नौकरी करते हुए पुलिस भर्ती की तैयारी जारी थी, दुर्घटना में हाथ चला गया, अब नौकरी भी

By खुशबू सिंह

दुर्घटना में हाथ से हाथ धो बैठे ट्रेनी मज़दूर को पुलिस शिकायत न करने की पहले धमकी दी गई, फिर परमानेंट करने का लालच दिया गया और फिर साल भर बाद सीधे नौकरी से निकाल दिया गया।

राजस्थान के नीमराना मे स्थित जापानी औद्योगिक क्षेत्र में निसिन ब्रेक कंपनी में पिछले दो साल से ट्रेनी मज़दूर के तौर पर काम करने वाले शुभम कुमार अब अपना बेकार हाथ लेकर चौराहे पर आ गए हैं।

अप्रैल 2019 में हुई फैक्ट्री दुर्घटना में उनका बायां हाथ ज़ख्मी हो गया था और अब वो औद्योगिक उत्पादन के लायक नहीं बचा है।

रिपोर्ट्स ऑन व्हील्स अभियान में वर्कर्स यूनिटी टीम को नीमराना जापानी ज़ोन की ये दर्दनाक कहानी मज़दूरों ने खुद बताई।

शुभम फर्नेस पर काम करते थे और मेटल से भरी ट्राली असंतुलित होकर उनके बाएं हाथ पर गिर गई और पूरा हाथ कुचल गया।

तब से इनका हाथ पूरी तरह काम नहीं करता है। कंपनी प्रबंधन ने इन्हें स्थाई नौकरी का लालच देकर पुलिस कंप्लेंट नहीं करने दिया।

लेकिन 13 जून 2020 को कंपनी ने शुभम के साथ 39 ट्रेनी मज़दूरों को काम से निकाल दिया। काम की तलाश, पैसों की तंगी और फ्रैक्चर हुए हाथ के साथ शुभम और उनके साथी इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं और काम पर वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले 23 साल के शुभम कुमार का सपना था कि वे यूपी पुलिस में भर्ती होंगे। निसिन ब्रेक कंपनी में काम करते हुए वो पुलिस भर्ती की तैयारी भी कर रहे थे।

लेकिन एक दुर्घटना ने उनके पूरे जीवन को बदल दिया और सपनों को उनसे दूर कर दिया।

काम की तलाश कर रहे शुभम का सिलेक्शन गुड़गांव में स्थित जॉब कंसल्टेंसी बीएम प्लेसमेंट द्वारा 23 अप्रैल 2018 में निसिन ब्रेक कंपनी में हुआ।

दुर्घटना और इलाज़ में देरी

कंपनी ने इन्हें आश्वासन दिया था कि दो साल की ट्रेनिंग के बाद इनको स्थाई नौकरी मिल जाएगी।

शुभम को डाई कास्टिंग प्लांट के फर्नेस पर लगाया गया जहां उन्हें 750 डिग्री तापमान में काम करना होता है।

यहां एल्युमीनियम को गलाया जाता है और फिर सांचे में डाला जाता है। ये काम बहुत ख़तरनाक है और रोज़ ही यहां छोटी मोटी दुर्घटनाएं होती रहती हैं, इसलिए यहां अनुभवी और शारीरिक रूप से तगड़े लोगों को लगाया जाता है।

यहां मज़दूरों को हाथ से बकेट का मेटल फर्नेस में डालना होता है और फिर गले हुए मेटल को उठकर डाई में डालना होता है।

शुभम बताते हैं कि यहां आठ घंटे काम करते हुए सारे समय सिर और बदन से पसीना टपकता रहता है और जूते में पसीना भर जाता है।

अप्रैल 2019 में काम के दौरान ही शुभम फैक्ट्री दुर्घटना का शिकार हो गए, जिसमें इनका बायां हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया। इल़ाज कराने के बाद भी शुभम का बायां हाथ पूरी तरह काम नहीं करता।

शुभम कहते हैं, “शाम 5 बजे मुझे चोट लगी क़रीब तीन घंटे बाद सिटी अस्पताल में प्रबंधन ने मेरी मरहम पट्टी कराई। चोट गहरी होने के कारण हाथ का ऑपरेशन कराना ज़रूरी था। मैं दर्द से तड़प रहा था और कंपनी के अधिकारी चर्चा करने में व्यस्त थे कि इसका इल़ाज कहां कराना है।”

