एक दिन के अंधेरे के बाद यूपी में बिजली निजीकरण से पीछे हटी योगी सरकार

UP yogi electricity privatization

पांच अक्टूबर को विद्युत कर्मचारियों के पूरे दिन के कार्य बहिष्कार से हिली योगी सरकार ने आखिरकार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के फैसले को स्थगित कर दिया है।

छह अक्टूबर को यूपी पॉवर कारपोरेशन के उच्च अधिकारियों और विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा और इससे जुड़ी अन्य ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों में निजीकरण रोकने समेत पांच बिंदुओं पर सहमति बनी।

हालांकि सरकार की ओर से इस समझौते में समीक्षा का पेंच जोड़े जाने से निजीकरण का मुद्दा पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है और तीन महीने तक यानी 15 जनवरी तक मासिक समीक्षा किए जाने से आशंका बनी हुई है।

समझौते में उन प्रदर्शनकारी कर्मचारियों के ख़िलाफ़ सारे मुकदमें वापस लेने पर सहमति बनी है जो कार्यबहिष्कार और प्रदर्शन के दौरान उन पर सरकार ने लादे थे।

चार दिनों से रोज़ाना आंशिक कार्यबहिष्कार कर रहे उत्तर प्रदेश के विद्युत कर्मचारियों ने  पांच अक्टूबर को पूरे दिन का कार्यबहिष्कार किया था जिसके बाद कुछ शहरों को छोड़कर यूपी के तमाम ज़िलों में अंधेरा छा गया। हालांकि कर्मचारी यूनियनों ने आवश्यक सेवाओं को हड़ताल से अलग रखा था।

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योगी-मोदी का क्षेत्र अंधेरे में डूबा

सर्वाधिक प्रभावित पूर्वांचल का इलाका है जहां के वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव को योगी सरकार ने सबसे पहले हरी झंडी दिखाई थी।

बनारस के पास ग़ज़ीपुर ज़िले में रहने वाले एक फ़ेसबुक यूज़र यशवंत सिंह ने लिखा है, “ग़ाज़ीपुर में हूँ। बुरा हाल है। पानी पंखा सबका बन्द। इन्वर्टर बोल गए हैं। हाहाकार है। सब हड़ताल पर ही चर्चा कर रहे। निजीकरण का मुद्दा जनता तक पहुंच चुका है। बीजेपी वाले दाएं बाएं मुंह छिपाते घूम रहे। किसानों को धान के लिए पानी चाहिए। नलकूप ठप पड़े हैं।”

इसी तरह आदित्य श्रीवास्तव ने लिखा है कि गोरखपुर के लगभग आधे हिस्से बिजली ना होने से अफरातफरी मची हुई है।

बनारस और इलाहाबाद से भी ऐसी ही ख़बरें हैं कि वहां कुछ इलाक़ों को छोड़ बाकी अंधेरा छाया हुआ है। सोशल मीडिया पर लोग बता रहे हैं कि उनके शहरों में 36 घंटे से बिजली नहीं है। कई जगह बिजली जाने पर प्रदर्शन की भी ख़बरें हैं।

जब कर्मचारियों ने पूरे दिन के कार्य बहिष्कार का निर्णय लिया तो उपकेंद्रों में लेखपालों को चार्ज देने का आदेश आया। कई जगहों पर लेखपालों के भरोसे रहे उपकेंद्र। गोरखपुर समेत कई उपकेंद्रों पर अभियंताओं को सस्पेंड करने की घटनाएं भी सामने आईं।

सोशल मीडिया पर विद्युत कर्मचारियों के इस निजीकरण विरोधी हड़ताल को व्यापक समर्थन मिल रहा है और लोग सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं।

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समझौते के प्रमुख बिंदु

1- पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लिया जाता है। साथ ही इस मसले पर किसी अन्य व्यवस्था का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। यूपी के विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में कर्मचारियों की सहमति से सुधार किए जाएंगे। बिना कर्मचारियों की सहमति के उत्तर प्रदेश में किसी बिजली वितरण निगम का निजीकरण नहीं किया जाएगा।

