आखिर कोई प्रधानमंत्री अपने लोगों के प्रति इतना निर्मम कैसे हो सकता है? नज़रिया

narendra modi

By डॉ. सिद्धार्थ

प्रधानमंत्री ने पूरे देश में 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा किया यानि कर्फ्यू की धोषणा किया (प्रधानमंत्री के शब्दों में कर्प्यू जैसा)। इसका समर्थन किया जाना चाहिए

कोरोना को रोकने का एकमात्रा उपाय उसे एक आदमी से दूसरे आदमी तक फैलने से रोकना है या सोशल डिस्टेंसिंग (अपने-अपने घरों में ही रहना)। प्रधानमंत्री का यह भी कहना सच है।

इन दोनों बातों का समर्थन किया जाना चाहिए और मैं भी इसका समर्थन करता हूं। लेकिन प्रधानमंत्री के संबोंधन में यह तो बताय गया कि भारतीय जनता को क्या करना और क्या नहीं। जनता को जो करना है या नहीं करना है, उसके लिए भारत की सरकार ने कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया और उसे लागू भी कर रही है। इसको ठीक मान लेते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री के पूरे संबोधन में कुछ बुनियादी-मानवीय बाते पूरी तरह गायब थीं।

isilation ward for corona

1- प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया 21 दिनों के लिए घरों में कैद रहकर दो जून की रोटी जुटाने खाने की स्थिति में भारत के करीब 20 प्रतिशत यानि 27 करोड़ के आस-पास लोग नहीं। इसके लिए केंद्र सरकार ने क्या सोचा है, इसके बारे में कोई चर्चा प्रधानमंत्री नहीं की। दुनिया भर के देशों के प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति ऐसे लोगों के लिए आर्थिक मदद के पैकेज की घोषणा कर रहे हैं। ऐसे लोगों के खातों में पैसे डाले जा रहे हैं, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री इस पर पूरी तरह चुप्पी लगाए रहे। आखिर कोई प्रधानमंत्री अपने लोगों के प्रति इतना निर्मम कैसे हो सकता है? इस देश में करीब 35 करोड़ मजदूर हैं।

2- प्रधानमंत्री ने यह भी नहीं बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों में जो करोड़ों प्रवासी मजदूर फंसे हैं, उनके लिए सरकार क्या सोच रही है?

4- प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य सेवा के संदर्भ में चलते-चलते यह कह दिया केंद्र सरकार ने 15 हजार करोड़ स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जारी किए हैं। प्रधानमंत्री आप जानते हैं कि यह धनराशी ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जारी यह धनराशि चंद महीनें पहले आप द्वारा चंद कार्पोरेट घरानों के कार्पोरेट टैक्स की माफी के 8 वां हिस्से से भी कम है।

stranded workers during lockdown

5-यह वही प्रधानमंत्री हैं,जिन्होंने मिनटों चंद कार्पोरेट घरानों के 1 लाख 50 करोड़ रूपए माफ कर दिए। करीब 6 से 8 लाख करोड़ पूंजीपतियों के कर्जों को एनपीए ( जिसका वास्तविक मतलब माफी करना ही होता) कर दिया गया।

6-सारे अनुमान बता रहे हैं कि इस महामारी निपटने यानि स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने, जिनकी रोटी-रोटी चली गई उन्हें मदद पहुंचाने और अन्य कार्यों के लिए कम से कम 5 लाख करोड़ की जरूरत पड़ेगी। यह ऐसी धनराशि नहीं जिस जुटाया न जा सके। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में कोई घोषणा नहीं किया।

7-प्रधानमंत्री जी इसी देश से कमाया गया अकूत धन इस देश के चंद व्यक्तियों के पास है, क्या महामारी के आपातकाल में उनसे उसका एक हिस्सा लिया नहीं जा सकता है। देश के 9 बिलिनियरी लोगों के पास देश के 50 प्रतिशत यानी 67 करोड़ से अधिकल लोगों के बराबर संपदा है।

8-प्रधानमंत्री इस देश सिर्फ कुछ एक मंदिरों के पास कोरोना से लड़ने के लिए आवश्यक धन 5 लाख करोड़े से अधिक संपत्ति है, क्या उस राज्य अपने नियंत्रण में नहीं ले सकता है और उससे जनता की मदद नहीं की जानी चाहिए। आखिर मंदिर और भगवान के धन किसके लिए किस काम के हैं?

workers return from mumbai

9-प्रधानमंत्री जी एस बैंक के बचाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम का पैसा लगाय जा सकता है, क्या इस सार्वजनिक धन का इस्तेमाल जनता को राहत पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता है?

10-प्रधानमंत्री आप भारतीय जनता को उसके कर्तव्य बता रहे हैं और उसका कडाई से पालन कराने के लिए पुलिस बल भी इस्तेमाल कर रहे हैं, चलिए कोई बात नहीं। सरकार का कर्तव्य क्या है और उसे कैसे पूरा करने जा रही है आप ने इस संदर्भ में एक शब्द भी नहीं बोला, जो बोला मजाक जैसा था ( स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 15 हजार करोड़ की घोषणा)

11-प्रधानमंत्री जी आप इस देश के गरीबों-मजलूमों के भी प्रधानमंत्री हैं, आप इतने निर्मम और बेरहम कैसे हो सकते हैं? लोगों को उनके कर्तव्य बताइए। उसका पालन भी कराइए। लेकिन सरकार का क्या कर्तव्य है? आप भारत की सरकार के मुखिया के तौर पर यह भी तो बताइए।

आप से इतनी निर्ममता और बेहरहमी की उम्मीद नहीं थी।

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