कोरोना काल के चर्चित भीलवाड़ा मॉडल में श्रमिकों का हाल ऐसा भी है

By आशीष सक्सेना

कोरोना वायरस रोकने में राजस्थान के भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा काफी हो रही है, लेकिन उसी भीलवाड़ा में श्रमिकों के हाल पर कोई चर्चा नहीं है। यहां के एक नौजवान ने श्रमिकों के हाल बताने को अपनी ही तकलीफ वर्कर्स यूनिटी को बताई है। इस समस्या के समाधान के लिए ट्रेड यूनियन से भी संपर्क साधने की कोशिश की है। हालांकि अभी तक कोई राहत नहीं मिली है।

नौजवान का नाम है खुशबू मीणा। खुशबू ने बताया कि वे भीलवाड़ा में सैफरॉन फैक्ट्री के मालिक की गाड़ी लगभग एक साल से चला रहे हैं। उन्हें तनख्वाह कभी बैंक खाते में नहीं मिली, बल्कि नकद दी गई।

नौकरी के संबंध में कोई कागजात नहीं हैं। मालिक जिस कॉलोनी में रहते हैं, वहां के अन्य रईस परिवारों के लोग और सैफरॉन फैक्ट्री का स्टाफा व मजदूर जानते हैं। गाड़ी पर खुशबू के अलावा एक अन्य भी ड्राइवर है।

खुशबू मीणा का आरोप है कि फरवरी से वेतन ही नहीं दिया गया और लॉकडाउन के हालात में खाने की लाले पड़ गए हैं। पत्नी छह महीने के गर्भ से है। गांव भीलवाड़ा से लगभग 150 किलोमीटर दूर है, लेकिन वहां जाने को भी किराया नहीं है।

गांव में माता-पिता रहते हैं, उनकी की कोई मदद नहीं कर पाया अब तक। खुशबू मीणा ने ट्रेड यूनियन सीटू से को भी समस्या बताई है। उनका एक ही सवाल है, कि क्या करूं कि मुझे पेमेंट मिल जाए।

वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में खुशबू मीणा ने ये भी आरोप लगाया कि मालिक लॉकडाउन का पैसा नहीं देना चाहते और कह दिया है कि जरूरत होगी तो काम पर रखेंगे, नहीं तो दूसरा काम देख लो।

इस संबंध में सैफरॉन फैक्ट्री के मालिक सत्येंद्र भराडिया ने वर्कर्स यूनिटी से कहा कि खुशबू मीणा मेरे नियमित कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि दस दिन की एवजी में बड़ौदा लेकर गए थे, जिसका पेमेंट कर दिया गया है। साथ ही ये भी कहा कि मेरी फैक्ट्री के सभी कर्मचारी व स्टाफ संतुष्ट हैं, उनको कोई समस्या नहीं है।

वहीं, खुशबू मीणा ने बताया कि फैक्ट्री का काम करने वालों को भी मार्च महीने की तनख्वाह नहीं मिली है। ज्यादातर मजदूरों को कैश पेमेंट दिया जाता है। जिनको बैंक खाते में तनख्वाह मिलती है, उनको कुछ खर्चा बतौर मुहैया कराया गया है।

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दक्षिण भारत से भी ऐसी खबर
विशाखापट्टनम में भी कंपनी के ड्राइवर रहे बिहार के सिवान निवासी रूपेश कुमार अचानक नौकरी से निकालने और तय वेतन न मिलने से संकट में हैं। उन्होंने बताया कि सात महीने में सिर्फ तीन छुट्टी कीं, क्योंकि कंपनी की तरफ से कहा गया था कि रविवार को भी काम करने पर उस दिन का पैसा दिया जाएगा।

पिछले दिनों 26 फरवरी को छुट्टी पर आए कि कंपनी की ओर से कॉल आ गई कि अब नहीं आना है। कंपनी पर 28 इतवार की ड्यूटी का बकाया है, जिसको लेकर कहा गया तो अब फोन भी नहीं उठा रहे।

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