2- विद्युत वितरण की व्यवस्था में सुधार के लिए कर्मचारी और प्रबंधन मिलकर काम करेंगे।

3- वितरण के क्षेत्र को भ्रष्टाचार मुक्त करने, बिलिंग एवं कलेक्शन एफ़िशियेंसी का लक्ष्य प्राप्त करने और उपभोक्ताओं को पूर्णतः संतुष्ट करते हुए सार्थक कदम उठाते हुए विद्युत उपकेंद्रों को आत्मनिर्भर बनाने में संयुक्त संघर्ष समिति सहयोग करेगी।

4- उपरोक्त कार्यवाहियों की इस वित्तीय वर्ष में 15 जनवरी तक मासिक समीक्षा की जाएगी, जिसमें ऊर्जा मंत्री, प्रबंधन और कर्मचारी यूनियन शामिल रहेंगे।

5-  निजीकरण विरोधी आंदोलन में किसी भी कर्मचारी, अभियंता, संविदा कर्मी पर कोई भी बदले की कार्यवाही नहीं की जाएगी। इस दौरान विद्युत कर्मचारियों , संविदा कर्मियों, जूनियर इंजीनियरों, संघर्ष समिति के पदाधिकारियों पर दर्ज मुकदमें बिना शर्त वापस लिए जाएंगे।

निजीकरण पर सफाई आऩा बाकी

समझौते की जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है उसमें उन कदमों पर कोई चर्चा नहीं की गई है जो सरकार ने निजीकरण की दिशा में उठाए हैं।

यूपी के गांवों में किसानों के ट्यूबवेल पर प्राइवेट बिजली मीटर लगाए जा रहे हैं। कई गांवों में प्राईवेट बिजली कंपनियों के खंभे लगाए गए हैं। इन प्राईवेट कंपनियों के मीटर भी लगाए जा रहे हैं।

बिजली उपकेंद्रों पर बिलिंग की पूरी प्रक्रिया निजी कंपनियों के हवाले किए जा चुके हैं। इस बारे में उपभोक्ताओं की ओर से बड़े पैमाने पर शिकायतें आ रही हैं कि अनाप शनाप बिल आ रहे हैं।

सौभाग्य योजना के तहत निजी कंपनियों की ओर से कई क्षेत्रों में डबल बिजली मीटर लगाए गए हैं, जिससे उपभोक्ताओं को डबल बिल का भुगतान करना पड़ रहा है।

मोदी सरकार इलेक्ट्रिसिटी बिल 2020 लेकर आई है जिसमें पूरे देश में बिजली के निजीकरण की योजना का प्रस्ताव है। बीते 20 सितम्बर को केंद्र सरकार ने सरकारी बिजली वितरण निगमों के विघटन और उन्हें निजी कंपनियों के हाथों सौंपने का आदेश सभी राज्यों को भेज दिया।

इसलिए पूरे देश के बिजली कर्मचारियों में रोष है और वो प्रदर्शन कर रहे हैं। फ़ेडरेशन ऑफ़ कर्नाटका इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड इम्प्लाईज़ यूनियन और एसोसिएशनों ने कर्नाटक में पॉवर कारपोरेशन के मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन कर बिजली वितरण के निजीकरण का विरोध किया।

कर्नाटक के विद्युत वितरण सेजुड़े कर्मचारियों का प्रदर्शन।

इससे पहले नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में पूर्वांचल बिजली वितरण निगम को विघटित करने की शुरुआत की गई थी।

कर्मचारियों के प्रबल विरोध के बाद सरकार को पीछे हटना पड़ा है, लेकिन कर्मचारी नेताओं का कहना है कि मोदी और योगी सरकार रिकॉर्ड को देखते हुए इसे अंतिम जीत नहीं माना जा सकता।

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