मध्य प्रदेश: 65 करोड़ रुपये से अधिक मनरेगा मजदूरों का बकाया, मजदूरी न मिलने से योजना से दूर जा रहे लोग

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कोरोना काल में सबसे अधिक त्रस्त मजदूर वर्ग हुआ है।  उनके सामने तो रोजी-रोटी का इंतजाम करने का ऐसा विकट संकट शायद पहले नहीं आया होगा।

पिछले साल के लॉकडाउन के बाद किसी तरह फिर एक बार उनकी जिंदगी पटरी पर आनी शुरू ही हुई थी कि दूसरी लहर ने मानो कमर ही तोड़ दी।

ग्रामीण इलाकों के मजदूरों को रोजगारी की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना भी मजदूरों को राहत प्रदान नहीं कर पा रही है।

मध्य प्रदेश से मनरेगा मजदूरों के हालात पर गांव कनेक्शन की एक रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि समय पर मजदूरी न मिलने के कारण कई इलाकों में मजदूर नया काम खोजने के और पलायन को मजबूर हो रहे हैं।

गांव कनेक्शन के अनुसार मध्य प्रदेश में पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल गांव कुडार में मनरेगा में काम करने वाले श्रमिक मजदूरी न मिलने से परेशान हैं।

न्नाबाई, जानकी, भगवंती व राजाबाई क्वांदर समेत दर्जनों महिलाओं ने पैसा न मिलने के कारण काम पर जाना छोड़ दिया है। लेकिन परेशानी ये है कि काम नहीं मिला तो घर कैसे चलेगा।

पैसा क्यों नहीं मिला पूछे जाने पर भगवंती बताती हैं, “अब हमें का पता कि पैसा काय (क्यों) नहीं मिल रहो। सरपंच के पास जाते हैं तो कहता है कि पैसा जब आएगा तो खाते में डल जाएगा।”

कुडरा गांव के ही युवक बिहारीलाल क्वांदर ( 22 वर्ष) बताते हैं, “मजदूरी मांगने पर सरपंच चिढ़ जाता है, कहता है जहां जिससे बताना हो बता दो अभी पैसा नहीं मिलेगा। हमने पंचायत सचिव मनोज यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि घबराओ नहीं पैसा लेट लतीफ आता है, जैसे ही आएगा डल (अकाउंट में) जायेगा।”

बिहारी लाल के मुताबिक काम करवाने के बाद पैसा बहुत लेटलतीफ मिलता है इसलिए गांव के ज्यादातर लोग मनरेगा में काम करने नहीं जाते हैं।

“मनरेगा में 15 दिवस के भीतर भुगतान करना होता है। हमारी तरफ से कोई पेंडेंसी नहीं है, शासन से ही पैसा नहीं आया इसलिए मजदूरों के खातों में पैसा नहीं पहुंचा।” पन्ना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पी.एल पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया।

पूरे राज्य की बात करें तो मनरेगा श्रमिकों की 65 करोड़ 86 लाख रुपए की मजदूरी बकाया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की मनरेगा वेबसाइट महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनयम 2005 की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश के 51 जिलों की कुल 22790 ग्राम पंचायतों में 86.76 लाख कुल जॉब कार्ड हैं, जिसमें से 63.68 लाख एक्टिव हैं।

प्रदेश में कुल सक्रिव (एक्टिव) श्रमिकों की संख्या 118.91 लाख है। पन्ना में मनरेगा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पीएल पटेल के मुताबिक करीब 3 महीने से भुगतान लंबित था, करीब 25 दिन पहले कुछ पेमेंट आया है बाकि अभी पाइपलाइन (पेंडिग) है।

मध्य प्रदेश के पन्ना समेत कई जिलों में मनरेगा और पोषण समेत कई मुद्दों पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘समर्थन’ के मुताबिक पन्ना समेत कई जिलों में मनरेगा मजूदरों का करोड़ों रुपए बाकी है। समर्थन के कार्यक्रम प्रबंधक ज्ञानेंद्र तिवारी के मुताबिक सूखे के लिए चर्चित पन्ना से सटे छतरपुर जिले में मनरेगा की स्थिति और गंभीर है।

प्रदेश में मनरेगा कार्ड धारकों की संख्या भले ही संख्या 118.91 लाख है। लेकिन 100 दिन का काम बहुत कम लोगों को मिल पाता है। प्रदेश में इस वर्ष प्रथम त्रैमास में 4 जुलाई तक मात्र 21419 परिवारों ने 100 दिन का काम पूरा किया, जबकि सागर संभाग में 100 दिन का काम पूरा करने वाले परिवारों की संख्या सिर्फ 1809 है।

यदि सागर संभाग के जिलों पर नजर डालें तो छतरपुर में 554, दमोह 385, पन्ना 110, सागर 336 तथा टीकमगढ़ जिले में 424 परिवारों को अब तक 100 दिन का काम मिला है। मनरेगा में दैनिक मजदूरी की दर 193 रुपये है, जबकि प्रदेश में औसत मजदूरी 185 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दी गई। मनरेगा में काम करने वाले ग्रामीण मजदूरों को समय पर मजदूरी का भुगतान न होने तथा उसमें भी कटौती होने से इस योजना के प्रति उनका रुझान कम हो रहा है।

(साभार- अरुण सिंह एवं गांव कनेक्शन)

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