जो वापस नहीं जा सके, वेतन न मिलने से कहीं फांका तो किसी के चकनाचूर हो रहे ख्वाब

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By आशीष सक्सेना

वर्कर्स यूनिटी लीगल हेल्पलाइन पर मजदूरों के ढेरों ऐसे पत्र मिल रहे हैं, जिनमें कंपनियों से लेकर कारोबारियों के पास काम करने वाले वेतन, ओवर टाइम का पैसा या फिर नौकरी को लेकर मुसीबत में पड़े दिखाई दे रहे हैं।

ऐसी ही एक समस्या उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में मवान गांव के रहने वाले तीस वर्षीय मुकुल कुमार ने बताई है।

वे बताते हैं कि उनके परिवार के पास करीब आठ बीघा खेती की जमीन है, जिससे परिवार काफी आर्थिक संकट से जूझ रहा था।

“घर बनवाने के लिए कुछ लोन भी लिया गया था। मैंने जीव विज्ञान से इंटरमीडिएट पास कर लिया, लेकिन माली हालत खराब होने से बीएसएसी करने की हसरत पूरी नहीं हो सकी।”

वो कहते हैं, “परिवार को संभालने के लिए मैंने नौकरी के लिए हाथ-पांव मारे तो केके इंटरप्राइजेज के मार्फत गुडग़ांव स्थित मीनाक्षी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में काम मिला। ठेकेदार के अंडर में ऑपरेटर का काम करने लगा। इस कंपनी में हीरो और होंडा कंपनी के वाहनों के लिए ब्रेक, कैरियर, हैंडिल आदि बनाए जाते हैं। तकरीबन 700 लोग काम करते हैं यहां।”

नौकरी ठीक चल रही थी कि माता-पिता ने विवाह की तैयारी की। जनता कर्फ्यू लगने से एक दिन पहले शादी के सिलसिले में कुछ मेहमान घर पर आने वाले थे इसलिए गांव गया। अगले दिन ही घोषणा हो गई और फिर लॉकडाउन।

अनलॉक-1 होने पर भी आवागमन के साधन नहीं मिल रहे। कंपनी से संपर्क किया कि ओवरटाइम का पैसा उपलब्ध करा दें तो वो आने पर ही देने को कह रहे हैं। कई साथ काम करने वालों से बात की तो पता चला कि तमाम लोगों की सैलरी तक नहीं आई है।

ठेकेदार से बात करते हैं तो कह दिया जाता है कि एचआर में संपर्क करो और एचआर कोई जवाब ही नहीं देता।

फिलहाल परिवार की हालत पहले से भी खराब हो चुकी है। पैसों की कमी के चलते छोटे भाई की इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी छूट गई।

तनख्वाह का वादा कर दिया धोखा

इसी से मिलती जुलती समस्या प्रयागराज के आसेपुर गांव निवासी अखिल सिंह ने बताई। हरियाणा के बावाल स्थित इंडस्ट्रियल ग्रोथ सेंटर में मुसाशी ऑटो पाट्र्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में एक मई 2019 से कार्यरत हैं।

इस कंपनी में होंडा के चार और दो पहिया वाहनों के गियर बनाए जाते हैं। लगभग 2500 वर्कर काम करते हैं। अखिल कहते हैं कि यहां यूनियन तो है, लेकिन एकदम बेकार। कार्यस्थल पर गंदगी तक उन्हें नहीं दिखाई देती तो मजदूरों का हाल क्या दिखाई देगा।

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लॉकडाउन के बाद कंपनी की तरफ से फोन आया था कि आप लोग घर मत जाओ, आपको काम पर बुलाया जाएगा और लॉकडाउन की सैलरी भी दी जाएगी। इसी आस में सभी रहे।

लेकिन अब कंपनी कह रही है कि कंपनी सिर्फ पुराने कर्मचारियों को ही वेतन देगी। प्रवासी मजदूरों को कंपनी तनख्वाह देने से साफ मना कर रही है।

लाला ने दस साल का नाता तोड़ा

छोटे कारोबारियों के यहां काम करने वालों की संख्या का कोई अनुमान ही नहीं है कि उनमें से कितनों के घर फांके हो रहे हैं।

आगरा के अमित सौन ने वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन से मदद मांगी है। उन्होंने बताया कि पीपलमंडी स्थित खिलौने के थोक व्यापारी विजय प्रकाश गुप्ता के यहां दस साल से काम कर रहे थे।

काम के घंटे भी तय नहीं थे, नौ हजार रुपये पगार पर सुबह नौ-दस बजे से रात को 12 बजे तक लगे रहते थे। जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले दुकान पर नहीं गए थे और फिर उसके बाद नहीं जा सके।

अब चार लोगों में से दो को काम पर नहीं रखा जा रहा और न ही वेतन दिया जा रहा। फोन करें या जाएं तो बात भी नहीं करते। कम से कम बकाया पैसा तो मिले, जिससे घर का खर्च कुछ समय चल जाए।

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