्ट फेज में प्लाट नंबर एफ़-128 में स्थित रूही इंडस्ट्रीज़ में हुई।

फैक्ट्री से महज 250 मीटर दूर ही पुलिस् स्टेशन है और सवाल उठ रहे हैं कि प्रशासन को कैसे जानकारी नहीं थी कि इलाके में इलेक्ट्रानिक सामान के लाइसेंस पर अवैध पटाखा फैक्ट्री का संचालन हो रहा है।

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बताया जा रहा है कि इस फैक्ट्री को एक साल पहले ही लाइसेंस मिला था।

दिल्ली एनसीआर के इलाके में एक महीने के अंदर यह दूसरी भीषण औद्योगिक दुर्घटना है जिनमें कुल 40 मज़दूर मारे गए हैं।

बीते 13 मई को दिल्ली की मुंडका फैक्ट्री में लगी आग में 27 मज़दूरों की मौत हो गई थी। ताज़ा घटनास्थल दिल्ली से महज 80 किलोमीटर दूर है।

उधर किसान मजदूर मंच ने इस घटना को लेकर प्रदर्शन किया है और मृतकों के परिजनों को एक एक करोड़ रुपये मुआवज़ा देने की मांग की है।

इस दुर्घटना पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्विटर पर शोक संवेदना प्रदर्शित की है, लेकिन अभी तक न तो किसी मुआवज़े की घोषणा की और ना ही कोई ठोस आश्वासन दिया है।

 क्यों बढ़ रहे हैं फैक्ट्री हादसे?

बीते दो सालों में फैक्ट्री स्थल पर दुर्घटनाओं की बाढ़ आ गई है जिसमें अब तक सैकड़ों मजदूरों की जान जा चुकी है। और ऐसी दुर्घटनाएं घटने की बजाय बढ़ रही हैं।

यथार्थ के संपादक मुकेश असीम ने इसका कारण बताते हुए अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है, “नये लेबर कोड में सुरक्षा व अन्य सुविधाओं के लिए होने वाले इंस्पेक्शन बंद किये जा चुके हैं। हालांकि पहले भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी, मालिक मेनेज कर ही लेते थे। पर अब तो मालिकों को मजदूरों की हत्याओं की खुली छूट मिल गई है।”

वो लिखते हैं, “आधार से ड्रोन व सीसीटीवी तक के जरिए हमारी एक एक सरगोशी पर नजर रखने वाली हुकूमत को ये भी पता नहीं कि इस फैक्ट्री में होता क्या था!”

गौरतलब है कि मोदी ने हाल ही में अपने एक भाषण में कहा था कि ‘वो ड्रोन से चुपके से सबकी जानकारी इकट्ठआ कर लेते हैं और लोगों को खबर भी नहीं लगती।’

हापुड़ डीएम मेधा रूपम का विडिओ सामने आया है जिसमें उनका कहना है कि ‘लाइसेंस तो इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने का था पर जांच करनी होगी कि वास्तव में वहां क्या चल रहा था।’

असल में शुरुआत में खबर आई थी कि फैक्ट्री में बॉयलर फट गया है लेकिन पुलिस ने अभी नई थ्योरी पेश की है जिसमें कहा जा रहा है कि फैक्ट्री परिसर में बारूद की मौजूदगी के कुछ सबूत मिले हैं।

पुलिस ने धारा 286, 287, 304, 308, 337 और 338 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है।

Hapur blast burnt worker file
माफी के साथ ये तस्वीर प्रकाशित कर रहे हैं जोकि ट्विटर से प्राप्त हुई है। ये तस्वीर फैक्ट्रियों में रोज हो रहे हादसों की हृदय विदारक गवाह है।

खिलौने के नाम पर बनाए जाते थे पटाखे

आजतक समाचार चैनल से बात करते हुए फैक्ट्री के एक वर्कर महताब ने बताया कि यहां बारूद का काम किया जाता था। महताब को अभी 20 दिन ही हुए यहां काम करते हुए, इसलिए उन्हें बहुत कुछ जानकारी नहीं थी।

लेकिन उन्होंने बताया कि फैक्ट्री में क़रीब 70 लोग काम करते थे , जिनमें बाहर से भी लोग दिहाड़ी करने आते थे।

अभी प्रशासन ने कहा है कि इस इलाके की सभी फैक्ट्रियों की जांच की जाएगी कि कहीं गैरकानूनी तरीके से वहां कुछ और तो नहीं बन रहा है।

ट्रेड यूनियन के लोग इस बात का लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार ने फैक्ट्रियों में गैरकानूनी कामों और श्रम कानूनों के उल्लंघन की निगरानी के लिए होने वाली जांच को खत्म कर दिया है, जिसकी वजह से हादसे बढ़ रहे हैं।

हापुड़ डीएम मेधा रूपम की सोशल मीडिया पर आलोचना हो रही है कि जिसमें उन्होंने कहा है कि फैक्ट्री में क्या बन रहा था, उन्हें पता नहीं और इसकी जांच कराई जाएगी।

सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर औद्योगिक इलाकों में फैक्ट्रियों की सुरक्षा जांच को क्यों रद्द कर दिया गया है? क्या मज़दूरों की जान की कोई कीमत नहीं सरकार की नज़र में?

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विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि फैक्ट्री की छत तक उड़ गई.

न्यायिक जांच की मांग

वर्कर्स फ्रंट ने घटना की न्यायिक जांच कराने, दोषियों को सजा देने और मृत मजदूरों को पचास लाख और घायलों को दस लाख मुआवजा देने की मांग की है।

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर ने कहा कि यह कैसे सम्भव है कि पुलिस चौकी से महज 250 मीटर की दूरी पर संचालित हो रही थी अवैध पटाखा फैक्ट्री की प्रशासन को जानकारी न हो। ऐसे में इस घटना में प्रशासन की मिली भगत से इंकार नहीं किया जा सकता।

इस घटना में इस बात की जांच होनी चाहिए कि किन अधिकारियों के आदेश से वहां फैक्ट्री संचालित की जा रही थी और जो भी दोषी हो उसे दण्ड़ित किया जाना चाहिए।

दरअसल ऐसे खतरनाक कार्यस्थलों पर दुधर्टना रोकने के लिए जो नियम बनाए गए थे उन्हें योगी राज में इज आफ डूइंग बिजनेस के नाम पर निष्प्रभावी बना दिया गया है। जिसने मजदूरों के जीवन को और असुरक्षित कर दिया है।

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