अंग्रेज़ी फ़रमान, ढील के बावजूद मज़दूर नहीं जा सकेंगे अपने घर, करना होगा 12 घंटे काम

migration the in the time of corona

By मुनीष कुमार

देश के विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को घर वापस भेजने का रास्ता भारत सरकार ने बंद कर दिया है।

गुजरात एवं भारत सरकार द्वारा पिछले दिनों दो शासनादेश जारी किए गये हैं जो कि देश के विभीन्न राज्यों में फंसे श्रमिकों के दृष्टिगत बेहद महत्वपूर्ण हैं, जिनके बारे में देश को और खासतौर से मजदूर वर्ग को जानना चाहिए।

एक शासनादेश केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 19 अप्रैल को जारी किया गया है। दूसरा इससे दो दिन पूर्व गुजरात की राज्य सरकार ने 17 अप्रैल को जारी किया है।

भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 19 अप्रैल को जारी शासनादेश में राज्य/केन्द्र शाषित सरकार द्वारा चलाए जा रहे राहत/ आश्रय शिविरों में रखे गये श्रमिकों को औद्यौगिक, विनिर्माण, निर्माण, खेती और मनरेगा के कार्यों में लगाने हेतु दिशा-निर्देश जारी किए गये हैं।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेेशों में फंसे हुए मजदूरों को राज्य से बाहर जाने की इजाजत नहीं होगी।

राहत/ आश्रय शिविरों में रह रहे मजदूरों को 20 अप्रैल के बाद यदि मज़दूर अपने कार्य स्थल पर जाना चाहते हैं तो उन्हें कार्य स्थल पर भेजा जाएगा।

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12 घंटे की ड्यूटी

शासनादेश में कहा गया है कि प्रवासी मज़दूरों को स्थानीय प्राधिकरण के समक्ष अपना पंजीकरण व स्किल मैपिंग कराना होगा जिससे उन्हें योग्यतानुसार काम पर लगाया जा सके।

इस तरह गृह मंत्रालय ने शासनादेश के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि प्रवासी मजदूर अपने घर वापस नहीं जा पाएंगे। इस देश में तीर्थयात्री, छात्र व विदेशी नागरिक तो अपने घरों में सुरक्षित वापस जा सकते हैं परन्तु मज़दूर नहीं।

दूसरा शासनादेश भाजपा शासित गुजरात सरकार द्वारा 17 अप्रैल को जारी किया गया था। इस शासनादेश के आने के बाद से ये माना जा रहा है कि दूसरे राज्यों की सरकारें भी आगे इसी तरह का शासनादेश जारी कर सकती हैं।

इस शासनादेश में गुजरात सरकार ने कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 5 में मिले विषेशाधिकार का उपयोग करते हुए मजदूरों के कार्य दिवस के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिये हैं। इतना ही नहीं विश्राम से पूर्व लगातार काम करने की अवधि जो अधिकतम 5 घंटे की थी, उसे बढ़ाकर 6 घंटे कर दिया गया है।

शासनादेश में कहा गया है श्रमिक को 8 घंटे के 80 रु. मिलते हैं तो 12 घंटे के उसे 120 रु दिये जाएंगे। मतलब साफ है 8 घंटे के कार्यदिवस के स्थान पर 12 घंटे का कार्य दिवस होगा और मजदूर को 4 घंटे ओवर टाइम का पैसा दोगुना की दर से अब उसे नहीं दिया जाएगा।

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महिलाओं से भी 12 घंटे काम

महिलाओं को रात की पाली में काम करने से रोका गया है परन्तु उनका कार्य दिवस भी 12 घंटे का ही होगा।

इस शासनादेश के द्वारा गुजरात सरकार ने कारखाना अधिनियम,1948 की धारा 51 (सप्ताह में 48 घंटे कार्य), धारा 54 (दिन में 9 घंटे से ज्यादा काम न लिया जाना), धारा 55 (लगातार 5 घंटे तक कार्य करने के बाद आधे घंटे के विश्राम) व धारा 56 (10.5 घंटे से ज्यादा अवधि का कार्य दिवस न होना) के प्रावधानों से कारखाना मालिकों को अगले 3 माह के लिए छूट दे दी है।

गुजरात सरकार का यह फैसला देश के स्थापित कानूनों का खुला उल्लंघन है। ये बंधुआ मजदूरी को कानूनी जामा पहनाने का तानाशाही भरा फरमान है।

केन्द्र व राज्य सरकार के शासनादेशों को एक साथ सामने रखकर देखा जाए तो इसकी भयावहता को आसानी से समझा जा सकेगा।

केन्द्र सरकार का शासनादेश कहता है कि प्रवासी मजदूर को कोरोना महामारी के कारण राज्य से बाहर जाने की इजाजत नहीं होगी।

workers stuck in jharsa village gudgaon

युद्ध के दौरान का नियम

गुजरात सरकार का शासनादेश कहता है कि मजदूर का कार्यदिवस 12 घंटे का होगा और कारखाना अधिनियम की धारा 59 के तहत मजदूर को दिया जाने वाले ओवर टाइम का डबल पैसा भी उसे नहीं मिलेगा।

