अगर देश के आधे लोग बीमार हो जाएं तो 5 हज़ार में सिर्फ 5 लोगों को हॉस्पीटल बेड मिलेगा

corona virus testing and readiness

By दामोदर

हमारी सरकार हमें आश्चर्य में डालने में निपुणता हासिल कर चुकी है। नोटबन्दी हो या लॉकडाउन हर चीज़ अप्रत्याशित रूप से हमें परोसा जाता है। मोदी जानते हैं कि भारत की जनता चमत्कार पसंद है और इसी चमत्कार को वो बार बार पेश करते हैं।

कोरोना वायरस भारत में कई देशों से बाद में आया, लेकिन इसके महामारी घोषित किए जाने के बाद से ही ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि यह बीमारी देश में देर सवेर आएगा ज़रूर।

फिर भी सरकार सोई रही, देश में किसी प्रकार का इंतज़ाम नहीं किया गया। और तो और संघ के कई नेता और संगठन इस महामारी के बचाव में गैर वैज्ञानिक सूचना फैलते पाए गए। गो-मूत्र का सेवन, यहां तक की गोबर खाने जैसे वाहियात सलाह दी गयी।

भारत में 1990 से आर्थिक सुधार के नाम पर सुनियोजित ढंग से स्वास्थ्य सेवा को खंडित करने का कार्यक्रम चलाया गया। जिसे मोदी सरकार ने और तेज़ किया है।

स्वास्थ्य सेवा को पूरी तरह से निजी क्षेत्र को सौंपने और इसके बाज़ारीकरण की योजना लगभग पूरी हो चुकी है।

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आलम यह है कि 1.3 अरब की विशाल आबादी वाले देश में, जीडीपी का केवल 1.28 प्रतिशत इस मद में खर्च होता है।

2020 के बजट में केवल 62,659.12 करोड़ रुपये का प्रावधान स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किया गया है जिसमे 6,400 करोड़ प्रधानमंत्री जन आरोग्य सेवा के लिए दिया गया था, जिसका असल मक़सद बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने का है।

वहीँ दूसरी ओर सरकार ने पूँजीपतियों को गरीबी से निकलने के लिए अब तक करीब 1.45 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा की मदद कर चुकी है।
भारत प्रति व्यक्ति पर 1,657 रूपये खर्च करता है। जो विश्व में सबसे कम ख़र्चों में से एक है। इस खर्च का बड़ा हिस्सा प्रशासनिक सेवा में खर्च होता है। यह उस देश में जहाँ आज भी लोग निमोनिया, और टीबी जैसी बीमारी से मर जाते हैं।

अगर हम देश में सरकारी क्षेत्र में उपलब्ध अस्पतालों में बेड के आंकड़ों को देखे तो स्थिति कितनी दयनीय है इसका अंदाज़ा लगता है।

जुलाई 2018 में प्रकाशित सरकारी आंकड़े बताते हैं की पूरे देश में केवल 7,39,024 ही सरकारी अस्पताल में बेड है।

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मतलब अगर आप सरकारी अस्पताल में दाखिल होना चाहते हैं तो आपको जगह मिलने की सम्भावना 0.0005 प्रतिशत है! अब सोचिये ऐसे देश में सरकार इस महामारी से लड़ने के लिए कितनी सजग थी?

कोरोना के लेकर मोदी के दो राष्ट्र के नाम संदेश से यह बात स्पष्ट हो गयी है की उनके और उनकी सरकार के पास इस महामारी से लड़ने का ना तो कोई तैयारी है न ही योजना।

आज तक, भारत में कोरोनोवायरस से नौ मौतें और 519 मामलों की पुष्टि हुई है। इसके विपरीत, दक्षिण कोरिया – जिसकी आबादी भारत की आबादी का केवल 3.8% है, 9,000 से अधिक मामले मिले थे।

ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि हम और देशों के मुकाबले ज्यादा मज़बूत हैं, बल्कि इस अतिकम संख्या की मुख्य वजह यहाँ कोरोना के टेस्ट के लिए ज़रूरी सामान का ना होना है।अन्य देशों की तुलना में भारत में परीक्षण की दरें सबसे कम हैं ।

22 मार्च तक,देश में 17,000 से कम लोगों का परीक्षण किया गया था – जो दक्षिण कोरिया की दैनिक क्षमता के बराबर संख्या थी।

