‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब का चंडीगढ़ में विमोचनः एक रिपोर्ट

ऐतिहासिक किसान आंदोलन पर आधारित ‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब का दिल्ली में विमोचन के बाद 24 सितम्बर को चंडीगढ़ में विमोचन किया गया। इसे एएफडीआर ने आयोजित किया था।

विमोचन में संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक डॉ. दर्शनपाल, बीकेयू उग्रहां के नेता जोगिंदर सिंह उग्रहां, बीकेयू क्रांतिकारी की नेता सुखविंदर कौर, बीकेयू डकोंदा के नेता जगमोहन सिंह और स्वतंत्र पत्रकार शिव इंदर सिंह वक्ता के तौर पर शामिल हुए।

करीब 500 पृष्ठों में शामिल 21 साक्षात्कारों के संकलन की यह किताब वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड ज़ीरो और नोट्स ऑन द एकेडमी के संयुक्त प्रयास का परिणाम है।

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चंडीगढ़ में दो दिन जारी भारी बारिश के बीच कार्यक्रम में इस किताब को लेकर काफी उत्साह था हालांकि इतने कम समय में आई किताब में जो पहलू छूट गए उस तरफ भी वक्ताओं और कार्यक्रम में आए लोगों ने ध्यान आकर्षित कराया।

एएफ़डीआर से जुड़े मंजीत सिंह ने किताब के बारे में जानकारी दी और कहा कि ऐसे समय समय में जब एक ऐतिहासिक आंदोलन हुआ, इसका दस्तावेजकरण का यह प्रयास प्रशंसनीय है।

उन्होंने किताब में सभी साक्षात्कार को चार भागों में बांटे जाने और हर भाग के उद्देश्य, संक्षेप में जानकारी प्रस्तुत की।

बीकेयू डकोंदा के नेता जगमोहन सिंह ने किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए 700 से अधिक किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ अपनी बात रखते हुए कहा कि इस किताब को लाना वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड ज़ीरो और नोट्स आन एकेडमी का सराहनीय कार्य है। “हमारी यूनियन और संयुक्त किसान मोर्चे की ओर से इस पूरी टीम को बधाई।”

उन्होंने कहा कि इस किताब के हर सेक्शन में पंजाब की खेतीबारी के संकट से जुड़े हर सवाल पर गहराई से चर्चा की गई है। इस मामले में यह बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

उन्होंने कहा कि बीते 20-25 साल से पंजाब में यूनियनें काम कर रही हैं और इस आंदोलन में पंजाब के हर तबके ने अपनी भूमिका निभाई। सिख संगठनों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, जो यूनियन से संबद्ध नहीं थे। वाम घेरे की यूनियनों के अलावा बहुत सी यूनियनों ने संयुक्त किसान मोर्चे को आकार दिया। पंजाब की 32+2 यूनियनों के अलावा आल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी की भी अहम भूमिका रही है।

लेकिन किताब में किसान आंदोलन के बहुत से पहलू छूट गए हैं और कुछ बड़ी किसान यूनियनों जिनकी संयुक्त किसान मोर्चा में अहम भूमिका थी, उनको शामिल नहीं किया गया है।

उन्होंने कहा कि यह किसान आंदोलन पूरे पंजाब का आंदोलन था जिसमें हर तबका, हर संप्रदाय, हर राजनीतिक धारा के लोग शामिल थे। यही इस आंदोलन की मूल भावना थी। इन संगठनों के इंटरव्यू भी इसमें छापे जा सकते थे। यह आंदोलन साम्राज्यवाद विरोधी, फासीवाद विरोधी जन आंदोलन था और इसमें शामिल सभी लोग हाथों में लेफ्ट का झंडा नहीं लिए थे।

उन्होंने कहा कि गैर वामपंथी यूनियनों के इंटरव्यू को लेकर अगर इस किताब का दूसरा भाग भी आ जाए तो बहुत बढ़िया रहेगा, क्योंकि कोई भी ये दावा नहीं कर सकता कि यह आंदोलन सिर्फ एक धारा के लोगों ने खड़ा किया।

जगमोहन सिंह का पूरा भाषण यहां सुना जा सकता है।

संयुक्त किसान मोर्चा के कोआर्डिनेटर और क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता डॉ. दर्शनपाल ने उनकी बात से इत्तेफाक जताते हुए कहा कि हालांकि यह किताब एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है क्योंकि आंदोलन के दौरान जो लोग उसमें सीधे तौर पर शामिल थे, उनसे बातचीत पर आधारित है। फिर भी कुछ महत्वपूर्ण यूनियनों के नेताओं को भी शामिल करना चाहिए।

उन्होंने पंजाब में एक बार फिर करवट लेते किसान आंदोलन के बारे में पंजाब की किसान यूनियनों द्वारा लिए गए फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि 26 नवंबर को ऐतिहासिक किसान आंदोलन के पहली सालगिरह पर देश भर में बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि एक विस्तृत चार्टर आफ डिमांड को लेकर किसान अपने आंदोलन को आगे ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि 2024 के पहले डेढ़ साल का वक्त है और इस दौरान एक बड़े आंदोलन की ओर बिना गए मौजूदा फासीदवादी हमले का मुकाबला नहीं किया जा सकता।

