दिल्ली से बेगूसराय को चले राम जी, सड़क पर तड़पकर बनारस में निकली जान

‘जब पैदल चल रहा रामजी महतो गिरा तो उसकी सांसें तेज चल रही थीं। लोगों ने एंबुलेंस को फोन किया, मगर एंबुलेंस कर्मियों ने उसे हाथ नहीं लगाया। एंबुलेंस कर्मियों का कहना था कि क्या पता रामजी कोरोना संक्रमित हो और उनके पास सुरक्षा किट भी नहीं है। रामजी सड़क पर तड़पता रहा, उसके बाद मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा और उसे अस्पताल की तरफ ले गये, मगर तब तक रामजी की मौत हो चुकी थी।’

बनारस के रोहनिया थाना प्रभारी का बयान है ये। मजदूरों की जिंदगी किस तरह किस्मत के हवाले कर दी गई है, फेहरिस्त की ये मामूली कड़ी है। घर की चौखट लेने से पहले ही दम टूट जाने की घटनाएं एक के बाद एक आती जा रही हैं।

दिल्ली से बेगूसराय में अपने गांव पहुंचने को पैदल निकले राम जी महतो भी घर नहीं पहुंच सके। बनारस में पहुंचने के साथ ही 16 अप्रैल को सांसें ठहर गईं। उनके परिजन भी इतने लाचार हो गए कि शव नहीं ले जा सके।

गरीबी और लॉकडाउन ने उनको दिल पर पत्थर रखने को मजबूर कर दिया। परिजनों के न आने पर बनारस पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराके 20 अप्रैल को अंतिम संस्कार करा दिया।

रामजी महतो के मामले में भी कोरोना पॉजिटिव होने का शक था, लेकिन उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आयी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ चुकी है, जिसमें उनके पेट में खाना होना नहीं आया। हालांकि सरकारें सबको खाना, राशन देने के दावे कर रही हैं।

रामजी की बहन नीला देवी ने बताया कि फोन पर राम जी ने इतना ही बताया था कि भूख नहीं लग रही, घर आ रहा हूं। राम जी दिल्ली में पानी सप्लाई की गाड़ी के ड्राइवर थे।

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