सरकार ने इस कोरोनावायरस के प्रकोप के प्रबंधन में किसी भी प्रकार की योजना नहीं बनी थी। जनता आज इस महामारी की चपेट में आने के लिए अभिशप्त है और प्रधान मंत्री उन्हें थाली बजाने को कह कर अपना दईत्व पूरा कर लेते हैं।

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पहले 2 दिन ला लॉकडाउन किया फिर इसे बिना किसी तैयारी के 21 दिन का कर दिया, इन 21 दिनों में गरीब किस तरह से अपना गुजरा करेंगे इस पर उनकी सरकार को सोचने की कोई ज़रुरत नहीं।

योगी ने कहा की हर मजदूर को सरकार सहायता राशि देगी लेकिन किन मज़दूरों को और कैसे इस पर मौन हैं। योजना के ऐलान के बाद उसे अमल करने के लिए कोई काम किया हो, ऐसे कोई जानकारी किसी को नहीं है।

फिर किसानों का क्या होगा, वे अपने फसल को कहाँ और कैसे बचेंगे, सरकार इस पर भी मौन है। मतलब कोरोना फिर से मज़दूरों और किसानों के मौत का कारण बनने जा रही है।

लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है, मोदी ने कोरोना से लड़ने के लिए 15,000 करोड़ का ऐलान किया, वहीं उन्होंने 20,000 करोड़ नए बंगलों और ऑफिस बनाने के लिए आवंटित किया है, सरकार की प्राथमिकता किस मुद्दे पर है आप खुद ही सोचिये।

वहीं एक छोटा सा देश है क्यूबा, जिसपर अमरीका ने दशकों से नाकेबंदी कर रखा है, और पूरी पूंजीवादी दुनिया की मीडिया एक शैतान की तरह इसके पीछे पड़ी हुई है। पर्यटन को बंद कर दिया गया है, वह भी तब जब यह इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

और राष्ट्रीय-कृत स्वास्थ्य सेवा ने न केवल यह सुनिश्चित किया है कि हजारों नागरिक अस्पताल कोरोनोवायरस रोगियों के लिए तैयार हैं, बल्कि यह भी है कि कई सैन्य अस्पताल नागरिक उपयोग के लिए भी खुले हैं।

मास्क जहाँ दूसरे देशों में मुनाफ़ा कमाने का बढ़िया ज़रिया बन गया वहीं क्यूबा ने आमतौर पर स्कूल की वर्दी और अन्य गैर-चिकित्सा वस्तुओं को बनाने वाले कारख़ानों को मास्क की आपूर्ति बढ़ाने के लिए पुनर्निर्मित कर दिया गया है।

आम आदमी को घर पर ही मास्क कैसे बनाये इसकी जानकारी टीवी द्वारा दिया जाने लगा। फिर भी कुछ लोग कहते हैं कि समाजवाद फेल हो गया और वह इंसानों की कद्र नहीं करता।

आज क्यूबा के डॉक्टर न केवल अपने देश में बल्कि दूसरे देशों में जा कर लोगों का इलाज कर रहे हैं। इटली जब अपनी तरह के अन्य पूंजीवादी देशों से मदद की गुहार लगा रहा था तो किसी ने उसकी मदद के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

तब यह क्यूबा था जिसने अपने डॉक्टरों और अन्य चिकित्सकों की पूरी टीम वहाँ भेज दिया। वहाँ आज डॉक्टर इतालवी जनता की सेवा कर रहे हैं।

और हम जो खुद को विश्व-गुरु बनने और 5 ट्रिलियन डॉलर की बात करने वाले आज इस महामारी से बचने के लिए पूरी तरह से अस्तव्यस्त दिख रहे हैं, उस चिड़िया की तरह जो शिकारी के बंदूक के सामने आराम से खड़ी है।

इस मुल्क के रहबर जानते हैं कि देश में हिन्दू मुस्लिम के उन्माद में बाकी सारी बातें चुप जाती हैं, इसलिए कोई काम करने से क्या फायदा?

आज देश के मज़दूरों और गरीबों को सरकार से सवाल करना होगा, उनके कानों में अपने क्रांतिकारी नारों की गूँज पंहुचानी होगी, नहीं तो कोरोना जैसे कई महामारी और सब से बड़ी महामारी भूख हमे लीलती ही जाएगी।

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