डॉ. दर्शनपाल का पूरा भाषण यहां सुना जा सकता है।

पंजाब की सबसे बड़ी यूनियनों में से एक बीकेयू उग्रहां के नेता जोगिंदर सिंह उग्रहां ने कहा कि यह किसान आंदोलन दुनिया का पहला ऐसा आंदोलन बन गया जिसने कारपोरेट को सीधे निशाने पर लिया।

इस आंदोलन की खास बात ये थी कि इसने किसी भी राजनीतिक पार्टी को मंच नहीं दिया। बावजूद न सिर्फ पंजाब में देश भर में सभी किसान यूनियनें एक न्यूनतम कार्यक्रम पर एकजुट हुईं। उनके पीछे जनता का हर हिस्सा शामिल हो गया।

जोगिंदर सिंह उग्रहां का पूरा भाषण यहां सुन सकते हैं।

ग्राउंड ज़ीरो से नंदिनी धर ने इस किताब के कलेक्टिव प्रयास के बारे में लोगों को बताया। उन्होंने कहा कि जब किसान आंदोलन चल रहा था तभी एक संयुक्त प्रयास से इसके दस्तावेजीकरण का आइडिया आया।

उन्होंने कहा कि वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड ज़ीरो और नोट्स आन एकेडमी ने मिलकर पहला एक कलेक्टिव काम किया और आगे भी इसे जारी रखने का प्रयास रहेगा।

जाने माने फिल्मकार और चर्चित फिल्म लैंडलेस के डायरेक्टर रणदीप मढोके ने भी इस मौके पर अपनी बात रखी, जो पूरे किसान आंदोलन को अपने कैमरे के मार्फत डाक्युमेंट करने में जुटे हुए थे।

उन्होंने किताब के मार्फत ऐतिहासिक आंदोलन के दस्तावेजीकरण के प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि जितना बड़ा आंदोलन था, उसके हर पहलू को कवर कर पाना बहुत मुश्किल था और उनसे भी बहुत सारे पहलू रह गए, क्योंकि इसका फैलाव बहुत बड़ा था।

रणदीप मढोके का पूरा भाषण यहां सुन सकते हैं।

बीकेयू क्रांतिकारी की प्रांतीय नेता सुखविंदर कौर ने कहा कि यह किताब इस आंदोलन के इतिहास को लिखित रूप से सामने ले आई है, और ये बहुत अच्छी बात है।

उन्होंने कहा कि उस सत्ता की लगाम पकड़ना, जो बेलगाम हो चुकी है, इस आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता रही है।

इस आंदोलन ने ये सिखाया है कि कोई भी दमनकारी ताकत अजेय नहीं होती है, जनता की ही सबसे बडी ताकत होती है।

सुखविंदर कौर का पूरा भाषण यहां सुन सकते हैं।

स्वतंत्र पत्रकार शिव इंदर सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ये किताब पंजाबी में आना ज़रूरी है और उम्मीद की जाती है ये जल्द आएगी। उन्होंने कहा कि इस किताब की सबसे खूबसूरत बात ये है कि इसमें किसान आंदोलन में शामिल रहे अलग अलग धाराओं के लोगों के साक्षात्कार को शामिल किया गया है और इसमें अपना कोई नजरिया नहीं दिया गया है।

इस किताब में एडिटर्स ने अपना कोई कमेंट नहीं दिया है। लेकिन साथ ही फैक्ट को लेकर खासी सतर्कता बरती गई है। क्योंकि बहुत सारे इंटरव्यू वर्कर्स यूनिटी चैनल पर उपलब्ध हैं और इसमें अगर किसी ने भूलवश कोई गलत तथ्य दे दिया है तो उसे सुधारा गया है। ऐसे में यह बहुत तथ्यात्मक बन पड़ी है।

शिव इंदर सिंह का पूरा भाषण यहां सुन सकते हैं।

किताब ले आने की टीम में शामिल रहीं और पंजाब में महिलाओं के मुद्दे पर काफी कर चुकीं रंजना पाढ़ी ने कहा कि इस आंदोलन ने खेती किसानी पर कार्पोरेट के हमले को सबके संज्ञान में ला दिया है।

इस किसान आंदोलन ने एक साथ पूंजीवाद और हिंदुत्व को चुनौती दी है। पूंजीवाद ने ओड़िशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तमाम तटीय प्रदेशों में बहुत आक्रामक है। उस आक्रामक पूंजीवाद को इस किसान आंदोलन से जबरदस्त चुनौती मिली है।

रंजना पाढ़ी का पूरा भाषण यहां सुना जा सकता है।

अंत में कामरेड नरभिंदर ने इस किताब को लाने के लिए प्रकाशकों और किताब पर चर्चा आयोजित करने के लिए एएफ़डीआर की टीम को धन्यवाद दिया।

मंच का संचालन एएफडीआर के सचिव मनप्रीत किया।

उल्लेखनीय है कि बीते 18 सितम्बर को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में ऐतिहासिक किसान आंदोलन पर आधारित ‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब का विमोचन किया गया।

इस किताब को यहां से मंगाया जा सकता है। मेल करें- [email protected]  या फोन करें  7503227235

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