गौरतलब बात यह है कि इस शासनादेश को लाने के लिए गुजरात सरकार ने कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 5 में मिले विशेषाधिकार का गलत तरीके से इस्तेमाल किया है। कारखाना अधिनियम की धारा 5 में कहा गया गया है-

लोक आपात के दौरान छूट देने की शक्ति- लोक आपातकाल की किसी दशा में, राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी कारखाने या किसी वर्ग या प्रकार के कारखानों को ऐसी कालावधि और ऐसी शर्तों के अध्यधीन, जैसी वह ठीक समझे इस अधिनियम के उपबंधों में से (धारा 67 के सिवाय) सब या किसी से छूट दे सकेगी।

परन्तु एसी कोई भी अधिसूचना एक समय पर 3 माह से अधिक की कालावधि के लिए नहीं की जाएगी।

(स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए ‘‘लोक आपात’’ से ऐसा गंभीर आपात से प्रेरित है जिससें कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति से भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है।)

सरकारी घाटा पाटने की कोशिश

कारखाना अधिनियम की धारा 5 में राज्य सरकार को जो विशेषाधिकार मिले हुए हैं। उस तरह की परिस्थिति देश में इस समय कहीं भी नहीं है।

देश में न तो युद्ध की स्थिति है और न ही कोई बाह्य आक्रमण देश पर हुआ है। देश में न ही कहीं आंतरिक अशांति की स्थिति है।

बल्कि जनता सरकार के निदेर्शों का अक्षरशः पालन कर रही है। और ना ही गुजरात प्रदेश और ना ही देश के किसी अन्य राज्य की सुरक्षा संकट में है। इस तरह स्पष्ट है कि सरकार पूंजीपतियों की लूट को कानूनी जामा पहनाने के लिए मनमानी पर उतर आयी है।

पिछले 1 माह से जारी लाॅक डाउन के कारण भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुयी है।

दुनिया के वित्तीय संस्थानों का आकलन है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद अप्रैल से जून तिमाही के दौरान पिछले साल के मुकाबले 25 प्रतिशत तक कम हो सकता है।

भारत सरकार व गुजरात की राज्य सरकार इस घाटे को पूरा करने करने के लिए पूंजीपतियों के हित में प्रवासी मजदूरों को प्रदेश में बंधक बनाकर रखना चाहती है।

जिससे कि श्रमिकों के खून की अंतिम बूंद को भी निचोड़कर पूंजीपतियों की तिजोरियों को भरने का रास्ता आसान हो सके।

workers return from mumbai

अंग्रेज़ी क़ानून

अंग्रेजों ने 18 वीं सदी में भारत के लोगों को दाने-दाने के लिए मोहताज कर उन्हें गिरमिटिया मज़दूर बनने के लिए मजबूर कर दिया था।

इसी तरह मोदी सरकार प्रवासी मजदूरों को लाॅक डाउन के नाम पर, उनके घर जाने पर रोक लगाकर, उन्हें रोजी-रोटी के लिए मोहताज करके उन्हें बंधुवा मजदूर बना रही है।

15 अप्रैल को केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश कहते हैं कि मजदूरों के रहने की व्यवस्था कार्यस्थल पर ही की जाएगी। जिसका मतलब है कार्यस्थल पर मजदूर मालिक का 24 घंटों के लिए दास बनकर रहेगा।

उसे मालिक के लिए उत्पादन करने और उसका हुक्म मानने के आलावा और कोई आजादी नहीं होगी।

गुजरात समेत देश के विभीन्न राज्यों में फंसे मजदूर इस देश के नागरिक हैं, उन्हें भी तीर्थयात्रियों और छात्रों की तरह सुरक्षित अपने घरों को जाने का अधिकार है। उन्हें जबरन रोककर रखना मजदूरों के लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

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गिरमिटिया प्रथा

सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी मजदूरों का व्यापक स्तर पर कोरोना टेस्ट कराए तथा तो लोग स्वस्थ हैं उन्हें बस, ट्रेन टैक्सी व हवाई जहाज द्वारा तत्काल घर पहुंचाया जाए तथा जो लोग कोरोना से संक्रमित पाए जाते हैं, सरकार उन्हें क्वरन्टाइन करके उनके इलाज व भोजन आदि की व्यवस्था करे।

गुजरात सरकार द्वारा 17 अप्रैल व गृह मंत्रालय द्वारा जारी 19 अप्रैल का शासनादेश पूर्णतः अलोकतांत्रिक व देश के संवैधानिक मूल्यों को ध्वस्त करने वाला है इसे तत्काल रद्द किया जाना चाहिए।

भारत व गुजरात सरकार का मजदूरों को लेकर लिया गया यह फैसला अंगे्रजी हुकूमत द्वारा 18-19वीं शताब्दी में लागू की गयी गिरमिटिया प्रथा की यादें ताजा कर देता है।

अंग्रेज़ों ने भारत को गुलाम बनाने के बाद जनता को रोटी के एक-एक टुकडे़ के लिए मोहताज कर दिया। उसके बाद उन्हें गुलामी की शर्त पर कागज पर अंगूठा लगाकर हजारों की संख्या में काम करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उन्हें विदेश ले जाया गया।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं।)

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