वो बताते हैं, “चर्चा खत्म होने के बाद रात 11 बजे मुझे राजस्थान के कैलाश अस्पताल ले जाया गया वहां मेरे हाथ का ऑपरेशन हुआ। डॉक्टर ने कहा था कि मुझे एक सप्ताह अस्पताल में ही रहना पड़ेगा। पर कंपनी प्रबंधन के दबाव के बाद डॉक्टर ने मुझे 3 दिन के भीतर ही छुट्टी दे दी।”

शिकायत न करने को डाला दबाव

शुभम बताते हैं, “अस्पताल से सीधे मुझे फैक्ट्री बुलाया गया। कंपनी प्रबंधन ने मुझ पर आरोप लगाया कि मेरी ही ग़लती के कारण चोट लगी। प्रबंधन ने मुझसे कहा यदि तुम अपनी साथ हुई दुर्घटना की शिकायत करोगे तो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा।”

वो कहते हैं, “घर की माली हालत ठीक न होने के कारण मैं इस काम को किसी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहता था। और प्रबंधन ने मुझे स्थाई नौकरी का लालच भी दिया इसलिए मैंने कंपनी के ख़िलाफ़ कोई शिकायत नहीं की।”

नीमराना में मज़दूरों के बीच काम करने वाले एक कार्यकर्ता ने बताया, “कंपनी में चोट लगने के बाद सभी मज़दूरों का इल़ाज सिटी अस्पताल में ही कराया जाता है। क्योंकि कंपनी का अस्पताल के साथ कॉन्ट्रैक्ट है। लेकिन वहां इल़ाज की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। केवल मरहम पट्टी ही हो सकती है।”

शुभम बताते हैं, “मेरा हाथ तीन महीने तक काम नहीं कर रहा था। मैं फैक्ट्री भी नहीं गया। इस बीच कंपनी ने मुझे तीन माह का वेतन दिया। इल़ाज का पूरा खर्च भी उठाया लेकिन 13 जून को मेरे 39 साथियों के साथ मुझे भी काम से अचानक निकाल दिया गया।”

तीन महीने तक हाथ काम नहीं किया

निसिन तक पहुंचने के सफर के बारे में शुभम कहते हैं, “जब मैं छोटा था तभी मां का देहांत हो गया था। पिता जी गांव में खेती करते हैं। ग्रेजुएशन के बाद मुझे और पढ़ना था लेकिन घर की माली हालत ठीक नहीं थी। तो मैं काम की तलाश करते हुए लोगों से संपर्क करने लगा।”

उसी दौरान उन्हें बीए प्लेसमेंट नाम की एक एजेंसी ने निसिन ब्रेक कंपनी में काम पर लगा दिया, “मैंने सोचा अब नौकरी लग गई है तो काम करते हुए मैं अपने सपने को पूरा कर लूंगा पर मुझे नहीं पता था कि मेरे साथ ऐसा हादसा  हो जाएगा कि सब कुछ एक पल में बदल जाएगा।”

दुर्घटना के बाद अपनी मुश्किलों के बारे में वो बताते हैं, “तीन महीने तक मेरा हाथ काम नहीं कर रहा था उस दौरान मेरे चाचा और साथ रह रहे दोस्तों ने मेरा साथ दिया। घर वाले शादी कराना चाहते हैं लेकिन अब तो नौकरी भी नहीं रही।”

हर दिन मरते हैं तीन मज़दूर

श्रम और रोजगार मंत्रालाय के आँकड़ों के अनुसार, पूरे भारत में 2014-2016 के बीच 3,562 मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में हुई हैं और 51 हजार से अधिक मज़दूर घायल हुए हैं।

यानी भारत में औसतन हर दिन तीन मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है और 47 लोग घायल होते हैं।

मौजूदा बीजेपी सरकार ने तो पिछली सारी सरकारों को पीछे छोड़ते हुए 40 श्रम क़ानून ख़त्म कर दिए हैं जबकि इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को मज़दूरों का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करते हुए खुद को नंबर वन मज़दूर होने का दम भरते हैं।

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